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स्टेशन पर सोई, टूटी कोहनी, फिर भी नहीं मानी हार, कौन है यूपी की तबस्सुम जिसने पास किया NEET UG का एग्जाम

अगर मन में कोई काम करने की ठान ली जाए, तो फिर कितनी भी मुश्किल आ जाए उससे जज्बा कम नहीं होता है. इसका जीता-जागता उदाहरण गोरखपुर की तबस्सुम है, जिसने महज 18 साल की उम्र में NEET UG 2025 का एग्जाम क्लियर किया है.

स्टेशन पर सोई, टूटी कोहनी, फिर भी नहीं मानी हार, कौन है यूपी की तबस्सुम जिसने पास किया NEET UG का एग्जाम
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हेमा पंत
Edited By: हेमा पंत

Updated on: 13 July 2025 7:28 PM IST

महज 18 साल की उम्र में गोरखपुर की तबस्सुम जहां ने NEET UG 2025 में 550 अंक हासिल करके यह साबित कर दिया कि मुश्किलें चाहे कितनी भी बड़ी हों, अगर इरादे मजबूत हों तो कुछ भी हासिल किया जा सकता है. एक मामूली परिवार से आने वाली तबस्सुम ने अपनी सीमित साधनों को कभी अपनी सफलता की राह में बाधा नहीं बनने दिया.

उनकी कहानी इस बात का जीवंत उदाहरण है कि लड़कियां हर क्षेत्र में सफलता की नई मिसाल कायम कर सकती हैं, बस उन्हें मौका मिले, तो वे आसमान को भी छू सकती हैं.

सपनों की पहली उड़ान: हार नहीं मानी

तबस्सुम का डॉक्टर बनने का सपना बचपन से ही उसके दिल में पनप रहा था. इसके लिए पहले 2023 में उसने NEET की पहली परीक्षा दी और 410 नंबर हासिल किए. ये बहुत बड़ा स्कोर नहीं था, लेकिन तबस्सुम ने हार मानने की बजाय अपने सपनों को और मजबूत किया. अगले साल 2024 में मेहनत का फल दिखा, उसका स्कोर बढ़कर 621 तक पहुंच गया. सभी को उम्मीदें थीं कि अब उसका नाम मेडिकल कॉलेज में हो जाएगा, लेकिन किस्मत को कुछ और ही मंजूर था. पेपर लीक के विवाद की वजह से उस साल कटऑफ इतना बढ़ गया कि तबस्सुम का सपना फिर से टल गया. लेकिन तबस्सुम ने अपने ख्वाब को कभी कमज़ोर नहीं पड़ने दिया. उसने तय कर लिया कि चाहे कुछ भी हो, वह सिर्फ और सिर्फ MBBS करेगी.

बेघर रातें और टूटी हड्डियां: संघर्ष की दास्तान

तबस्सुम का बचपन बहुत आसान नहीं था. कोविड-19 की वजह से स्कूल बंद हो गया था, जिससे उसकी पढ़ाई खासकर कक्षा 11 और 12 की रेगुलर क्लास रुक गईं. लेकिन यह मुश्किलें केवल पढ़ाई तक सीमित नहीं थीं. एक दिन, जब तबस्सुम घर पर सफाई कर रही थी, तो अचानक वह स्टूल से गिर पड़ी. उसकी कोहनी की हड्डी उखड़ गई. परिवार ने उसे सरकारी अस्पताल में भर्ती कराया, लेकिन वहां का हाल देखकर उसका विश्वास टूट सा गया. तबस्सुम ने बताया कि 'अस्पताल में ऐसा महसूस हुआ जैसे कोई मरीज़ों की बात सुनने वाला नहीं था. इलाज के नाम पर कुछ भी सही नहीं हुआ.' इतना ही नहीं, इलाज के दौरान उन्हें और उनकी मां को कई रातें रेलवे स्टेशन पर बितानी पड़ीं.

मुश्किल घड़ी ने किया मजबूत

इन अनुभवों ने उसके दिल में एक मजबूत इच्छा जगा दी. तबस्सुम ने ठाना कि वह एक ऐसी डॉक्टर बनेगी, जो मरीज़ों की सुनती हो, उनकी तकलीफ समझती हो और दिल से उनका इलाज करती हो. इस पर तबस्सुम ने कहा कि ' मैं एक ऐसे मुकाम पर पहुंचना चाहती हूं, जहां मैं सच में लोगों की मदद कर सकूं.' यही जज़्बा तबस्सुम को आगे बढ़ाता रहा और उसका सपना अब केवल उसके लिए नहीं, बल्कि उन सभी के लिए उम्मीद बन गया जो सही इलाज और सहानुभूति के हकदार हैं.

तीसरा कोशिश, स्कॉलरशिप और नई उम्मीद

2024 में जब तबस्सुम की मेहनत के बावजूद सफलता नहीं मिली, तो उन्होंने हार नहीं मानी. उसने एक साल का गैप लेकर खुद को पूरी तरह से पढ़ाई में डुबो दिया. इस बार उसके साथ एक नई उम्मीद भी थी Physics Wallah की स्कॉलरशिप मिली, जिसने उसके सपनों को और मजबूती दी. पढ़ाई के लिए तबस्सुम का कोई कड़ाई से तय किया हुआ टाइमटेबल नहीं था, लेकिन एक बात उसने कभी अपनी नींद से समझौता नहीं किया. इतना ही नहीं, तनाव और घबराहट को दूर रखने के लिए उसने एक खास तरीका अपनाया. वह खाना खाते वक्त 'कर हर मैदान फतेह’ जैसे गाने सुनती थी, ताकि मन शांत रहे और उत्साह बना रहे.

पहली पीढ़ी की डॉक्टर बनने का सपना

तबस्सुम के परिवार में कोई भी हाई एजुकेशन हासिल नहीं कर पाया था. उनकी मां सिलाई का काम करके घर का गुज़ारा चलाती है. वह सिर्फ बीए के पहले साल तक पढ़ पाईं थीं. अब जब उनकी बेटी डॉक्टर बनने की राह पर कदम बढ़ा रही है, तो मां की आंखों में गर्व की चमक है. वहीं, तबस्सुम का छोटा भाई, जिसने दसवीं तक पढ़ाई की है, फिलहाल गुजरात में काम कर रहा है, लेकिन तबस्सुम चाहती हैं कि वह अपने सपनों को पूरा करने के लिए पढ़ाई जारी रखे और गोरखपुर वापस आ जाए.

एक प्रेरणा, जो रास्ता दिखाती है

तबस्सुम जहां की कहानी सिर्फ NEET की तैयारी की नहीं है, यह सपनों को ज़िंदा रखने की कहानी है. यह उस उम्मीद की कहानी है जो तमाम संघर्षों, आर्थिक तंगी, सामाजिक दबाव और असहाय स्थितियों के बावजूद कभी बुझी नहीं. तबस्सुम न सिर्फ़ अपने परिवार की पहली डॉक्टर बनने जा रही हैं, बल्कि हजारों लड़कियों के लिए एक रौशनी बनकर उभरी हैं. यह दिखाने के लिए कि हौसले अगर बुलंद हों, तो कोई मंज़िल दूर नहीं.

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