Begin typing your search...

आपदा का कहर! बसुकेदार में आपदा के 2 महीने बाद मिले 7 लोगों के शव, अभी भी मलबे में फंसे 2 लोगों की तलाश जारी

बसुकेदार क्षेत्र के छेनागाड़ में 28 अगस्त को आई भीषण आपदा ने कस्बे के अधिकांश हिस्से को मलबे में तब्दील कर दिया था. तब से ही लापता लोगों की तलाश जारी थी और राहत-बचाव कार्य लगातार चल रहे थे.

आपदा का कहर! बसुकेदार में आपदा के 2 महीने बाद मिले 7 लोगों के शव, अभी भी मलबे में फंसे 2 लोगों की तलाश जारी
X
( Image Source:  x-@chamolipolice )
हेमा पंत
Edited By: हेमा पंत

Updated on: 26 Oct 2025 10:28 AM IST

उत्तराखंड के बसुकेदार क्षेत्र का छोटा-सा गांव छेनागाड़ आज भी 28 अगस्त की उस भयावह रात को नहीं भूल पाया है, जब पहाड़ों से आई भीषण आपदा ने पूरे कस्बे को मलबे में बदल दिया था. तब से लेकर अब तक न किसी का चैन लौटा है, न सुकून. लेकिन राहत दलों की कोशिशें थमी नहीं हैं. वे अब भी हर पत्थर, मिट्टी और बोल्डर के नीचे उम्मीद तलाश रहे हैं.

दो महीने की मेहनत और खोजबीन के बाद अब तक सात शव बरामद किए जा चुके हैं, लेकिन अभी भी दो लोग लापता हैं. प्रशासन, पुलिस और रेस्क्यू टीमें कठिन भौगोलिक परिस्थितियों के बावजूद लोगों की खोज में जुटी हुई हैं.

सात लोगों के मिले शव

आपदा के दो महीने बाद भी खोज अभियान लगातार जारी है. शुक्रवार को दो शव मिलने के बाद शनिवार को मलबे से पांच और शव बरामद किए गए, जिससे मृतकों की संख्या सात हो गई है. लेकिन कहानी यहीं खत्म नहीं होती. दो लोग अब भी लापता हैं, जिनकी तलाश में प्रशासन, एसडीआरएफ, पुलिस और स्थानीय लोग दिन-रात मेहनत कर रहे हैं.

पहचान की जद्दोजहद

बरामद शवों की पहचान प्रक्रिया चल रही है.अब तक सिर्फ एक शव की पहचान हो सकी है, बाकी शवों को पोस्टमार्टम के लिए जिला चिकित्सालय भेजा गया है. आपदा में लापता हुए नौ लोगों में पांच स्थानीय और चार नेपाली मूल के मजदूर थे, जो रात के समय उसी क्षेत्र में काम कर रहे थे. गांव वालों के लिए वे अब सिर्फ नाम नहीं, बल्कि साझा दुःख की याद हैं.

आखिरी उम्मीद है बाकी

प्रशासन ने परिवारों के प्रति गहरी संवेदना व्यक्त की और भरोसा दिलाया कि अंतिम व्यक्ति के अवशेष मिलने तक खोज अभियान रुकेगा नहीं. कठिन भौगोलिक परिस्थितियों और टूटी सड़कों के बावजूद टीमों का हौंसला अडिग है. छेनागाड़ के लोग जानते हैं कि मलबे के नीचे शायद सिर्फ शरीर नहीं, पूरी जिंदगियां दबी हैं, लेकिन उम्मीद की डोर अब भी टूटी नहीं है.

उत्तराखंड न्‍यूज
अगला लेख