यूपी BJP चीफ पंकज चौधरी की अग्निपरीक्षा: 5 चुनौतियां जो तय करेंगी उनका सियासी कद
पूर्वांचल के रहने वाले पंकज चौधरी उत्तर प्रदेश बीजेपी को अध्यक्ष तो निर्विरोध चुन लिए गए, लेकिन असली चुनौती तो उनके सामने अब आई है. वह संगठन, सरकार और सामाजिक संतुलन साधने के साथ विपक्ष को सियासी मात दे पाएंगे. इस दिशा में उनकी पहली अग्निपरीक्षा 2026 में यूपी में पंचायत और नगर निकाय चुनाव होगी. जानें वे कौन-सी पांच चुनौतियां हैं जो उनका सियासी कद तय करेंगी.
उत्तर प्रदेश बीजेपी की कमान संभालने के बाद पंकज चौधरी के सामने सबसे बड़ी चुनौती सिर्फ संगठन चलाने की नहीं, बल्कि सबको साथ लेकर चलने की है. 2027 विधानसभा चुनाव से पहले पार्टी के भीतर तालमेल, सरकार-संगठन संतुलन और सामाजिक समीकरण साधना उनकी नेतृत्व क्षमता की असली परीक्षा होगी. उनके सामने 2026 में संभावित पंचायत और नगर निकाय चुनाव, उसके बाद यूपी विधानसभा चुनाव में पार्टी को जीत दिलाने की है. इसके लिए विपक्ष पार्टियों यानी सपा, बसपा, कांग्रेस व अन्य स्थानीय पार्टियों को भी साधना होगा. ऐसे में यह सवाल अहम है कि वे कौन-सी पांच बड़ी चुनौतियां हैं, जो पंकज चौधरी का सियासी वजूद तय करेंगी?
यूपी बीजेपी अध्यक्ष की 5 बड़ी चुनौतियां
1. जातीय समीकरण और सामाजिक संतुलन
उत्तर प्रदेश में राजनीति का बड़ा आधार जातीय समीकरण है. बिहार की तरह यहां पर भी जाति का गणित सियासी किलेबंदी के लिए जरूरी होता है. खासकर ओबीसी, दलित, ब्राह्मण, ठाकुर, यादव, निषाद, पटेल, कुर्मी, जाटव व गैर जाटव मतदाता अहम भूमिका निभाते हैं. यादव, दलितों के साथ यूपी में ब्राह्मणों की भूमिका भी कम अहम नहीं होती.
कुर्मी OBC समुदाय से होने के नाते उनके सामने अपेक्षा रहेगी कि वे अन्य OBC समूहों (कुशवाहा, लोधा, मौर्य, पटेल आदि) को भी पार्टी से जोड़ें. साथ ही दलित और ब्राह्मण वोट बैंक को भी संतुलित रखना चुनौती है. बिना संतुलन के सपा और बसपा को जमीन मिल सकती है.
2. संगठन की मजबूती
साल 2014 के बाद से यूपी में बीजेपी ताकत बूथ-स्तर पर संगठन की मजबूती है. यह आगे भी तभी बना रहेगा जब बूथ अध्यक्ष, वार्ड, ब्लॉक स्तर पर नेताओं के बीच सहयोग और एकता बनाए रखने में नए अध्यक्ष अपनी कुशलता का परिचय दें. अपने पूर्ववर्ती नेतृत्व और स्थानीय नेताओं के बीच गुटबाजी और नाराजगी को कम करना भी उनके लिए बड़ी चुनौती होगी. चौधरी को 35 साल का संसदीय चुनाव का अनुभव है. वे 1991 से महाराजगंज से सात बार सांसद चुने गए हैं. संसद में आने से पहले, वे गोरखपुर में नगर निगम पार्षद और डिप्टी मेयर चुने गए थे.
1991 में, चौधरी को बीजेपी की कार्यकारी समिति का सदस्य बनाया गया था, लेकिन यह उनके लंबे राजनीतिक करियर में एकमात्र संगठनात्मक पद था जो उन्होंने संभाला. सूत्रों ने बताया कि महाराजगंज के बाहर बीजेपी कार्यकर्ताओं से उनका बहुत कम मेलजोल था. उन्होंने राज्य में कभी कोई संगठनात्मक पद नहीं संभाला.
पंकज RSS के कार्यक्रमों में सक्रिय रूप से भाग लेते रहे हैं, लेकिन वहां भी कोई पद नहीं संभाला. यह दूसरे पूर्व प्रदेश अध्यक्षों से अलग हैं, जिन्होंने RSS के सहयोगी संगठनों जैसे अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद (ABVP) और विश्व हिंदू परिषद (VHP) के लिए काम किया है. इसलिए, पूरे राज्य के लोगों से जुड़ना उनके लिए एक नई चुनौती होगी.
