क्या यमुना प्राधिकरण का 'विकास' फाइलों में 'डूब' जाएगा? CM के विश्वासी CEO डॉ. अरुणवीर सिंह के 'फेयरवेल' की INSIDE STORY
यमुना प्राधिकरण के CEO डॉ. अरुणवीर सिंह की विदाई के साथ उत्तर प्रदेश की नौकरशाही में 'ब्राह्मण बनाम क्षत्रिय' खींचतान फिर चर्चा में है. मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के करीबी माने जाने वाले अरुणवीर के हटने को सत्ता और ब्यूरोक्रेसी के गठजोड़ की चाल माना जा रहा है. क्या उनके बाद प्राधिकरण का विकास रुक जाएगा? अब निगाहें उस अधिकारी पर हैं जो इस पद को संभालेगा.

उत्तर प्रदेश की मौजूदा हुकूमत के दौर की 'ब्यूरोक्रेसी’ (IAS/IPS लॉबी) में दबे-पांव 'ब्राह्मण-क्षत्रिय' की उठा-पटक मची रहती है. यह कोई नई बात या 'ब्रेकिंग-न्यूज' नहीं है. 'जिसकी लाठी उसकी भैंस' से ही सत्ता-शासन चला करते हैं. वरना हमेशा नियम-कानूनों के कुर्रे की लगाम खींचकर जनता के ऊपर सवारी गांठने के शौकीन ब्यूरोक्रेट काबू भी न रहें. ब्यूरोक्रेट जानता है कि उसे सिर्फ और सिर्फ उसकी नजरों में नहीं गिरना चाहिए जो उसकी 'कुर्सी' छीनने की कुव्वत रखता है.
उत्तर प्रदेश जैसे बड़े सूबे में सत्ता और ब्यूरोक्रेसी के खेल का यूं तो लखनऊ सचिवालय (ब्यूरोक्रेट्स का गढ़) ही 'अखाड़ा' होता है. वहां से निकलने के बाद यह हवा सूबे में उन कुर्सियों तक पहुंचती है, जो ‘कमाऊ’ या कहिए 'बेहद-ताकतवर' होती हैं. मसलन राज्य का पुलिस महानिदेशक कौन बनेगा? राज्य का मुख्य सचिव कौन बनेगा? राज्य के विकास प्राधिकरणों का बॉस किस ब्यूरोक्रेट को बनाया जाना चाहिए? जो प्राधिकरणों की कमाई से सूबे की सरकार का 'खजाना' हमेशा 'फुल' रख सके...आदि.
धुंआ वहीं उठता है जहां कभी आग लगी हो
चलिए जब जिक्र राज्य में ताकतवर ब्यूरोक्रेसी का हो तब यहां दो नामों पर बेबाक बेहद संतुलित चर्चा जरूर कर लेना चाहिए. एक पूर्व आईएएस अधिकारी और एक मौजूदा आईएएस. दोनों ही सूबे की सरकार में विशेषकर मुख्यमंत्री के खेमे के काफी करीबी माने जाते हैं. काफी करीब वाली बात भी स्टेट मिरर हिंदी कोई पहली बार या एक्सक्लूसिव नहीं कह रहा है. सत्ता के चाबुक से भयभीत कोई भी यह अंदर की बात भले ही खुलकर न कहे, मगर कालिख वहीं लगी दिखाई देगी और धुंआ भी वहीं उठेगा जहां कभी आग लग चुकी होगी. इसे भी आंख मूंदकर नजरंदाज करना सही नहीं है.
सोने का अंडा देने वाली मुर्गी क्यों?
चलिए बात करते हैं सूबे की सरकार और उसके खजाने के लिए बीते करीब 5 साल से 'सोने का अंडा देने वाली मुर्गी' सिद्ध हो रहे यमुना एक्सप्रेस-वे औद्योगिक विकास प्राधिकरण (CEO Yamuna Expressway Industrial Development Authority या YEDA) की. वही 'यीडा' जो बीते करीब 5-6 साल में राज्य के सरकारी खजाने में अरबों-खरबों रुपये की आमदनी भर चुका है. किसानों की जमीनें खरीद-फरोख्त कर इलाके का विकास करना तो इसका काम है ही. इसके अलावा बीते तीन-चार साल से यमुना विकास प्राधिकरण का सबसे बड़ा निर्माणाधीन प्रोजेक्ट है विश्वस्तरीय अंततराष्ट्रीय हवाई अड्डा. इस हवाई अड्डे से यूं तो पहली उड़ान अब तक हो जानी चाहिए थी. इतने बड़े प्रोजेक्ट्स को मगर धरातल पर लाने में मगर अक्सर देरी भी जाती है, तो शोर-शराबा मचाने की जरूरत नहीं है. क्योंकि यह हवाई अड्डा न केवल उत्तर प्रदेश की ‘नाक’ या 'सिरमौर' होगा अपितु, यही अत्याधुनिक इंटरनेशनल एअरपोर्ट दुनिया में भारत की इज्जत को भी 'उड़ान' देगा.
