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पति ने सास को बनाया ‘नॉमिनी’, मौत के बाद पत्नी को नहीं मिली नौकरी, हाईकोर्ट ने तीन महीने में फैसला देने का दिया आदेश

उत्तराखंड हाईकोर्ट में एक बेहद दिलचस्प मामला सामने आया, जिसने सरकारी सेवा नियमों और पारिवारिक रिश्तों के बीच की जटिलता को उजागर कर दिया. दरअसल, वन विभाग के एक कर्मचारी की मौत के बाद उसकी पत्नी ने अनुकंपा नियुक्ति की मांग की थी, लेकिन विभाग ने यह कहते हुए उसका दावा ठुकरा दिया कि मृतक कर्मचारी ने अपने सर्विस रिकॉर्ड में पत्नी की जगह अपनी मां का नाम ‘नॉमिनी’ के रूप में दर्ज कराया था.

पति ने सास को बनाया ‘नॉमिनी’, मौत के बाद पत्नी को नहीं मिली नौकरी, हाईकोर्ट ने तीन महीने में फैसला देने का दिया आदेश
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( Image Source:  Meta AI: Representative Image )
हेमा पंत
Edited By: हेमा पंत

Updated on: 1 Nov 2025 4:36 PM IST

उत्तराखंड हाईकोर्ट में हाल ही में एक ऐसा अनोखा मामला सामने आया जिसने सबको हैरान कर दिया. यह मामला एक ऐसी महिला से जुड़ा था, जिसका पति वन विभाग में चौकीदार के पद पर काम करता था. पति की मौत के बाद महिला ने अनुकंपा नियुक्ति यानी सहानुभूति के आधार पर नौकरी की मांग की.

लेकिन विभाग ने उसका दावा यह कहकर ठुकरा दिया कि मृतक के सर्विस रिकॉर्ड में पत्नी की जगह सास का नाम ‘नॉमिनी’ के रूप में दर्ज था. विभाग का कहना था कि जब कर्मचारी ने खुद अपनी मां को नॉमिनी बनाया है, तो पत्नी को नौकरी का लाभ नहीं मिल सकता है. जहां महिला ने फिर इस मामले में हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाया और कोर्ट ने अगले तीन महीने के अंदर निर्णय लेने का आदेश दिया है.

पति की मौत और नई जंग

साल 2020 में किशन सिंह की सर्विस के दौरान मौत हो गई. इसके बाद पत्नी ने वन विभाग से अपने अधिकार की मांग की. उसने कहा कि वह कानूनी रूप से मृत कर्मचारी की पत्नी है और उसे अनुकंपा नियुक्ति, पारिवारिक पेंशन और बाकी सेवा लाभ मिलने चाहिए. लेकिन वन विभाग ने उसकी याचिका को यह कहकर खारिज कर दिया कि कर्मचारी के रिकॉर्ड में पत्नी की जगह सास का नाम लिखा था.

महिला पहुंची हाईकोर्ट

हताश होकर महिला ने उत्तराखंड हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाया. जस्टिस मनोज कुमार तिवारी की सिंगल जज बेंच में इस मामले की सुनवाई हुई. राज्य सरकार की ओर से अदालत में कहा गया कि चूंकि पति-पत्नी के रिश्ते खराब थे और पत्नी ने भरण-पोषण का केस किया था, इसलिए विभाग ने उसके नाम पर विचार नहीं किया. हालांकि, यह भी माना कि मृत कर्मचारी की सामान्य भविष्य निधि यानी जीपीएफ का कुछ हिस्सा पत्नी को जारी किया जा चुका है.

पत्नी को माना गया है वैध उत्तराधिकारी

हाईकोर्ट ने सुनवाई के दौरान कहा कि जब वन विभाग ने जीपीएफ राशि जारी करते हुए महिला को मृत कर्मचारी की पत्नी के रूप में मान्यता दी है, तो अनुकंपा नियुक्ति से इनकार करना उचित नहीं है. अदालत ने साफ किया कि कानूनन पत्नी का दर्जा सेवा रिकॉर्ड में हुई गलती से समाप्त नहीं हो सकता है.

तीन महीने में निर्णय का आदेश

इस आधार पर जस्टिस मनोज कुमार तिवारी की एकल पीठ ने कहा कि जब विभाग ने उसे वैध पत्नी मानते हुए जीपीएफ राशि का भुगतान कर दिया है, तो उसके अनुकंपा नियुक्ति के दावे पर विचार न करना अनुचित है. अदालत ने वन विभाग को निर्देश दिया कि तीन महीने के भीतर महिला के आवेदन की समीक्षा की जाए और कानून के अनुसार निर्णय पारित किया जाए.

उत्तराखंड न्‍यूज
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