नाम महफूज और काम ठगी, CBI अफसर बनकर रिटायर्ड वैज्ञानिक से 1.29 करोड़ ठगे
उत्तर प्रदेश एसटीएफ ने बरेली के पूर्व वैज्ञानिक शुकदेव नन्दी से 1.29 करोड़ की डिजिटल ठगी का भंडाफोड़ किया है। साइबर ठगों ने उन्हें व्हाट्सएप कॉल पर खुद को CBI अफसर बताकर तीन दिन तक मानसिक रूप से बंधक बनाकर पैसे वसूले. जांच में सामने आया कि ठगी की रकम बरेली की कंपनी के निदेशक प्रदीप कुमार सिंह के खाते में ट्रांसफर हुई, जिसे कमीशन के रूप में USDT में भुगतान मिलता था.

आज की डिजिटल-दुनिया में मास्टरमाइंड ठगों के लिए सिर्फ “शिकार” से मतलब होता है. वह शिकार कौन है? इससे इन्हें कोई खास सरोकार नहीं होता है. इसीलिए कानून और जांच एजेंसियों के चाबुक से बेफिक्र कहिए या लापरवाह साइबर ठगों ने भारत के एक पूर्व वैज्ञानिक को भी ठगी के जाल में फंसाने से नहीं बख्शा. वह भी खुद को सीबीआई अफसर बताकर. सोचिए जिस सीबीआई के नाम से ही अच्छे-अच्छों को पसीना आ जाता हो, उसी सीबीआई को ‘मोहरा’ बनाकर अगर कोई ठगी करने पर उतर आए, तो वह किस कदर के खतरनाक इरादों वाला होगा. पूर्व वैज्ञानिक के साथ ठगी की यह वारदात उन्हें “डिजिटल-अरेस्ट” करके अंजाम दी गई.
फिलहाल इस मामले का भांडाफोड़ किया है उत्तर प्रदेश की स्पेशल टास्क फोर्स यानी यूपी पुलिस एसटीएफ (UP Police STF) ने. इस बात की पुष्टि खुद स्टेट मिरर हिंदी से राज्य पुलिस एसटीएफ मुख्यालय ने रविवार को की. शिकार बने रिटायर्ड वैज्ञानिक का नाम शुकदेव नन्दी है. वह यूपी के बरेली जिले में स्थित भारतीय पशु चिकित्सा अनुसंधान संस्थान (Indian Veterinary Research Institute IVRI Bareilly) से सेवा-निवृत्त हो चुके हैं. जबकि गिरफ्तार मास्टरमाइंड साइबर अपराधियों का नाम प्रदीप कुमार सिंह (50) निवासी थाना पीजीआई लखनऊ और दूसरे का नाम महफूज (21) निवासी थाना वजीरगंज, लखनऊ है. इन दोनो को इकाना स्टेडियम के पास से लखनऊ में शनिवार को गिरफ्तार किया गया.
ठगों ने वैज्ञानिक को बनाया मानसिक रूप से बंधक
राज्य पुलिस एसटीएफ मुख्यालय के मुताबिक, “कुछ दिन पहले पूर्व वैज्ञानिक शुकदेव नन्दी के मोबाइल पर व्हाट्सएप कॉल के जरिए तीन दिन तक धमका कर उन्हें डिजिटल अरेस्ट करके रखा गया था. इन तीन दिनों में ठगों ने उनसे 1 करोड़ 29 लाख रुपए उनके अलग अलग खातों से वसूल लिए. 26 जून 2025 को पीड़ित वैज्ञानिक ने थाना साइबर क्राइम जिला बरेली में ही मुकदमा दर्ज करवा दिया. इस मामले की जांच संबंधित थाना पुलिस कर ही रही थी. साथ ही बरेली के साइबर क्राइम थाना पुलिस ने यूपी एसटीएफ से भी जांच में मदद मांगी.”
ICICI बैंक में प्रदीप के कंपनी खाते से हुआ करोड़ों का लेन-देन
यूपी एसटीएफ मुख्यालय ने अपनी जांच टीम में अपर पुलिस अधीक्षक लाल प्रताप सिंह, पुलिस उपाधीक्षक सुधांशु शेखर, इंस्पेक्टर अंजनी कुमार पाण्डेय, इंस्पेक्टर आदित्य कुमार सिंह, हेड कांस्टेबल विनोद सिंह, गौरव सिंह, सुनील कुमार सिंह, अखिलेश कुमार, प्रभाकर पाण्डेय और शेर बहादुर को शामिल करके, एक विशेष दल गठित कर दिया. एसटीएफ की इस टीम ने सबसे पहले प्रदीप कुमार सिंह को गिरफ्तार किया. प्रदीप कुमार सिंह बरेली में मौजूद श्री नारायणी इंफ्रा डेवेलपर प्राइवेट लिमिटेड का निदेशक है. उसकी कंपनी का कार्पोरेट खाता आईसीआईसीआई बैंक में है. इस खाते में प्रदीप कुमार सिंह ही लेनदेन करता है.
वैज्ञानिक से ठगे गए 1.29 करोड़ भी प्रदीप के खाते में आए
प्रदीप कुमार सिंह डिजिटल ठगी में हासिल मोटी रकम इसी खाते में, बाकी तमाम साइबर अपराधियों से मंगवा लेता था. उसके बाद सभी साइबर ठग अपने अपने हिस्से का पैसा बांट लेते थे. इसके बदले बैंक खाता मालिक प्रदीप कुमार सिंह को कमीशन के बतौर मोटी रकम बिना कुछ करे-धरे ही मिल जाती थी. अपने कमीशन की रकम प्रदीप कुमार सिंह ठगों से बाइनेन्स एप के जरिए USDT के रूप में भेजते थे. ताकि कभी भांडा फूटने पर वह जल्दी शक के दायरे में न आए. वैज्ञानिक शुकदेव नन्दी को डिजिटल अरेस्ट करके जो 1 करोड़ 29 लाख की मोटी रकम ठगों के हाथ लगी थी, वह भी इस प्रदीप कुमार सिंह के ही खाते में आई. इसके बदले साइबर ठग आरोपी और अब गिरफ्तार प्रदीप कुमार सिंह को बाइनेन्स एप के जरिए 871 USDT भेज चुके हैं. इस बात की तस्दीक एसटीएफ टीम भी कर चुकी है. 5 जुलाई 2025 को जैसे ही एसटीएफ ने इस साइबर ठग कंपनी के कुछ मास्टरमाइंड को घेर लिया, तभी से प्रदीप कुमार सिंह छिपता फिर रहा था.
गिरफ्तार प्रदीप कुमार सिंह की सी ही हालत उज्जैब की हो चुकी है. उज्जैब को अपने जाल में मोटी कमीशन राशि देने का लालच देकर पटाया था. उसने एसटीएफ द्वारा गिरफ्तार किए जा चुके महफूज के कहने पर इंडियन बैंक में खाता खुलवा लिया था. उज्जैब के खाते में अब तक ठगी के 9 लाख जमा कराए जा चुके हैं. गिरफ्तार ठगों ने कबूला है कि शिकार को डिजिटल अरेस्ट करने के वक्त, यह गैंग पीड़ित व्यक्ति के सामने खुद को सीबीआई अफसर बताते थे. जिससे डिजिटल अरेस्ट हुआ शिकार बुरी तरह से डर जाता था. और यहीं से यह साइबर ठग कंपनी अपने मास्टरमाइंड का इस्तेमाल करके ऑनलाइन अवैध-वसूली का काला-कारोबार अमल में लाना प्रारंभ कर देते थे.