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मद्महेश्वर मंदिर क्यों गए थे पांडव? भगवान शिव ने धारण किया था ये रूप, कपाट बंद होने पर जाने अब कहां होंगे दर्शन

द्वितीय केदार मद्महेश्वर मंदिर के कपाट शीतकाल के लिए बंद कर दिए गए हैं. मद्महेश्वर मंदिर का पांडवों से भी खास कनेक्शन है. भगवान शिव यहां पांडवों से नाराज होकर बैल का रूप लेकर छिप गए थे.

मद्महेश्वर मंदिर क्यों गए थे पांडव? भगवान शिव ने धारण किया था ये रूप, कपाट बंद होने पर जाने अब कहां होंगे दर्शन
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( Image Source:  ANI )
विशाल पुंडीर
Edited By: विशाल पुंडीर

Published on: 18 Nov 2025 3:09 PM

द्वितीय केदार मद्महेश्वर मंदिर के कपाट मंगलवार सुबह 8 बजे शीतकाल के लिए मार्गशीर्ष कृष्ण चतुर्दशी स्वाति नक्षत्र के शुभ मुहूर्त में बंद कर दिए गए. सोमवार से ही मंदिर को सुंदर फूलों से सजाने का काम शुरू हो गया था. मंदिर के कपाट बंद होने के अवसर पर साढ़े तीन सौ से अधिक श्रद्धालुओं के साथ-साथ बीकेटीसी के कर्मचारी-अधिकारी, वन विभाग के कर्मी और प्रशासन के प्रतिनिधि मौजूद रहे. कपाट बंद करने की प्रक्रिया के तहत ब्रह्म मुहूर्त में मंदिर खोला गया. श्रद्धालुओं ने दर्शन और पूजा की, जिसके बाद सुबह सात बजे कपाट बंद करने की तैयारी शुरू हो गई.

इसके बाद पुजारी शिवलिंग ने बीकेटीसी के मुख्य कार्याधिकारी मजिस्ट्रेट विजय प्रसाद थपलियाल, बीकेटीसी सदस्य प्रह्लाद पुष्पवान और गौंडार गांव के अधिकार रखने वाले लोगों की मौजूदगी में मद्महेश्वर के प्राकृतिक शिवलिंग को ढककर सुरक्षित रूप में स्थापित किया. ठीक आठ बजे, “जय श्री मद्महेश्वर” के जयघोष के बीच मंदिर के कपाट शीतकाल के लिए बंद कर दिए गए. कपाट बंद होने के बाद मद्महेश्वर की चल डोली ने मंदिर की परिक्रमा की और फिर पहले पड़ाव, गौंडार गांव की ओर रवाना हो गई.

बीकेटीसी अध्यक्ष ने श्रद्धालुओं को दी शुभकामनाएं

बद्री-केदार मंदिर समिति (बीकेटीसी) के अध्यक्ष हेमंत द्विवेदी ने द्वितीय केदार मद्महेश्वर मंदिर के कपाट बंद होने के अवसर पर श्रद्धालुओं को शुभकामनएं दी. उन्होंने श्रद्धालुओं से अनुरोध किया कि मंदिरों के कपाट बंद होने तक शीतकालीन तीर्थस्थलों में दर्शन कर पुण्य लाभ अर्जित करें. इसी क्रम में बीकेटीसी के उपाध्यक्ष ऋषि प्रसाद सती और उपाध्यक्ष विजय कप्रवाण ने भी मद्महेश्वर मंदिर के कपाट बंद होने पर शुभकामनाएं एवं बधाई दी हैं.

इस बार 22 हजार श्रद्धालुओं ने किए दर्शन

मुख्य कार्याधिकारी विजय प्रसाद थपलियाल ने जानकारी दी कि विषम भौगोलिक परिस्थितियों के बावजूद इस साल मद्महेश्वर में 22 हजार से अधिक श्रद्धालुओं ने दर्शन किए. उन्होंने बताया कि कपाट बंद होने के बाद मद्महेश्वर की चल विग्रह डोली रात्रि प्रवास के लिए अपने पहले पड़ाव गौंडार की ओर रवाना हो गई.

बीकेटीसी मीडिया प्रभारी डॉ. हरीश गौड़ ने बताया कि 19 नवंबर को भगवान मद्महेश्वर की चल विग्रह उत्सव डोली राकेश्वरी मंदिर, रांसी तथा 20 नवंबर को गिरिया में पहुंचेगी. 21 नवंबर को चल विग्रह डोली शीतकालीन गद्दीस्थल ओंकारेश्वर मंदिर, ऊखीमठ पहुंचेगी. जहां श्रद्धालु दर्शन कर सकेंगे.

क्या है मद्महेश्वर मंदिर का इतिहास?

महाभारत का युद्ध खत्म करने के बाद पांचों पांडव अपने पापों से मुक्ति पाने के लिए शिव की तलाश में मद्महेश्वर पहुंचे थे, लेकिन भगवान शिव ने उनसे नाराज होकर बैल का रूप धारण कर लिया था. जब पांडवों ने शिव को खोजा तो बैल के शरीर के अलग-अलग हिस्से अलग-अलग स्थान पर प्रकट हुए जिनको पंचकेदार कहा जाता है और उनमे से एक है मद्महेश्वर. मद्महेश्वर में बैल की नाभि प्रकट हुई थी.

उत्तराखंड न्‍यूज
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