प्रधानमंत्री से मुख्यमंत्री तक का 'ड्रीम प्रोजेक्ट'
आइंदा इंटरनेशनल हवाई अड्डे के इस ड्रीम प्रोजेक्ट से बेशक देश और सूबे के सरकारी खजाने भरेंगे. इससे भी ऊपर उठकर या कहीं ज्यादा इस अद्भूत एयरपोर्ट प्रोजेक्ट से कहीं न कहीं देश का अंतरराष्ट्रीय पटल पर 'मान-सम्मान' भी जुड़ा है. इसलिए देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, सूबे के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ और जेवर से भाजपा विधायक धीरेंद्र सिंह का भी यह 'ड्रीम-प्रोजेक्ट' है. साल 2009 में जब सूबे में बसपा नेत्री मायावती की सरकार हुआ करती थी तब यमुना विकास प्राधिकरण ने, अपनी पहली और अब तक की सबसे बड़ी 'प्लाट-आवंटन-स्कीम' (करीब 16 साल पहले) लॉन्च की थी. उस स्कीम में 120 मीटर से लेकर 4 हजार मीटर तक साइज वाले करीब 22 हजार प्लॉट शामिल किए गए.
जमीन से आसमान पर पहुंची कीमतें
जमीन की कीमत रखी गई 4750 रुपए मीटर. इन पंद्रह साल में यमुना एक्सप्रेस वे औद्योगिक विकास प्राधिकरण उन्नति के नजरिए से कहां पहुंच चुका, सुनने और समझने के बाद क्या आम-ओ-खास सब दांतों तले उंगली दबा लेते हैं. तब प्राधिकरण उप-मुख्य कार्यपालक अधिकारी हुआ करते थे वरिष्ठ आईएएस अधिकारी योगेंद्र कुमार बहल. स्टेट मिरर हिंदी से खास बातचीत में तत्कालीन उप-मुख्य कार्यपालक योगेंद्र कुमार बहल (वाईके बहल) कहते हैं, “जिस प्लॉट की स्कीम मैंने अपने दिशा-निर्देशन में 4750 रुपए प्रति स्क्वायर मीटर कीमत रखी थी. अब तो सुना है कि वही रेट बढ़कर यमुना विकास प्राधिकरण में आसमान छूकर 30 या 35 हजार रुपए मीटर पहुंच चुके हैं.
CM मयावती भी पसोपेश में थीं!
स्टेट मिरर हिंदी से खास मुलाकात में बात जारी रखते हुए पूर्व आईएएस अधिकारी और यमुना एक्सप्रेसवे औद्योगिक विकास प्राधिकरण को तत्कालीन चेयर मैन और सीईओ ललित श्रीवास्तव के साथ मिलकर, उसके शैशव काल में पाल-पोसकर बड़ा करके रिटायर हो चुके तत्कालीन उप-मुख्य कार्यपालक योगेंद्र कुमार बहल कहते हैं, “साल 2009 के अंतिम दिनों में जो 300 मीटर का प्लॉट मेरे द्वारा निकाली गई स्कीम में 14 लाख 28 रुपए का (एकमुश्त कीमत-भुगतान की अदायगी पर) था. आज सुनता हूं कि उस 14 लाख वाले प्लॉट की कीमत बढ़कर एक करोड़ से भी कुछ ऊपर पहुंच गई है. इस उन्नति से बड़ा संतोष और भला मुझे या, यमुना विकास प्राधिकरण के किसी भी सीईओ को और क्या हो सकता है? जब मैं यमुना विकास प्राधिकरण के तत्कालीन चेयरमैन व मुख्य कार्य पालक अधिकारी आईएएस ललित श्रीवास्तव के साथ, साल 2009 में मुख्यमंत्री मायावती के पास उस 22 हजार प्लॉट की स्कीम का रफ-ड्राफ्ट (प्रपोजल) लेकर पहुंचा तो वह भी असमंजस में थीं कि, हम कैसे किस फार्मूले से प्लाट की उतनी बड़ी स्कीम लॉन्च करके उसकी सफलता की गारंटी ले सकेंगे? तब तत्कालीन चेयरमैन ललित श्रीवास्तव और मैंने मुख्यमंत्री को आश्वस्त किया. आप हमें 22 हजार प्लॉट की स्कीम लॉन्च करने का मौका दीजिए और हमारे प्रस्ताव को मुख्यमंत्री मायावती ने मान भी लिया. उसके बाद हमने प्लॉट की सबसे बड़ी स्कीम लॉन्च कर दी. आज देखिए पंख लग चुका निरंतर सफलता और विकास की ऊंचाईयों पर उड़ते हुए यमुना विकास प्राधिकरण को दुनिया देख रही है.”
