'साहब मैं अभी जिंदा हूं,' जीवित होने के बावजूद पेंशन से कटा नाम, अब ऑफिस के चक्कर लगा रहे बुजुर्ग
सोचिए क्या हो जब आप जिंदा हो, लेकिन कागजों पर आपको मृत करार दिया गया हो. यह सिस्टम की सबसे भड़ी गलती है, जिसे सुधारने में लंबा वक्त लग जाता है. ऐसा ही कुछ यूपी के एक बुजर्ग दंपत्ति के साथ हुआ है.

हरख ब्लॉक के गढ़ी रखमऊ गांव की एक धूपभरी दोपहर में मोहम्मद आशिक और उनकी पत्नी हसमतुल निशा हाथ में एक तख्ती लेकर स्थानीय सरकारी कार्यालय के बाहर खड़े है, जिस पर लिखा साहब, मैं अभी जिंदा हूं. यह कोई मज़ाक या फिल्मी सीन नहीं है बल्कि एक दो बुज़ुर्गों की सच्ची कहानी है, जिन्हें सरकारी रिकॉर्ड में मार दिया गया है, जबकि असल में वह जिंदा हैं
करीब एक साल से आशिक और हसमतुल निशा अपनी वृद्धावस्था पेंशन के इंतजार में थे, लेकिन उम्मीद किसी और ही मोड़ ले गई. हैरानी तो इस बात की है कि उन्हें राशन और दूसरे सरकारी फायदे मिल रहे हैं. इसका मतलब था कि एक ही सिस्टम उन्हें एक जगह पहचान रहा था और दूसरी जगह भुला चुका था.
कई बार की शिकायतें
आशिक ने बताया कि 'ना तो किसी ने इस बारे में बताया, ना ही कोई जांच करने के लिए आया. बस हमारी पेंशन रोक दी और हमें मृत घोषित कर दिया. हमने कई बार इस बारे में शिकायत की. फॉर्म भरे, अधिकारियों से गुहार लगाई, लेकिन किसी ने हमारी नहीं सुनी.
दर-दर भटके रहे बुजुर्ग
उनकी जिंदगी अब सरकारी दफ्तरों के चक्कर लगाने में बीत रही है. हर बार पहचान पत्र लेकर दर-दर भटक रहे हैं, ताकि वह सिस्टम को बता सकें कि वह जिंदा हैं.
अफसरों के जवाब
जब इस बारे में जिला समाज कल्याण अधिकारी सुषमा वर्मा से पूछा गया तो उन्होंने कहा कि 'मामले की जांच की जा रही है, जल्द ही कार्रवाई की जाएगी.' मोहम्मद आशिक और हसमतुल निशा अब भी सांसें ले रहे हैं, लेकिन सिस्टम के लिए वे ‘मृत’ हैं. पेंशन का पैसा रुक गया, मगर राशन मिल रहा है. यानी आधा सिस्टम मानता है कि वे ज़िंदा हैं, आधा उन्हें परलोक भेज चुका है.