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8 साल की उम्र में मेला देखने के लालच ने परिवार से किया दूर, 49 साल बाद हुई घर वापसी

आजमगढ़ के मऊ जिले से एक दिल को छू लेने वाली घटना सामने आई है, जहां पर एक महिला अपने परिवार से 49 साल बाद मिली. वह महिला जब 8 साल की थी तो अपने परिवार के साथ मेले में गई थी वहीं से वह लापता हो गई थी. पुलिस की मदद से महिला अपने परिवार से वापस मिल पाईं. परिवार के साथ हुए इस पुनर्मिलन से उनके जीवन में नई जगह बनी हैं.

8 साल की उम्र में मेला देखने के लालच ने परिवार से किया दूर, 49 साल बाद हुई घर वापसी
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( Image Source:  Social Media- X-(AZAMGARH POLICE) )

आजमगढ़: एक दिल छू लेने वाली घटना में, एक महिला, जो 49 साल पहले एक मेले में अपने परिवार से बिछड़ गई थी, आजमगढ़ पुलिस की मदद से अपने परिवार से फिर से मिल सकी. यह कहानी न केवल उसके धैर्य और संघर्ष की मिसाल है, बल्कि पुलिस प्रशासन की सूझबूझ और इंसानियत की भी. 1975 में उत्तर प्रदेश के मुरादाबाद जिले में एक 8 साल की बच्ची, फूला देवी, अपने परिवार के साथ मेले में गई थी. खेलते-खेलते वह अपने भाई-बहनों से बिछड़ गई. एक बुजुर्ग व्यक्ति ने उसे बहलाकर अपने साथ ले गया और फिर उसे रामपुर में बेच दिया.

49 साल पुरानी गुमशुदगी का खुलासा

पुलिस के "मिशन मुस्कान" के तहत इस मामले का खुलासा हुआ. 19 दिसंबर को रामपुर जिले के एक प्राथमिक विद्यालय की प्रधानाचार्या डॉक्टर पूजा रानी ने आजमगढ़ पुलिस को फूला देवी की जानकारी दी. इसके बाद पुलिस ने जांच शुरू की और महिला के परिवार को खोज निकाला. फूला देवी ने पुलिस को बताया कि उनका घर मऊ जिले के दोहरीघाट थाना क्षेत्र के चूंटीदार गांव में था. पुलिस ने इस जानकारी के आधार पर छानबीन की और उनके भाई लालधर, जो अब आजमगढ़ के रौनापार क्षेत्र में रहते हैं, से संपर्क किया.

कैसे हुआ था अपहरण?

फूला देवी ने खुलासा किया कि बचपन में एक बुजुर्ग व्यक्ति ने लालच देकर उनका अपहरण किया और उन्हें रामपुर के सहसपुर गांव में बेच दिया. वहां उन्होंने मजदूरी की, लेकिन अपनी आपबीती को एक सहायक प्रधानाचार्या के साथ शेयर किया. उनके प्रयासों से यह मामला पुलिस तक पहुंचा. 49 साल बाद अपने परिवार से मिलकर फूला देवी बेहद खुश हैं. वर्तमान में वह 57 वर्ष की हैं और उनका एक 34 वर्षीय बेटा भी है. परिवार के साथ इस पुनर्मिलन ने उनके जीवन में नई उम्मीदें जगाई हैं.

पुलिस की कामयाबी

यह कहानी पुलिस प्रशासन, पीड़िता की सहनशक्ति, और समाज के सहयोग की मिसाल है. "मिशन मुस्कान" ने न केवल एक परिवार को पुनर्मिलन का मौका दिया, बल्कि यह साबित किया कि उम्मीद और संघर्ष के बल पर कोई भी असंभव कार्य संभव हो सकता है.

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