सब रिकॉर्ड ध्वस्त करने वाले IAS डॉ. अरुणवीर सिंह
अब जरा सोचिए कि आखिर ‘सोने का अंडा देने वाली मुर्गी’ साबित हो रहे ऐसे यमुना विकास प्राधिकरण के मुख्य कार्यकारी अधिकारी यानी सीईओ की ‘कुर्सी’ पर कौन ब्यूरोक्रेट (आईएएस) जम-चिपक कर बैठने को लालायित नहीं होगा. इस मामले में अगर अब तक किसी आईएएस ने अब तक के सब रिकॉर्ड ध्वस्त किए हैं, तो वह बिरला साबित हुए डॉ. अरुणवीर सिंह. डॉ. अरुणवीर का जब जिक्र छिड़े तो उनके बारे में जान लेना भी जरूरी है. डॉ. अरुणवीर सिंह उत्तर प्रदेश लोक सेवा यानी यूपीपीसीएस के प्रशासनिक अधिकारी से साल 2006 में प्रोन्नत होकर आईएएस बने थे.
बाकी ब्यूरोक्रेट इसलिए बेहाल हो गए
अरुणवीर सिंह की ईमानदार कार्यशैली और सत्ता के गलियारों से हमेशा दूर रहने वाले आईएएस की छवि के साथ-साथ, उनकी दूर-दष्टिता ने ही उन्हें कालांतर में यमुना एक्सप्रेसवे औद्योगिक विकास प्राधिकरण (यमुना एक्सप्रेसवे इंडस्ट्रियल डेवलपमेंट अथॉरिटी) का सीईओ बनवाया था. 30 जून 2019 को वह जब इस पद (साथ ही नियॉल के के भी सीईओ पद से रिटायर) से सेवा-निवृत्त हो गए. उस वक्त सूबे के कई मास्टरमाइंड आईएएस जो सूबे की सत्ता के गलियारों में ही चक्कर काटने के लिए चर्चित थे, डॉ. अरुणवीर सिंह से खाली हुई यमुना प्राधिकरण की कुर्सी पर जमने-चिपकने की तमन्ना संजोये हुए थे. उन सबके सपने तब टूट गए जब सूबे में योगी आदित्यनाथ की हुकूमत ने डॉ. अरुणवीर सिंह को ही फिर प्राधिकरण का सीईओ बनाकर उनके ऊपर दांव खेल दिया. मतलब, अचानक पलटी बाजी देखकर, यमुना प्राधिकरण के सीईओ की कुर्सी पर बैठकर मलाई चाटने को लालायित कई ब्यूरोक्रेट ठंडे हो गए.
योगी ने इशारे से सबको साफ समझा दिया!
मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने जब डॉ. अरुणवीर सिंह को उनके रिटायर होते ही एक साल का दुबारा सेवा विस्तार दे दिया. तो यमुना प्राधिकरण के सीईओ की कुर्सी के लिए लार-टपका रहे सूबे के आईएएस समझ गए कि, इस कुर्सी का ज्यादा मोह उन्हें ‘कमजोर’ कर देगा. फिर भी मन जब बेईमान हो तो कहां आसानी से मानता है. विकास प्राधिकरण का सीईओ बनने की बेईमान उम्मीद पाले बैठे कुछ आईएएस यह सोचकर शांत हो गए कि, जैसे तैसे अरुणवीर सिंह का एक साल कट जाएगा. तब उनका नंबर आ जाएगा. लेकिन पहले से ही मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की 'गुडबुक' में नामजद डॉ. अरुणवीर सिंह ने एक साल के सेवा-विस्तार में वह कर दिखाया, जिनसे सूबे की सरकार की 'बल्ले-बल्ले' करके, उन आईएएस को बिना कुछ करे-धरे सांप सुंघा दिया, जो उनके एक साल के सेवा-विस्तार की अवधि खतम होते ही, खुद यमुना एक्सप्रेसवे अथॉरिटी का सीईओ बनने का सपना संजो रहे थे.
