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कैसे-कैसे लोग जज बन गए... इलाहाबाद हाईकोर्ट के जज पर भड़के लोग, बोले- पीड़िता का तोड़ रहे मनोबल

इलाहाबाद हाईकोर्ट के जज में एक फैसले में कहा कि किसी लड़की के स्तनों को पकड़ना, उसके पायजामे का नाड़ा तोड़ना और उसे पुलिया के नीचे खींचने का प्रयास करना, आरोपी पर बलात्कार या बलात्कार के प्रयास का आरोप लगाने के लिए पर्याप्त नहीं है. अब इस मामले को लेकर सोशल मीडिया पर बवाल मचा हुआ है. लोग कई तरह की बात कर रहे हैं.

कैसे-कैसे लोग जज बन गए... इलाहाबाद हाईकोर्ट के जज पर भड़के लोग, बोले- पीड़िता का तोड़ रहे मनोबल
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नवनीत कुमार
Edited By: नवनीत कुमार

Updated on: 20 March 2025 12:33 PM IST

इलाहाबाद हाई कोर्ट का हालिया फैसला सोशल मीडिया पर चर्चा का विषय बना हुआ है. कोर्ट ने अपने निर्णय में स्पष्ट किया कि किसी लड़की के स्तनों को पकड़ना, उसके पायजामे का नाड़ा तोड़ना और पुलिया के नीचे खींचने का प्रयास करना बलात्कार या उसके प्रयास के दायरे में नहीं आता. अदालत ने यह अंतर बताया कि किसी अपराध की 'तैयारी' और 'वास्तविक प्रयास' में फर्क होता है और अभियोजन पक्ष इस मामले में इसे साबित करने में असफल रहा.

ट्रायल कोर्ट ने आरोपी पवन और आकाश पर आईपीसी की धारा 376 (बलात्कार) और पॉक्सो अधिनियम की धारा 18 (अपराध का प्रयास) के तहत मुकदमा दर्ज करने का आदेश दिया था. हालांकि, हाईकोर्ट ने इस पर संशोधन करते हुए कहा कि इस मामले में आईपीसी की धारा 354-बी (महिला को निर्वस्त्र करने का प्रयास) और पॉक्सो अधिनियम की धारा 9/10 (गंभीर यौन हमला) के तहत मुकदमा चलाया जाएगा.

सोशल मीडिया पर बहस जारी

मामले की गंभीरता को देखते हुए यह फैसला कई लोगों के लिए चौंकाने वाला है. अभियोजन पक्ष के अनुसार, आरोपियों ने 11 वर्षीय बच्ची के साथ यह हरकत की थी, लेकिन राहगीरों के दखल से वे भाग निकले. ट्रायल कोर्ट ने इसे बलात्कार के प्रयास के रूप में माना, जिसे हाईकोर्ट में चुनौती दी गई. सोशल मीडिया पर यह बहस जारी है कि क्या यह फैसला पीड़ितों के लिए न्यायसंगत है या नहीं.

न्याय का मतलब क्या बचा?

निघत अब्बास जो पेशे से वकील हैं, ने एक्स पर लिखा, "अगर किसी महिला के प्राइवेट पार्ट को पकड़ना, उसके कपड़े फाड़ना और उसे घसीटकर ले जाने की कोशिश रेप या रेप की कोशिश नहीं है, तो फिर न्याय का मतलब क्या बचा? इलाहाबाद हाईकोर्ट का यह फैसला हर बेटी, हर महिला के सम्मान पर हमला है! क्या अब दरिंदों को कानूनी संरक्षण मिलेगा? यह देश चुप नहीं बैठेगा!" वहीं, कांग्रेस नेता सुप्रिया श्रीनेत ने लिखा कि जो क़ानून एक औरत की सुरक्षा के लिए बना है, उससे क्या उम्मीद रखे इस देश की आधी आबादी.

जज साहब की मानसिक हालत खराब

विशाल ज्योतिदेव अग्रवाल नामक यूजर ने लिखा, "कैसे कैसे लोग जज बन गए हैं." वहीं, विपुल मेहता नामक यूजर ने लिखा, "मुझे लगता है जज साहब की मानसिक हालत खराब है, उन्हें इस पद पर रखना जोखिम है." अनिल मौर्य नामक यूजर ने लिखा, "ऐसे फैसले न केवल पीड़ितों का मनोबल तोड़ते हैं, बल्कि अपराधियों को भी यह संकेत देते हैं कि वे अपनी हरकतों को 'तैयारी की अवस्था' में रखकर बच सकते हैं."

कानून को होना चाहिए संवेदनशील

गुरदीप सिंह नामक यूजर ने लिखा, "इस फैसले के बारे में मेरी राय यह है कि यह बेहद संवेदनशील और विचारणीय मुद्दा है. इलाहाबाद हाईकोर्ट के जस्टिस राम मनोहर नारायण मिश्र का यह फैसला कई सवाल खड़े करता है. क्या यह वास्तव में पीड़िता के अनुभव और उसकी गरिमा को कम नहीं करता? मेरे ख्याल से, ऐसे मामलों में मंशा और संदर्भ को गहराई से देखना चाहिए. यह सच है कि रेप और उसकी कोशिश को साबित करने के लिए ठोस सबूत चाहिए, पर यह व्यवहार निश्चित रूप से गंभीर अपराध है और इसे हल्के में नहीं लिया जाना चाहिए. समाज में महिलाओं की सुरक्षा और सम्मान के लिए कानून को और संवेदनशील होने की जरूरत है."

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