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राजस्थान का ऐसा परिवार, जिसकी सुबह नागौर से होती और जयपुर में बीतता दिन

राजस्थान में रहने वाले एक ऐसे परिवार की जानकारी सामने आई है जो रहते तो एक ही घर में हैं. लेकिन इनकी सुबह अलग-अलग जिलों में होती है. दरअसल पिरवार का घर बॉर्डर पर बना हुआ है. इसलिए घर का एक हिस्सा नागौर में है तो दूसरा हिस्सा जयपुर में है. यहां तक की घर के सदस्यों का एड्रेस भी अलग-अलग है.

राजस्थान का ऐसा परिवार, जिसकी सुबह नागौर से होती और जयपुर में बीतता दिन
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( Image Source:  Representative Image- Social Media X- Grok AI )
सार्थक अरोड़ा
Edited By: सार्थक अरोड़ा

Published on: 12 Feb 2025 2:44 PM

फर्ज कीजिए आप सोएं नागौर में और सुबह उठें जयपुर में आप कहेंगे कि यह क्या अटपटी बात हुई? ऐसा कैसे मुंकिन हैं. आपका ऐसा सोचना भी सही है. लेकिन एक परिवार जो ऐसी जिंदगी जी रहा है. मामला राजस्थान के नागौर में रहने वाले तीन भाईयों का है. तीनों भाई भले ही एक ही परिवार के हैं. लेकिन घर अलग-अलग जिलों में जा मिलता है. कैसे? आइए जानते हैं.

जानकारी के अनुसार इन भाइयों का एक ही घर है. लेकिन घर के हिस्से दो अलग-अलग सिरे से जा मिलते हैं. यानी आधा घर तो नागौर में है, और आधा घर जयपुर में है. चलिए इसे थोड़ा और आसान कर देते हैं. इनका घर बॉडर की जमीन पर बना हुआ है. जिस कारण वह सुबह उठते तो नागौर में है, लेकिन नहाने जयपुर में आते हैं.

कहां बना है ये मकान?

जानकारी के अनुसार नागौर डीडवाना-कुचामन जिले और जयपुर के बॉर्डर पर यह घर बना है. इस तरह आधा मकान नागौर में है और इसकी एंट्रेस जयपुर जिल से है. अब क्योंकी घर अलग-अलग हिस्सों में बंटा है तो यह भाई भी, अलग-अलग हिस्सों में रहते हैं. रोजाना भाइयों का एक दूसरे मिलना होता है. बातचीत भी होती है.

वहीं इस घर में रहने वाले एक सदस्य मुनाराम चोपड़ा ने कहा कि उनका घर नागौर में है. यहां तक की उनके सभी डॉक्यूमेंट में भी यही एड्रेस दर्ज है. मुनाराम के दो भाई भी हैं, जो उसी के साथ रहते हैं. लेकिन इनके घर का पता जयपुर में है और इन्होंने ने भी ऑफिशियल डॉक्यूमेंट में यही एड्रेस दर्ज कराया है.

सुवाराम ने खरीदी ये जमीन

साल 2010 में सुवाराम ने इस जमीन को खरीदा था. तब से सुवाराम के दो भाई भी उनके साथ रहते हैं. अब उनकी सुबह इस तरह होती है कि वह उठते नागौर में है और दूध लेने जयपुर पहुंच जाते हैं. हालांकि जो ऑफिशियल कार्यों को पूरा करने में उन्हें थोड़ी दिक्कत होती है. इसलिए के जिला हेडक्वाटर जाने की जरूरत पड़ जाती है, जो उनके घर से काफी दूर है.

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