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जलालाबाद बना ‘परशुरामपुरी’! 3000 साल पुराने इतिहास को मिली नई पहचान, जानें भगवान परशुराम से जुड़ा इतिहास

शाहजहांपुर जिले के जलालाबाद नगर का नाम बदलकर अब ‘परशुरामपुरी’ कर दिया गया है. गृह मंत्रालय ने इसकी औपचारिक मंजूरी दे दी है. केंद्रीय राज्यमंत्री जितिन प्रसाद ने इसे सनातन समाज के लिए गौरवपूर्ण क्षण बताया. जलालाबाद भगवान परशुराम की जन्मस्थली मानी जाती है और यहां स्थित प्राचीन मंदिर धार्मिक श्रद्धा का बड़ा केंद्र है. अब इसे धार्मिक पर्यटन स्थल के रूप में विकसित किया जा रहा है.

जलालाबाद बना ‘परशुरामपुरी’! 3000 साल पुराने इतिहास को मिली नई पहचान, जानें भगवान परशुराम से जुड़ा इतिहास
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( Image Source:  sora ai )
नवनीत कुमार
Edited By: नवनीत कुमार

Published on: 20 Aug 2025 2:30 PM

शाहजहांपुर जिले के जलालाबाद नगर का नाम बदलकर अब ‘परशुरामपुरी’ कर दिया गया है. गृह मंत्रालय ने इस संबंध में औपचारिक पत्र जारी कर दिया है. नाम परिवर्तन की मंजूरी मिलने पर केंद्रीय राज्यमंत्री जितिन प्रसाद ने गृह मंत्री अमित शाह का आभार जताया और इसे सनातन समाज के लिए गर्व का क्षण बताया.

जितिन प्रसाद ने सोशल मीडिया पर लिखा कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के नेतृत्व में लिया गया यह फैसला भगवान परशुराम की महिमा को और बढ़ाता है. प्रदेश सरकार पहले ही इस प्रस्ताव को अनुमोदन दे चुकी थी और प्रमुख सचिव ने गृह मंत्रालय से स्वीकृति देने का अनुरोध किया था. अब जलालाबाद आधिकारिक रूप से परशुरामपुरी कहलाएगा.

क्यों मशहूर है जलालाबाद?

शाहजहांपुर जिले का जलालाबाद नगर भगवान परशुराम की जन्मस्थली के रूप में विख्यात है. यह ऐतिहासिक जगह परशुराम जी की जन्मभूमि के रूप में शासन द्वारा 24 अप्रैल 2022 को आधिकारिक रूप से घोषित की गई थी. यहां पर भगवान परशुराम का एक प्राचीन और प्रसिद्ध मंदिर भी स्थित है, जो नगरवासियों और श्रद्धालुओं के लिए एक महत्वपूर्ण धार्मिक स्थल है.

परशुराम से जुड़ा है ऐतिहासिक महत्व

परशुराम एक प्रसिद्ध हिंदू देवता हैं और उनके जन्म का स्थान जलालाबाद माना जाता है. यहां से ही उन्होंने धर्म की स्थापना और अधर्म का नाश करने के लिए अपने कर्मों की शुरुआत की. पौराणिक ग्रंथों और लोकवृत्तांतों में जलालाबाद को परशुराम जी की जन्मभूमि के रूप में कई बार उल्लेखित किया गया है. यहां पर मंदिरों के साथ-साथ कई धार्मिक और सांस्कृतिक आयोजन भी होते हैं जो स्थानीय भावनाओं और श्रद्धा को दर्शाते हैं.

धार्मिक पर्यटन केंद्र के रूप में हो रहा विकसित

भगवान परशुराम की जन्मस्थली घोषित होने के बाद, जलालाबाद में मंदिर प्रांगण का सौंदर्यीकरण और श्रद्धालुओं की सुविधा के लिए विभिन्न विकास कार्य किए जा रहे हैं. मुख्यमंत्री संवर्धन योजना और अमृत सरोवर योजना के तहत करोड़ों रूपयों की धनराशि से मंदिर के पास तालाब का संरक्षण, घाटों का निर्माण, और रास्तों का चौड़ीकरण जैसे कार्य सम्पन्न हो रहे हैं. इस प्रकार, जलालाबाद को एक प्रमुख धार्मिक पर्यटन केंद्र के रूप में विकसित किया जा रहा है.

परशुराम का ऐतिहासिक महत्व

  • परशुराम भगवान विष्णु के दशावतारों में छठे अवतार हैं. उन्हें भगवान विष्णु का आदेशावतार भी कहा जाता है.
  • वह वैदिक संस्कृति और धर्म की रक्षा के लिए विख्यात हैं.
  • पौराणिक कथाओं के अनुसार, उन्होंने पृथ्वी को 21 बार क्षत्रियों से मुक्त किया था, क्योंकि क्षत्रियों का अत्याचार और अन्याय बढ़ गया था.
  • परशुराम के पिता महर्षि जमदग्नि की हत्या हो जाने के बाद, उन्होंने क्षत्रियों के विरुद्ध युद्ध किया और उनका संहार किया. इस प्रकार उन्होंने अधर्म के विरुद्ध कठोर संघर्ष किया.
  • युद्ध वीरता और शस्त्र विद्या (विशेषकर कुल्हाड़ी या फरसा) के लिए भी परशुराम प्रसिद्ध हैं. शिवजी से प्राप्त फरसा उनके नाम की पहचान भी है.
  • वे एक ब्राह्मण होने के बावजूद कर्म से क्षत्रिय थे और उन्होंने वैदिक धर्म की स्थापना और प्रचार-प्रसार में भूमिका निभाई.
  • परशुराम को सात चिरंजीवियों में से एक माना जाता है, जो आज भी जीवित हैं.
  • पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, उन्होंने भारत के कई हिस्सों में नई भूमि का निर्माण किया, जैसे कि कोंकण, गोवा और केरला, समुद्र को पीछे धकेलकर.
  • उनका धर्म और आदर्श था कि राजा का कर्तव्य केवल शासन करना नहीं बल्कि धर्म और न्याय की स्थापना करना है.
  • उन्होंने अपने पिता की हत्या का बदला लेने के बाद अश्वमेध यज्ञ किया और फिर शस्त्र त्याग कर महेंद्र पर्वत पर तप करते हुए आध्यात्मिक जीवन अपनाया.
  • परशुराम का इतिहास धर्म, युद्ध, न्याय और विधि के मिश्रण से बना हुआ है और वे वैदिक धर्म की रक्षा के प्रतीक के रूप में पूजनीय हैं.
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