3. विधानसभा चुनाव 2027
साल 2027 में यूपी विधानसभा चुनाव हैं. विधानसभा चुनाव 2022 बीजेपी को 2017 की तुलना में कम सीटें मिली थी, हालांकि, बीजेपी सरकार बनाने में सफल रही थी. इसलिए साल 2026 में होने वाले पंचायत और नगर निकाय के चुनाव में पार्टी को जिताने की उनकी पहली जिम्मेदारी होगी. इसके लिए उन्हें सोशल इंजीनियरिंग, राजनीतिक सूझबूझ का परिचय देना होगा.
2026 के पंचायत चुनावों में पार्टी की जीत सुनिश्चित करने के लिए बीजेपी कार्यकर्ताओं को एकजुट रखने की भी जरूरत होगी. चूंकि, स्थानीय निकाय चुनावों में टिकट चाहने वालों की संख्या ज्यादा रहती है, इसलिए चौधरी को उन लोगों को मनाना होगा उन्हें टिकट नहीं मिलेगा. ताकि वे बगावत न करें और इसके बजाय पार्टी के आधिकारिक उम्मीदवारों का समर्थन करें.
विधानसभा चुनाव 2027 के लिए चौधरी पर यह जिम्मेदारी होगी कि वे पार्टी को लगातार तीसरी बार सत्ता में लाने के लिए आदित्यनाथ सरकार को सत्ता विरोधी लहर बचाने में मदद करें.
4. विपक्षी गठबंधन
यूपी में सपा, बसपा और कांग्रेस गठबंधन को विधानसभा चुनाव 2027 में तीसरी बार मात देना अहम चुनौतियों में से एक होगा. उसी पर निर्भर करेगा कि लोकसभा चुनाव 2029 में बीजेपी कैसा प्रदर्शन करेगी. इस चुनौती पर खरा उतरने के लिए उन्हें जातिगत गठजोड़,
सियासी नैरेटिव, विरोधी मोर्चे को कमजोर करना होगा. साथ ही विपक्ष की रणनीति को भांपना होगा. सत्ता के खिलाफ नाराजगी को कम करना उनके लिए सबसे बड़ी चुनौतियों में से एक है.
पंकज चौधरी कुर्मी समुदाय से आते हैं, जो राज्य में OBC आबादी का लगभग 8% है. पूर्वी और मध्य UP में इनकी अच्छी-खासी मौजूदगी है. राज्य BJP प्रमुख के तौर पर उनका चुनाव पार्टी का एक राजनीतिक कदम माना जा रहा है. ताकि SP के PDA अभियान का मुकाबला किया जा सके, जिसका मकसद OBC, दलित और अल्पसंख्यक समुदायों का समर्थन हासिल करना है. चौधरी के लिए अपने कुर्मी समाज को एकजुट करना एक चुनौती होगी क्योंकि इस समुदाय ने राज्य में कभी भी किसी एक पार्टी को एक साथ वोट नहीं दिया है.
2024 के लोकसभा चुनावों में, कुर्मी समुदाय के एक बड़े हिस्से ने SP-कांग्रेस गठबंधन को वोट दिया था. 2022 के UP विधानसभा चुनावों में SP प्रमुख अखिलेश यादव ने OBC पार्टियों का एक बड़ा गठबंधन बनाया था, जिससे BJP की सीटों की संख्या 2017 की 312 से घटकर 255 हो गई थी. SP की सीटों की संख्या 2017 की 47 से बढ़कर 2022 में 111 हो गई थी.
5. सरकार और संगठन के बीच तालमेल
बीजेपी में अध्यक्ष का काम केवल संगठन चलाना नहीं, सरकार के काम को भी राजनीतिक रूप देना होता है. विशेषकर जब योगी सरकार सक्रिय हो. ऐसे में योगी सरकार के लोक कल्याणकारी कार्य, उसका प्रचार, चुनावी नैरेटिव बनाने में उनकी भूमिका पार्टी के लिए साबित हो सकती है. इसके लिए योगी सरकार और संगठन के नेताओं के बीच कड़ी का काम करना होगा. साथ ही सबको साथ लेकर चलना होगा. यदि संगठन और सरकार के बीच समन्वय कमजोर रहा, तो विपक्ष को मौका मिल सकता है.
कुल मिलाकर पंकज चौधरी को जातीय संतुलन के लिहाज से ओबीसी, दलित और सवर्ण जातियों को साधना होगा. संगठन को मजबूती देने के लिए बूथ-सेवा ढांचा को सशक्त करना होगा और पार्टी की रणनीति क हिसाब से टिकट देने का फैसला लेना होगा. SP-BSP-कांग्रेस को टक्कर देने के साथ सरकार के पक्ष में नैरेटिव भी गढ़ने होंगे.





