फिर कथावाचक को लेकर मचा बवाल, जाति छिपाने के चलते सरेआम मंगवाई माफी, वीडियो वायरल
धार्मिक कथाओं का उद्देश्य होता है लोगों को भगवान की लीलाओं से जोड़ना. लेकिन अब धर्म और जाति आड़े आ रही है. जहां यूपी के लखीमपुर खीरी से एक मामला सामने आया है, जहां कथावाचक ने अपनी जाति छुपाई, जिसके चलते उन्हें सरेआम माफी मांगनी पड़ी.

उत्तर प्रदेश के लखीमपुर खीरी से एक चौंकाने वाला मामला सामने आया है, जहां एक कथावाचक को अपनी जाति छिपाने के आरोप में सरेआम माफी मांगनी पड़ी. बताया जा रहा है कि जब ग्रामीणों को उसकी असली जाति के बारे में जानकारी हुई तो मंच पर ही विरोध शुरू हो गया.
भीड़ ने कथावाचक को घेर लिया और माफी मंगवाकर ही कार्यक्रम आगे बढ़ने दिया. इस पूरे घटनाक्रम का वीडियो सोशल मीडिया पर तेजी से वायरल हो रहा है. यह घटना ठीक उसी तरह की है, जैसी कुछ समय पहले इटावा में हुई थी, जिसने राष्ट्रीय स्तर पर चर्चा छेड़ दी थी.
लखीमपुर खीरी का ताज़ा विवाद
लखीमपुर खीरी जिले के खमरिया कस्बे के राम जानकी मंदिर में सात दिनों से श्रीमद् भागवत कथा का आयोजन चल रहा था. हर दिन सैकड़ों श्रद्धालु कथा सुनने के लिए पहुंचते थे और माहौल भक्ति रस से भरा रहता था. लेकिन बीच कथा में अचानक माहौल बदल गया. ग्रामीणों को पता चला कि मंच पर कथा सुना रहे बाबा ब्राह्मण नहीं हैं, बल्कि किसी दूसरी जाति या धर्म से जुड़े हुए हैं. यह चर्चा धीरे-धीरे पूरे पंडाल में गूंजने लगी और श्रद्धालुओं के बीच गुस्सा भड़क उठा. देखते ही देखते कथा बीच में ही रोक दी गई और कथावाचक को मंच पर ही खड़े होकर माफी मांगने के लिए मजबूर किया गया.
बाबा ने मांगी माफी
ग्रामीणों का आक्रोश बढ़ता देख बाबा ने मंच से ही अपनी असली पहचान बताई. उन्होंने बताया कि उनका नाम पारस मौर्य है और वे मौर्य वंश से संबंध रखते हैं. बाबा ने कबूल किया कि उन्होंने जाति छिपाकर कथा सुनाई और अगर इससे किसी की भावनाएं आहत हुई हैं तो वे इसके लिए माफी मांगते हैं. सोशल मीडिया पर वायरल हो रहे वीडियो में साफ देखा जा सकता है कि बाबा हाथ जोड़कर मंच पर खड़े होकर माफी मांग रहे हैं. वहीं दूसरी ओर, भीड़ उनकी माफी स्वीकार करने के बाद भगवान के जयकारे लगाते हुए दिखाई देती है.
इटावा की याद दिलाता मामला
यह घटना जून में इटावा जिले के दादरपुर गांव में हुई एक घटना की याद दिला देती है. वहां भी श्रीमद् भागवत कथा का आयोजन था. कथावाचक मुकुट मणि सिंह यादव और संत सिंह यादव कथा कर रहे थे. एक दिन कथा सुनाने के बाद जब वे खाना खाने गए, तो ग्रामीणों ने उनकी जाति पूछनी शुरू कर दी. जैसे ही उनकी जाति का पता चला, गुस्साए ग्रामीणों ने दोनों की पिटाई कर दी. इतना ही नहीं, कथावाचकों का मुंडन भी करा दिया गया था. उस घटना का वीडियो भी सोशल मीडिया पर खूब वायरल हुआ था और पूरे देश में चर्चा का विषय बना था.
जाति बनाम आस्था
दोनों घटनाएं इस बात का सबूत हैं कि जहां एक ओर लोग कथा सुनकर भगवान की भक्ति में डूबना चाहते हैं, वहीं दूसरी ओर जाति की परतें आज भी समाज के लिए एक बड़ी सच्चाई हैं. सवाल यही उठता है कि क्या भगवान की कथा कहने वाले की जाति मायने रखनी चाहिए, या फिर मायने रखने चाहिए उसके ज्ञान और श्रद्धा के. लखीमपुर खीरी का ताज़ा विवाद और इटावा की पुरानी घटना दोनों ही समाज के सामने एक ही सवाल खड़ा करती हैं – क्या आस्था की ताकत इतनी कमजोर है कि वह जाति की दीवार से टूट जाती है?