कब्रिस्तान के पेड़ के नीचे सोया था शख्स, नगर निगम ने पलट दी कचरे की ट्रॉली, तोड़ा दम
मौत कहीं भी और कभी भी आ सकती है. हाल ही में ऐसा ही कुछ यूपी के बरेली के एक शख्स के साथ हुआ, जो कब्रिस्तान के पेड़ के नीचे थक-हारकर सो रहा था. इस दौरान नगर निगम की कचरे की गाड़ी आकर उसके ऊपर सारा कचरा पलट कर चली गई और फिर उसकी मौत हो गई.

गुरुवार की शाम थी. उत्तर प्रदेश के बरेली जिले में 45 वर्षीय सुनील प्रजापति रोज़ की तरह थक-हारकर अपने ठेले से सब्जियां बेचने के बाद थोड़ा आराम करना चाहता था. थकावट इतनी थी कि वह सतीपुर रोड पर एक कब्रिस्तान के पास पेड़ के नीचे ज़मीन पर ही लेट गया. उसे क्या पता था कि यही नींद उसकी आखिरी होगी.
इसी दौरान नगर निगम की एक गाड़ी वहां पहुंची, जिसमें नाला सफाई की सिल्ट और कचरा भरा हुआ था. कर्मचारियों ने बिना देखे, बिना सोचे-विचारे ट्रॉली पलट दी. ठीक उसी जगह पर, जहां सुनील लेटा हुआ था. मलबा सीधा उसके ऊपर आ गिरा. उसे बाहर निकलने का कोई मौका ही नहीं मिला. वो वहीं दब गया.दम घुटा और उसकी सांसें हमेशा के लिए थम गईं.
जब अपनों ने मलबे के नीचे खोजा बेटा, बाप, पति…
कुछ देर बाद सुनील के परिजन उसे देखने पहुंचे, लेकिन वहां सिर्फ मिट्टी, सिल्ट और मलबा दिखा. जहां वह आराम कर रहा था, वहां अब सिर्फ सन्नाटा था. शक हुआ, तो उन्होंने मिट्टी हटाई और सुनील का बेसुध शरीर निकाला. उसे तुरंत अस्पताल ले जाया गया, लेकिन तब तक बहुत देर हो चुकी थी. डॉक्टरों ने उसे मृत घोषित कर दिया.
पोस्टमार्टम रिपोर्ट में मौत का खुलासा
अगले दिन शुक्रवार को जब शव का पोस्टमार्टम हुआ, तो उसमें साफ हुआ कि सुनील की मौत सिल्ट और मलबे में दम घुटने से हुई थी. उसके गले, नाक और मुंह में मिट्टी भर चुकी थी. पुलिस ने यह पुष्टि की और मामला दर्ज कर लिया.
ठेकेदार पर आरोप
नगर निगम ने यह काम एक निजी ठेकेदार को सौंप रखा था. पुलिस अब उसी ठेकेदार नईम शास्त्री की तलाश में है, जिसके कर्मचारियों ने यह लापरवाही की. सुनील के पिता, गिरवर सिंह प्रजापति ने इसे हत्या बताते हुए कहा कि यह एक सोची-समझी साज़िश भी हो सकती है.
घर का इकलौता कमाने वाला चला गया
सुनील की मौत ने सिर्फ एक ज़िंदगी नहीं छीनी. उसने एक पूरे परिवार को अनाथ कर दिया. पत्नी गोमती अब अकेली रह गई हैं, जिनकी आंखों से आंसू थमने का नाम नहीं ले रहे. उनकी दो बेटियां, शिल्पी और स्वाति इंटरमीडिएट में पढ़ रही हैं और बेटा आर्यन अभी दसवीं का छात्र है. सुनील ही था जो रोज़ डेलापीर मंडी से थोक में सब्जियां लाता था और गलियों में फेरी लगाकर घर चला रहा था. अब उसकी जगह सिर्फ खालीपन और संघर्ष की आहटें बची हैं.
क्या एक मेहनती इंसान की जान इतनी सस्ती है कि उसे बिना देखे, बिना सोचे कचरे में दफन कर दिया जाए? क्या कोई जिम्मेदार नहीं? क्या इस परिवार को इंसाफ मिलेगा?