अरुणवीर सिंह बनाम यमुना विकास प्राधिकरण
मतलब साल 2019 में रिटायरमेंट के बाद मिले पहले सेवा-विस्तार के बाद तूफानी गति से यमुना प्राधिकरण को आगे बढ़ाने में दिन-रात जुटे डॉ. अरुणवीर सिंह ने वह सब कर डाला, जिसकी कल्पना तो योगी आदित्यनाथ की हुकूमत ने भी नहीं की होगी. फिर क्या था अब तक ऐसे डॉ. अरुणवीर सिंह को योगी सरकार एक के बाद एक सात सेवा-विस्तार देकर खुद को अनुग्रहीत कर चुकी. डॉ. अरुणवीर सिंह ने इन सात सेवा-विस्तार में सीईओ की कुर्सी पर मलाई चखने के बजाए, प्राधिकरण को वहां पहुंचा दिया, जहां से सूबे की सरकार यमुना विकास प्राधिकरण को 'सोने का अंडा देने वाली मुर्गी' मानकर खुद ही उसे पालने-पोसने के लिए ताल ठोंककर मैदान में आ डटी.
अरुणवीर सिंह जो कुछ सौंप कर गए हैं...
मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की गुडबुक में हमेशा से शुमार रहे डॉ. अरुणवीर सिंह को 6-7 बार सेवा-विस्तार सरकार ने 'फोकट' में नहीं दिया था. दरअसल उन्होंने इन सभी सेवा-विस्तारों को 'भोगने' की बजाए उनका सरकार के हित में सही इस्तेमाल किया. मसलन, नोएडा इंटरनेशनल जेवर एयरपोर्ट के निर्माण की नींव और शुरूआत, मुख्यमंत्री के ड्रीम प्रोजेक्ट फिल्म सिटी की स्थापना के कामकाज की शुरूआत, फिल्म सिटी से बोनी कपूर जैसी बड़ी हस्ती को जोड़ने का सफल प्रयास, राया हेरिटेज सिटी, मेट्रो विस्तार व पॉड-टैक्सी जैसे प्रोजेक्ट की रुपरेखा पर अमल. 7 बार के सेवा-विस्तार के बाद, जब 30 जून 2025 यानी ऐसे बिरला डॉ. अरुणवीर सिंह के जाने की यानी 'फेयरवेल' की तारीख ज्यों ज्यों करीब आती त्यों-त्यों लखनऊ में मौजूद और खुद को ‘सत्ता’ का करीबी समझने की निरंतर गलती करते रहने वाले कुछ ब्यूरोक्रेट्स (आईएएस) के दिल की धड़कन बढ़ती गई. कुछ को लग रहा था कि अरुणवीर सिंह को आठवां सेवा-विस्तार मिल सकता है. कुछ सोच रहे थे कि अगर उनका फेयरवेल हो गया 30 जून 2025 को तो समझो वे सीईओ की कुर्सी से हमेशा के लिए चले गए.
मुंगेरीलाल के हसीन सपनों के बीच ही...
यमुना एक्सप्रेसवे प्राधिकरण का सीईओ बनने के इन्हीं ख्वाबों में उतराने वाले कुछ आईएएस को धक्का तब लगा जब, 30 जून 2025 को ‘फेयरवेल’ लेकर अरुणवीर सिंह तो प्राधिकरण के मुख्य कार्यपालक अधिकारी की कुर्सी से स-सम्मान चले गए. उनकी जगह लेकिन आईएएस अधिकारी आर के सिंह (राकेश कुमार सिंह) को चीफ मिनिस्टर योगी आदित्यनाथ ने सीईओ बना दिया. नए सीईओ बने राकेश कुमार सिंह पहले भी यमुना विकास प्राधिकरण मे पदस्थ रह चुके हैं. वह प्राधिकरण की रग-रग से पहले से बखूबी वाकिफ हैं. दूसरे, योगी आदित्यनाथ की नजरों में भी उनकी छवि डॉ. अरुणवीर सिंह की तुलना में कतई कमतर नहीं है.
कौन हैं आईएएस आर के सिंह...
