Expert View: बिहार में विकास नहीं, फिर वही ‘कौम-कास्ट’ का गणित तय करेगा सत्ता का समीकरण
बिहार को समझना किसी ‘गूगल सर्च’ या सतही जानकारी का खेल नहीं है. यहां की राजनीति को समझने के लिए गहराई में उतरना पड़ता है, क्योंकि बिहार सत्ता की राजनीति नहीं, समाज की मनोवृत्ति पर चलता है. पिछले कई दशकों से बिहार की राजनीति जातीय समीकरणों के इर्द-गिर्द घूमती रही है - ठाकुर, भूमिहार, पंडित, यादव और पिछड़ी जातियों की गोलबंदी ने ही यहां सरकारें बनाईं और गिराईं. और इस बार भी तस्वीर कुछ अलग नजर नहीं आ रही. कहा जा सकता है कि 2025 का यह चुनाव भी विकास या रोजगार जैसे ‘विकासवादी मुद्दों’ पर नहीं, बल्कि ‘कौम’ यानी जातीय निष्ठा पर लड़ा जाएगा. ऐसे ही तमाम सवालों के जवाब के लिए स्टेट मिरर हिंदी के एडिटर क्राइम इनवेस्टीगेशन संजीव चौहान ने एक्सक्लूसिव-विश्लेषणात्मक बात की राजधानी पटना में मौजूद, बिहार की राजनीति पर पैनी नजर-पकड़ रखने वाले वरिष्ठ राजनीतिक पत्रकार मुकेश बालयोगी से.





