शेख सलीम चिश्ती की दरगाह का इतिहास, जिसके कामाख्या मंदिर होने का किया जा रहा दावा; अकबर से जुड़ा है किस्सा
Sheikh Salim Chishti Dargah Kamakhya Temple Dispute : फतहेपुर सीकरी में स्थित शेख सलीम चिश्ती की दरगाह को लेकर विवाद पैदा हो गया है. दावा किया जा रहा है कि यह कामाख्या मंदिर है. इसे लेकर कोर्ट में भी याचिका दायर की गई है. आइए, आपको शेख सलीम चिश्ती की दरगाह के इतिहास के बारे में विस्तार से बताते हैं...

Sheikh Salim Chishti Dargah Kamakhya Temple Dispute: संभल और बदायूं के बाद अब उत्तर प्रदेश के फतेहपुर सीकरी में स्थित शेख सलीम चिश्ती की दरगाह को लेकर विवाद पैदा हो गया है. क्षत्रिय शक्तिपीठ विकास ट्रस्ट ने इसे लेकर कोर्ट में याचिका दायर की है. ट्रस्ट का दावा है कि यहां पर पहले कामाख्या मंदिर था. सिकरवार राजपूत राजाओं की पहली राजधानी सीकरी थी. इसे मुगल बादशाह अकबर ने नहीं बसाया था.
इतिहासकारों का मानना है कि यह क्षेत्र पहले अरावली की पहाड़ियों से घिरा हुआ था. प्राचीन काल में इन पहाड़ियों की कंदराओं और गुफाओं में आदि मानव रहा करते थे, जिसके निशान आज भी वहां मौजूद हैं.
क्या है पूरा मामला?
दरअसल, आज आगरा के अतिरिक्त सिविल जज-1 की कोर्ट में केस की सुनवाई होनी थी, लेकिन जज के छुट्टी पर होने के चलते सुनवाई नहीं हो पाई. अब मामले की अगली सुनवाई 9 जनवरी 2025 को होगी. मामले में माता कामाख्या, आस्थान माता कामाख्या, आर्य संस्कृति संरक्षण ट्रस्ट, योगेश्वर श्रीकृष्ण सांस्कृतिक अनुसंधान संस्थान ट्रस्ट, क्षत्रिय शक्तिपीठ विकास ट्रस्ट और अधिवक्ता अजय प्रताप सिंह वादी हैं, जबकि उत्तर प्रदेश सुन्नी सेंट्रल वक्फ बोर्ड, प्रबंधन कमेटी दरगाह सलीम चिश्ती, प्रबंधन कमेटी जामा मस्जिद प्रतिवादी हैं. बता दें कि कोर्ट में पहले से ही ताजमहल या तेजोमहालय और जामा मस्जिद के नीचे भगवान केशव देव के विग्रह दबे होने का मामला विचाराधीन है.
शेख सलीम चिश्ती की दरगाह का इतिहास
ऐसा माना जाता है कि अकबर को कोई संतान नहीं हो रही थी. इससे वह काफी परेशान था. एक दिन वह फतेहपुर सीकरी में जाकर शेख सलीम चिश्ती के पास पहुंचा और उनसे अपनी पीड़ा बताई. उसने शेख सलीम चिश्ती से पूछा कि उसके कितने बेटे होंगे, जिस पर उन्होंने जवाब दिया था- तीन. शेख सलीम चिश्ती के आशीर्वाद से अकबर के घर बेटे ने जन्म लिया, जिसका नाम उसने सलीम रखा गया. यही सलीम आगे चलकर जहांगीर के नाम से फेमस हुआ. इससे अकबर इतना प्रभावित हुआ कि उसने उनके दरगाह का निर्माण करा दिया, जिसका काम 1580 और 1581 के दौरान चला.
फतेहपुर सीकरी का मूल नाम क्या है?
वादी अधिवक्ता अजय प्रताप सिंह के मुताबिक, विवादित जगह इस समय भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण यानी एएसआई के अधीन एक संरक्षित स्मारक है. फतेहपुर सीकरी का मूल सीकरी है. इसे विजयपुरी सीकरी के नाम से भी जाना जाता है. यह सिकरवार क्षत्रियों का राज्य था. यहीं पर माता कामाख्या देवी का मूल गर्भ गृह और मंदिर परिसर था.
एएसआई के रिटायर्ड अधिकारी डॉक्टर डीवी शर्मा ने अपनी किताब 'आर्कियोलॉजी ऑफ फतेहपुर सीकरी- न्यू डिस्कवरीज' में बताया है कि फतेहपुर सीकरी के बीर छबीली टीले की खुदाई में सरस्वती और जैन मूर्तियां मिली थीं, जो 1000 ईस्वी की थीं. उन्होंने अपनी किताब के पृष्ठ संख्या 86 पर बताया कि विवादित संपत्ति का निर्माण हिंदू और जैन मंदिरों के अवशेषों से बनाया गया था. अंग्रेज अफसर ईबी हावेल ने विवादित संपत्ति के खंभों और छत को हिंदू शिल्पकला बताया.
खानवा युद्ध का गवाह था मंदिर
अधिवक्ता अजय प्रताप सिंह के मुताबिक, जब बाबर और राणा सांगा के बीच खानवा का जंग लड़ा गया था तो उस समय सीकरी के राजा राव धामदेव थे. उन्होंने भी युद्ध में हिस्सा लिया था. जब राणा सांगा घायल हो गए थे तो राजा राव धामदेव धर्म को बचाने की खातिर माता कामाख्या के विग्रह को ऊंट पर रखकर पूर्व दिशा की ओर चले गए. उन्होंने यूपी के गाजीपुर जिले के सकराडीह में कामाख्या माता का मंदिर बनाया और विग्रह को पुनर्स्थापित किया.
फतेहपुरी सीकरी आगरा से करीब 35 किमी की दूरी पर स्थित है. इसकी सीमा राजस्थान से लगती है. 1571 से लेकर 1585 तक यह मुगल बादशाह की राजधानी थी. अकबर ने यहां बुलंद दरवाजा और कई महल बनवाए. अकबर ने पहले शेख सलीम चिश्ती की लाल पत्थर से दरगाह बनवाई थी, जिसे बाद में जहांगीर ने सफेद संगमरमर से बनवाया था. अजय प्रताप सिंह का दावा है कि शेख सलीम चिश्ती की दरगाह पर पहले कामाख्या मंदिर था. एएसआई की रिपोर्ट खुदाई में भी इस बारे में कई सबूत मिले हैं.