राजस्थान के पूर्व मंत्री पर हर टेंडर में 2-3% कमिशन लेने का आरोप, कौन हैं कांग्रेस वाले महेश जोशी?
कांग्रेस के पूर्व मंत्री महेश जोशी को एनफोर्समेंट डायरेक्टरेट (ईडी) ने प्रिवेंशन ऑफ मनी लॉन्ड्रिंग एक्ट (पीएमएलए) के तहत गिरफ्तार किया है. गिरफ्तारी से एक दिन बाद शुक्रवार को ईडी ने बताया कि महेश जोशी जल जीवन मिशन (जेजेएम) घोटाले में शामिल थे.

कांग्रेस के पूर्व मंत्री महेश जोशी को एनफोर्समेंट डायरेक्टरेट (ईडी) ने प्रिवेंशन ऑफ मनी लॉन्ड्रिंग एक्ट (पीएमएलए) के तहत गिरफ्तार किया है. गिरफ्तारी से एक दिन बाद शुक्रवार को ईडी ने बताया कि महेश जोशी जल जीवन मिशन (जेजेएम) घोटाले में शामिल थे.
ईडी के अनुसार, जोशी ठेके देने में अनियमितता कर रहे थे और हर टेंडर में 2-3 प्रतिशत रिश्वत ले रहे थे. ये रिश्वत वो खास लोगों को फायदा पहुंचाने और गड़बड़ियों को छिपाने के लिए लेते थे. चलिए जानते हैं राजनीति में महेश जोशी के सफर के बारे में.
छात्र नेता से की राजनीति में शुरुआत
महेश जोशी की राजनीतिक यात्रा एक छात्र नेता के रूप में शुरू हुई. साल था 1979-80, जब उन्होंने राजस्थान विश्वविद्यालय छात्र संघ के अध्यक्ष के तौर पर अपनी पहचान बनाई. युवा जोश, नेतृत्व की समझ और राजनीति की गहराई ने उन्हें जल्द ही आगे बढ़ने का रास्ता दिखाया.
पहला चुनाव हारा
कुछ ही सालों में 1988 में वे कांग्रेस सेवा दल के प्रदेश अध्यक्ष बने और पूरे तीन साल तक इस जिम्मेदारी को निभाया. इस दौरान उन्होंने पार्टी के भीतर मजबूत पकड़ बना ली और संगठन को भी सक्रिय किया.1990 में उन्होंने पहली बार हवा महल विधानसभा सीट से कांग्रेस उम्मीदवार के रूप में चुनाव लड़ा, लेकिन किस्मत उस समय उनके साथ नहीं थी. उन्हें भाजपा के भंवर लाल शर्मा से हार का सामना करना पड़ा. पर जोशी पीछे हटने वालों में से नहीं थे.
किशनपोल विधानसभा सीट से जीता चुनाव
राजनीति में निरंतर सक्रिय रहते हुए 90 के दशक के अंत तक वे कांग्रेस के प्रवक्ता बन गए. एक ऐसा चेहरा जो मीडिया में पार्टी की आवाज बनकर उभरा. फिर आया 1998 जब उन्होंने एक बार फिर चुनावी मैदान में उतरने का फैसला किया. इस बार उन्होंने जयपुर की किशनपोल विधानसभा सीट से चुनाव लड़ा और इस बार जनता ने उन्हें सिर आंखों पर बैठाया और वह जीत गए.
गहलोत सरकार में बने चीफ व्हिप
उनकी जीत और संगठन में पकड़ को देखते हुए, उन्हें पहली अशोक गहलोत सरकार (1998-2003) में एक अहम जिम्मेदारी सौंपी गई. उन्हें चीफ व्हिप बनाया गया. यहीं से उनकी राजनीतिक यात्रा ने एक नई रफ्तार पकड़ी.
बना ली थी राजनीति से दूरी
महेश जोशी की राजनीतिक यात्रा में जीत की चमक के साथ-साथ हार की कसक भी जुड़ी रही. 2003 का विधानसभा चुनाव उनके लिए एक बड़ा झटका लेकर आया. उन्होंने अपनी मजबूत मानी जाने वाली किशनपोल सीट से चुनाव लड़ा, लेकिन किस्मत ने साथ नहीं दिया. वे मात्र 718 वोटों से हार गएय यह हार उनके राजनीतिक जीवन में एक ठहराव की तरह थी. शायद यही वजह थी कि उन्होंने 2008 के चुनावों से दूरी बना ली और कुछ समय तक राजनीतिक मंच से थोड़ा पीछे हट गए.
लेकिन राजनीति में जोशी कभी पूरी तरह गायब नहीं हुए. 2009 में कांग्रेस ने उन्हें एक बड़ी जिम्मेदारी सौंपी . महेश जोशी को जयपुर लोकसभा सीट से मैदान में उतारा. इस बार जनता ने उन्हें संसद भेजा और वे दिल्ली की राजनीति में कदम रख चुके थे. केंद्र की राजनीति का यह अनुभव उनके कद को और भी बड़ा बना गया.
अशोक गहलोत के रहे खास
2018 में उन्होंने एक बार फिर विधानसभा की ओर रुख किया और इस बार हवा महल सीट से चुनाव लड़ा. वही सीट जहां से उन्होंने कभी अपना पहला चुनाव लड़ा था. जनता ने उन्हें फिर से चुना और वे दूसरी बार विधायक बने. अशोक गहलोत जब तीसरी बार मुख्यमंत्री बने (2018-2023), तो उन्होंने जोशी पर एक बार फिर भरोसा जताया. उन्हें मुख्य सचेतक बनाया गया. एक ऐसा पद जो केवल राजनीति के अनुभवी खिलाड़ियों को मिलता है.