मां की चीख, पत्नी का टूटा घर… बिना सबूत के 8 साल तक जेल में क्यों सड़ता रहा भारत का Scientific Star
ब्रह्मोस मिसाइल प्रोजेक्ट पर काम करने वाले युवा वैज्ञानिक निशांत अग्रवाल को 2018 में एटीएस ने अचानक देशद्रोह के आरोप में गिरफ्तार किया था. घर की तलाशी, फोन-लैपटॉप जब्ती और बिना किसी ठोस सबूत के उन्हें आरोपी बना दिया गया. पत्नी क्षितिजा और मां रितु ने समाज की तिरछी नजरों, कोर्ट-कचहरी और मानसिक यातना में आठ साल गुज़ारे. फोरेंसिक रिपोर्ट में भी कुछ नहीं मिला, लेकिन 2024 में उम्रकैद हुई. हाईकोर्ट ने 1 दिसंबर 2025 को सभी आरोप बेबुनियाद बताते हुए निशांत को बरी किया और परिवार की ज़िंदगी में रोशनी लौटी.
आख़िरकार आठ साल लंबी काली रात खत्म हुई. रुड़की का युवा वैज्ञानिक निशांत अग्रवाल, जिसे कभी देश का भविष्य कहा गया था, एक ऐसी साजिश में फँसा दिया गया कि उसकी ज़िंदगी, करियर और परिवार- सबकी सांसें थम गईं. ब्रह्मोस मिसाइल प्रोजेक्ट पर काम करने वाला 27 साल का यह वैज्ञानिक अचानक देशद्रोह के आरोप में गिरफ्तार हुआ और उसी पल उसका घर खुशियों से मातम में बदल गया.
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8 अक्टूबर 2018, सुबह के साढ़े चार बजे एटीएस ने दरवाज़ा तोड़ा, घर की ताश की तरह तलाशी ली, लैपटॉप-फोन जब्त किए और नया ब्याहता दंपति देखते देखते टूट गया. पत्नी और मां ने घर में अघोषित जेल काटी, जबकि बेटा बंद सलाखों के पीछे. लेकिन 1 दिसंबर 2025 ने सबकुछ बदल दिया- जब बॉम्बे हाईकोर्ट ने कहा, 'निशांत निर्दोष है.' आठ साल बाद घर में रोशनी लौटी, और एक परिवार की टूटी सांसें फिर से जुड़ गईं.
आठ साल पुराना जख्म: कैसे खत्म हुआ देशद्रोह का कलंक
ब्रह्मोस प्रोजेक्ट का चमकता सितारा बना आरोपी
ससुराल नेहरू नगर, रुड़की में बैठी क्षितिजा अग्रवाल और सास रितु अग्रवाल आज भी उस दिन को याद कर सिहर उठती हैं. क्षितिजा बताती हैं- 'निशांत ने 2013 में नागपुर स्थित ब्रह्मोस एयरोस्पेस ज्वाइन किया था. शादी के कुछ ही महीनों बाद डीआरडीओ ने उन्हें ‘यंग साइंटिस्ट अवॉर्ड’ दिया था. हमें क्या पता था कि कुछ ही दिन बाद हमारी दुनिया ही उजड़ जाएगी.'
8 अक्टूबर की सुबह- जब जिंदगी पलट गई
पत्नी के मुताबिक, सुबह साढ़े चार बजे यूपी और महाराष्ट्र एटीएस ने दरवाजा पीटा. घर की तलाशी ली और निशांत को बिना कुछ समझाए उठा ले गए." कुछ ही मिनटों में वैज्ञानिक से देशद्रोही बनाए गए निशांत की पत्नी और मां के लिए यह ऐसा झटका था, जिससे उबरने में पूरे 8 साल लग गए. छह साल की लड़ाई: घर, कोर्ट, समाज- सबका सामना.
कोर्ट में चार्जशीट और उम्मीद का टूटना
नौ महीने बाद चार्जशीट दाखिल हुई. परिवार का दावा था- कोई सबूत नहीं, कोई डेटा ट्रांसफर नहीं. क्षितिजा के शब्दों में- "फोरेंसिक टीम को भी कुछ नहीं मिला था. मगर 3 जून 2024 को आजीवन कारावास की सजा सुनाई गई तो हमारे पैरों के नीचे की जमीन ही खिसक गई." हार नहीं मानी. हाईकोर्ट गए. 1 दिसंबर 2025 को बॉम्बे हाईकोर्ट की नागपुर बेंच ने साफ कहा- निशांत पर लगे आरोप बेबुनियाद हैं. कोई डेटा ट्रांसफर नहीं. लैपटॉप में सिर्फ ट्रेनिंग का पुराना यूज़लेस मैटेरियल था.
मां का दर्द- 'सांस ले रही थी, पर जिंदा नहीं थी'
निशांत की मां ऋतु अग्रवाल कहती हैं 'मैं सांस लेती थी, लेकिन जिंदा नहीं थी. बस एक उम्मीद थी कि मेरा बेटा एक दिन बाहर आएगा." ATS आई थी रुड़की और समाज की बेरहम निगाहें भी, मोहल्ले वालों की नजरें चुभती थीं. एटीएस जब रुड़की आई और घर से लैपटॉप उठाकर ले गई, तभी से मोहल्ले की नजरें बदल गईं. सास रितु बताती हैं- "कुछ लोग हमें ऐसे देखने लगे जैसे हम भी अपराधी हों. लेकिन हमारे रिश्तेदारों ने हमें संभाले रखा."
पति का आदेश- बेटे को जेल मत लाना
क्षितिजा बताती हैं कि निशांत ने कहा कि बेटे को जेल मत लाना. उसे भरोसा था कि वह एक दिन वापस आएगा." आठ साल खोकर लौटा बेटा. जो कभी मिसाइलें बनाता था, वह खुद एक साजिश का शिकार बन गया. लेकिन अब एक परिवार की सांसें फिर चलने लगी हैं और सबसे बड़ी बात, उसके माथे से देशद्रोह का दाग मिट गया है.