योगी आदित्यनाथ को दरअसल यमुना विकास प्राधिकरण की कुर्सी को 'भोगने' वाला आईएएस सीईओ नहीं चाहिए था. इसलिए उन्होंने काफी पहले से ही डॉ. अरुणवीर सिंह की जगह किसे लाना है इस सवाल के जवाब में आईएएस राकेश कुमार सिंह का नाम तय करने के बाद ही, डॉ. अरुणवीर सिंह के फेयरवेल की तैयारी की. ताकि अरुणवीर सिंह द्वारा अपने 'पीक' पर पहुंचाए जा चुके यमुना विकास प्राधिकरण के दौड़ने की रफ्तार को कहीं ब्रेक न लगे. क्योंकि इससे सिर्फ सूबे की सरकार ही नहीं. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की भी आकांक्षांए सीधे तौर पर जुड़ी हैं. अब सीईओ बनाए गए आईएएस राकेश कुमार सिंह अब तक के सेवाकाल में बे-वजह की किसी राजनीति के लिए बदनाम नहीं रहे हैं. इसीलिए शायद सूबे की हुकूमत ने उन्हें गाजियाबाद-मुरादाबाद का जिलाधिकारी भी बनाया होगा. 2008 बैच के आईएएस अधिकारी राकेश कुमार सिंह अब तक सचिव मुख्यमंत्री कार्यालय में रहते हुए भी कई नीतिगत फैसले करवाने के लिए जाने-जाते हैं. यमुना प्राधिकरण के मुख्य कार्यपालक अधिकारी के साथ-साथ उन्हें अतिरिक्त प्रभार के रूप में नोएडा इंटरनेशनल एअरपोर्ट लिमिटेड के सीईओ का भी पद सौंपा गया है.
IAS ललित श्रीवास्तव को प्राधिकरण कैसे भूलेगा?
जिक्र जब यमुना एक्सप्रेसव-वे औद्योगिक विकास प्राधिकरण के आज के निखर चुके रंग-रूप का हो तो ऐसे में हमें, पूर्व आईएएस अधिकारी ललित श्रीवास्तव को भी यहां याद रखना होगा. वही ललित श्रीवास्तव जो बीते जमाने में यमुना विकास प्राधिकरण के साथ-साथ नोएडा और ग्रेटर नोएडा अथॉरिटी के भी चेयरमैन हुआ करते थे. आज हम सबके बीच मौजूद न रहने वाले और तब की मायावती सरकार में ललित श्रीवास्तव के रुतबा-रसूख की तूती किस कदर की बोला करती थी, इसका अंदाजा इसी से लगा लीजिए कि एक ललित श्रीवास्तव सूबे के तीन-तीन विकास प्राधिकरण के चेयरमैन रहकर उनकी लगाम अपने हाथ में थामे हुए थे. वही ललित श्रीवास्तव जिन्होंने अब से 15-17 साल पहले शैशव काल के यमुना विकास प्राधिकरण को आज के आसमान छूते प्राधिकरण में बदलने की खातिर, न दिन देखा न रात देखी. और यमुना विकास प्राधिकरण को उन्होंने आगे ले जाने के लिए कंधे से कंधा मिलाकर साथ और सहयोग लिया पूर्व आईएएस अधिकारी और तब के यमुना विकास प्राधिकरण के उप-मुख्य कार्यपालक अधिकारी योगेंद्र कुमार बहल का. मतलब, साफ है कि बीते कल के बेहद "कमजोर" यमुना एक्सप्रेसवे विकास प्राधिकरण को आसमानी उड़ान के वास्ते पंख लगाने का काम इन्हीं पूर्व आईएएस ललित श्रीवास्तव और वाईके बहल ने किया था. आज की पीढ़ी और यमुना एक्सप्रेसवे की आने पीढ़ियों को ऐसे पूर्व आईएएस ललित श्रीवास्तव और पूर्व IAS वाईके बहल को हमेशा याद रखना जरूरी है.
यक्ष प्रश्न का जवाब ही तो होंगे IAS आर के सिंह
जो लोग डॉ. अरुणवीर सिंह के 'फेयरवेल' की तारीख से ही सोच रहे हैं कि, क्या अब उनकी अनुपस्थिति में ‘यमुना एक्प्रेसवे प्राधिकरण’ का विकास गर्त में 'डूब' जाएगा? इसी 'यक्ष-प्रश्न' का समय के साथ सटीक जवाब देने की जिम्मेदारी ही तो सूबे के मुख्यमंत्री योगी आदित्य नाथ ने अपने पसंदीदा और निर्विवाद आईएएस राकेश कुमार सिंह के कंधों पर सौंपी है, उन्हें प्राधिकरण का नया मुख्य कार्यपालक अधिकारी नियुक्त करके.