16,000 अमेरिकियों की छंटनी और 5189 H1-B वीजा... व्हाइट हाउस की फैक्ट शीट में क्या-क्या?
अमेरिका ने H1-B वीजा पर 1,00,000 डॉलर वार्षिक शुल्क लागू किया, जिससे भारतीय आईटी पेशेवर और अमेरिकी कंपनियां चिंतित हैं. व्हाइट हाउस ने इसे अमेरिका फर्स्ट नीति का हिस्सा बताया और कहा कि कई कंपनियां विदेशी कर्मचारियों को प्राथमिकता देकर अमेरिकी नौकरियों को प्रभावित कर रही थीं. नई फीस सिर्फ नए वीजा आवेदन पर लागू होगी, पुराने वीजा धारकों पर नहीं. जानिए इस कदम के कारण, असर और भारत-यूएस के उद्योगों की प्रतिक्रिया.

अमेरिका के H1-B वीजा में अचानक 1,00,000 डॉलर की वार्षिक फीस लागू होने के बाद दुनिया भर में हड़कंप मच गया है. भारतीय आईटी प्रोफेशनल्स, अमेरिकी कंपनियां और नीति विशेषज्ञ इस फैसले के प्रभाव को समझने की कोशिश में हैं. व्हाइट हाउस ने इस कदम को अमेरिका फर्स्ट नीति के तहत उठाया है और एक फैक्ट शीट के जरिए इसका औचित्य समझाया.
व्हाइट हाउस की फैक्ट शीट के अनुसार, कई अमेरिकी कंपनियों ने H1-B वीजा के जरिए विदेशी कर्मचारियों को कम वेतन पर रखा और अमेरिकी कर्मचारियों को नौकरी से निकाल दिया. उदाहरण के तौर पर, एक कंपनी ने FY 2025 में 5,189 H1-B वर्कर्स को नौकरी दी, लेकिन 16,000 अमेरिकियों को निकाल दिया. इसी तरह अन्य कंपनियों ने भी हजारों अमेरिकी कर्मचारियों को H1-B वीजा धारकों के लिए निकाला.
H1-B वीजा का तेजी से बढ़ता उपयोग
व्हाइट हाउस के अनुसार, 2003 में आईटी क्षेत्र में H1-B वीजा धारकों का हिस्सा 32 प्रतिशत था, जो अब बढ़कर 65 प्रतिशत हो गया है. इसका सीधा असर अमेरिकी युवाओं की रोजगार संभावनाओं पर पड़ा है. कंप्यूटर साइंस और इंजीनियरिंग में स्नातक छात्रों में बेरोजगारी दर क्रमशः 6.1 और 7.5 प्रतिशत तक पहुंच गई है.
STEM क्षेत्रों में विदेशी कर्मचारियों का दबदबा
2000-2019 के बीच STEM (Science, Technology, Engineering, Mathematics) क्षेत्रों में विदेशी कर्मचारियों की संख्या दोगुनी हो गई, जबकि कुल रोजगार में केवल 44.5 प्रतिशत की वृद्धि हुई. इसका संकेत है कि अमेरिकी नौकरियों में विदेशी श्रम का अनुपात तेजी से बढ़ रहा है, जिससे घरेलू युवा प्रभावित हो रहे हैं.
अमेरिकी कर्मचारियों की छंटनी
व्हाइट हाउस ने कुछ कंपनियों के आंकड़े भी साझा किए. FY 2025 में एक कंपनी ने 5,189 H1-B वीजा धारकों को नियुक्त किया और 16,000 अमेरिकी कर्मचारियों को निकाल दिया. इसी तरह दूसरी कंपनी ने 1,698 H1-B कर्मचारियों को नियुक्त किया और 2,400 अमेरिकियों को निकाल दिया. यह डेटा अमेरिका फर्स्ट नीति की आवश्यकता को उजागर करता है.
अमेरिका फर्स्ट नीति और H1-B शुल्क
व्हाइट हाउस का कहना है कि यह कदम अमेरिकी युवाओं को पहली प्राथमिकता देने के उद्देश्य से उठाया गया है. अब H1-B वीजा पाने के लिए 1,00,000 डॉलर यानी लगभग 90 लाख रुपये की फीस चुकानी होगी. यह नया शुल्क सिर्फ नए वीजा आवेदन पर लागू होगा, पुराने वीजाधारकों पर नहीं.
70 प्रतिशत से ज्यादा भारतीय
भारत सरकार ने इस फैसले का प्रभाव समझने के लिए अध्ययन शुरू कर दिया है. H1-B वीजा धारकों में 70 प्रतिशत से अधिक भारतीय हैं, और अब यह फीस उनके लिए बड़ा वित्तीय भार साबित हो सकती है. भारतीय उद्योग और अमेरिकी कंपनियों का कहना है कि इस निर्णय का तकनीकी उद्योग, निवेश और भारतीय परिवारों पर बड़ा असर पड़ेगा.