फिर चर्चा में क्यों सरस्वती नदी, जैसलमेर के मोहनगढ़ में ऐसा क्या हुआ जिससे वैज्ञानिक हुए हैरान?
मोहनगढ़ में अचानक फूटे जलधारा को कुछ लोग सरस्वती नदी के पुनर्जीवन का संकेत मान रहे हैं, लेकिन भूवैज्ञानिक इससे सहमत नहीं हैं. भूवैज्ञानिक के अनुसार, यह घटना रेगिस्तानी क्षेत्र में मौजूद भूगर्भीय जल स्रोतों के दबाव के कारण हुई हो सकती है. ऐसे मामलों में, भूगर्भीय दबाव बढ़ने पर पानी सतह पर आ जाता है. यह एक सामान्य भूगर्भीय रिसाव की प्रक्रिया है.

जैसलमेर के नहरी क्षेत्र मोहनगढ़ में ट्यूबवेल की खुदाई के दौरान जमीन से पानी और गैस का रिसाव होने लगा. लगभग 48 घंटे की कड़ी मशक्कत के बाद जमीन से बहता पानी आखिरकार बंद हो गया. इस घटना के बाद विभिन्न प्रकार के दावे और चर्चाएं सामने आईं हैं. सोशल मीडिया पर भी इसपर जोरशोर से चर्चा करने लगे हैं.
बता दें, खुदाई के दौरान जमीन धंसने से लगभग 22 टन वजन वाली मशीन से लदा एक ट्रक 850 फीट गहरे गड्ढे में समा गया था. फटी हुई जमीन से अचानक पानी फूटकर बाहर आने लगा, जिसमें गैस और कीचड़ भी शामिल थे. इस घटना के बाद कई लोगों ने दावा किया कि यह जल स्रोत सरस्वती नदी का है और सरस्वती नदी फिर से धरती की सतह पर लौट आई है.
सरस्वती नदी या भूगर्भीय प्रक्रिया?
मोहनगढ़ में अचानक फूटे जलधारा को कुछ लोग सरस्वती नदी के पुनर्जीवन का संकेत मान रहे हैं, लेकिन भूवैज्ञानिक इससे सहमत नहीं हैं. भूवैज्ञानिक के अनुसार, यह घटना रेगिस्तानी क्षेत्र में मौजूद भूगर्भीय जल स्रोतों के दबाव के कारण हुई हो सकती है. ऐसे मामलों में, भूगर्भीय दबाव बढ़ने पर पानी सतह पर आ जाता है. यह एक सामान्य भूगर्भीय रिसाव की प्रक्रिया है. हालांकि, वैज्ञानिक यह भी मानते हैं कि यह किसी प्राचीन जलधारा के अस्तित्व का संकेत हो सकता है.
रिपोर्ट कहा है इंतजार: एडिशनल कलेक्टर
अतिरिक्त जिला कलेक्टर पवन कुमार ने बताया कि केयर्न एनर्जी कंपनी के विशेषज्ञों ने स्थल का निरीक्षण किया है और उनकी रिपोर्ट का इंतजार है. इसके आधार पर आगे की कार्रवाई की जाएगी. भूजल वैज्ञानिक डॉ. नारायणदास इणखिया ने कहा कि पानी काफी तेज़ी से निकल रहा था और उसमें चिकनी मिट्टी भी शामिल थी. इस मिट्टी के कारण फसलों को नुकसान पहुंचने की संभावना है.
वेदों और पुराणों में है नदी का जिक्र
सरस्वती नदी भारत की एक प्रसिद्ध पौराणिक और ऐतिहासिक नदी मानी जाती है, जिसका उल्लेख वेदों, पुराणों और महाकाव्यों में किया गया है. इसे प्राचीन भारतीय सभ्यता की नींव समझा जाता है. आज के समय में यह नदी लुप्त हो चुकी है और इसे लेकर कई वैज्ञानिक, पुरातात्विक और पौराणिक दृष्टिकोण सामने आते रहते हैं. सरस्वती को ज्ञान और पवित्रता का प्रतीक माना गया है. ऋग्वेद में इसे 'नदीतमा' यानी नदियों में श्रेष्ठ कहा गया है. ऐसा कहा जाता है कि वैदिक काल में यह भारतीय उपमहाद्वीप की प्रमुख नदियों में से एक थी. इस नदी का उद्गम हिमालय से विशेष रूप से हरियाणा के आदिबद्री क्षेत्र से होने का दावा किया जाता है. वैज्ञानिक भी इसके ग्लेशियरों से उत्पत्ति की संभावना जताते हैं. कहा जाता है कि सरस्वती नदी हरियाणा, पंजाब, राजस्थान और गुजरात से होकर बहती थी.
विलुप्त होने के क्या थे कारण?
सरस्वती नदी के विलुप्त होने को लेकर वैज्ञानिकों के बीच अब भी मतभेद हैं. अभी भी सवाल बना हुआ है कि क्या वास्तव में यह नदी भारत के क्षेत्र में बहती थी. हालांकि, इसके अस्तित्व पर कई दावे और विचार सामने आते रहे हैं. कुछ वैज्ञानिकों का मानना है कि भौगोलिक बदलाव, जलवायु परिवर्तन और मानवीय गतिविधियों के प्रभाव ने इस नदी के प्रवाह को समाप्त कर दिया, जिससे यह धीरे-धीरे विलुप्त हो गई.
सेटेलाइट इमेज से होता है नदी का दावा
सैटेलाइट इमेजरी के जरिए सरस्वती नदी के अस्तित्व का दावा किया जाता रहा है. इसपर कई शोध और अध्ययन हुए हैं. वैज्ञानिक और शोधकर्ता सेटेलाइट इमेज की मदद से यह मानते हैं कि सरस्वती नदी का पुराना मार्ग आज भी भूगर्भीय संरचनाओं में देखा जा सकता है. ऐसा माना जाता है कि यह नदी हिमालय से निकलकर हरियाणा, राजस्थान और गुजरात होते हुए अरब सागर में गिरती थी. सैटेलाइट इमेज में सूखे हुए प्राचीन नदी मार्गों के संकेत देखे गए हैं, जिन्हें भूवैज्ञानिक और जलविज्ञानी सरस्वती नदी के संभावित प्रवाह के रूप में पहचानने का प्रयास कर रहे हैं.