एसजीपीसी और जत्थेदारों के बीच झगड़े में अकाली दल को कितना होगा नुकसान?
पंजाब की राजनीति में उथल-पुथल जारी है, जहां शिरोमणि गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी (SGPC) और अकाल तख्त के बीच मतभेद बढ़ गए हैं. SGPC ने अकाल तख्त जत्थेदार ज्ञानी रघबीर सिंह और तख्त केसगढ़ साहिब जत्थेदार ज्ञानी सुल्तान सिंह को हटाया. यह घटनाक्रम अकाली दल के प्रभाव, सिख संगठनों के विरोध और धार्मिक संस्थानों के नियंत्रण को लेकर चल रही खींचतान को दर्शाता है.

पंजाब की राजनीति में चल रहे संघर्ष के बीच, शिरोमणि गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी (एसजीपीसी) और सिख तख्तों के बीच बढ़ते मतभेद एक महत्वपूर्ण मोड़ पर पहुंच गए हैं. पिछले शुक्रवार को एसजीपीसी ने अकाल तख्त के जत्थेदार ज्ञानी रघबीर सिंह और तख्त केसगढ़ साहिब के जत्थेदार ज्ञानी सुल्तान सिंह को उनके पदों से हटा दिया. इस फैसले ने सिख धार्मिक और राजनीतिक क्षेत्रों में व्यापक चर्चा को जन्म दिया.
एसजीपीसी एक प्रमुख धार्मिक संगठन है, जो पंजाब, चंडीगढ़ और हिमाचल प्रदेश में गुरुद्वारों के प्रबंधन का कार्य करता है. वहीं, अकाल तख्त और तख्त केसगढ़ साहिब सिख धर्म की पांच लौकिक सीटों में से दो हैं, जो धार्मिक और राजनीतिक मामलों में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं. इन निष्कासनों के पीछे एसजीपीसी और सिख तख्तों के बीच लंबे समय से चल रहे तनाव को एक प्रमुख कारण माना जा रहा है.
जत्थेदारों को हटाने का चला सिलसिला
यह निर्णय तब लिया गया जब एसजीपीसी ने एक महीने पहले तख्त श्री दमदमा साहिब के जत्थेदार ज्ञानी हरप्रीत सिंह को भी उनके पद से हटा दिया था. इसके अलावा, 2 दिसंबर 2023 को धार्मिक दुराचार के आरोप में पूर्व अकाली दल अध्यक्ष सुखबीर सिंह बादल को सजा सुनाने वाले तीनों जत्थेदारों को भी उनके पदों से हटा दिया गया था. इससे स्पष्ट होता है कि एसजीपीसी और जत्थेदारों के बीच गहराते मतभेद अब एक निर्णायक स्थिति में पहुंच चुके हैं.
राम रहीम को कर दिया था माफ़
2015 की घटनाओं से इस विवाद की जड़ें जुड़ी हुई हैं, जब अकाल तख्त के तत्कालीन जत्थेदार ज्ञानी गुरबचन सिंह ने डेरा सच्चा सौदा प्रमुख गुरमीत राम रहीम को सिख भावनाओं को ठेस पहुंचाने के आरोप में माफ़ कर दिया था. इस फैसले से सिख समुदाय में भारी असंतोष उत्पन्न हुआ था, क्योंकि 2007 में गुरमीत राम रहीम ने 10वें सिख गुरु, गुरु गोबिंद सिंह के समान वस्त्र पहनकर एक समारोह आयोजित किया था. यह विवाद अकाली दल विरोधी और बादल विरोधी संगठनों को एक मंच पर लेकर आया और सरबत खालसा का आयोजन किया गया, जिसमें ध्यान सिंह मंड को कार्यवाहक जत्थेदार नियुक्त किया गया.
बादल परिवार के थे खिलाफ
ज्ञानी हरप्रीत सिंह, जिन्हें 2018 में अकाल तख्त का कार्यवाहक जत्थेदार नियुक्त किया गया था, सिख समुदाय में अपनी लोकप्रियता और विश्वसनीयता स्थापित करने में सफल रहे. उन्होंने उन सिख संगठनों से संवाद स्थापित किया जो बादल परिवार के खिलाफ संगठित थे. हालांकि, अकाली दल के कुछ नेताओं ने उन पर आम आदमी पार्टी (आप), कांग्रेस और भाजपा से करीबी संबंध रखने का आरोप लगाया, जिससे एसजीपीसी और जत्थेदार के बीच संबंध और बिगड़ गए.
अकाली दल के प्रभाव में है एसजीपीसी
2023 में ज्ञानी हरप्रीत सिंह को हटाकर ज्ञानी रघबीर सिंह को अकाल तख्त का जत्थेदार नियुक्त किया गया. हालांकि, जब सुखबीर सिंह बादल को धार्मिक दंड दिया गया, तो एसजीपीसी ने इसे स्वीकार नहीं किया और जत्थेदारों को हटाने का निर्णय लिया. यह स्पष्ट संकेत था कि एसजीपीसी, जो अकाली दल के प्रभाव में है अपने नेतृत्व की आलोचना को बर्दाश्त नहीं कर रही है.
चुनौतियों से कैसे निपटेगा अकाली दल?
राजनीतिक रूप से, 2017 के विधानसभा चुनावों में करारी हार के बाद से अकाली दल अपनी स्थिति मजबूत करने में विफल रहा है. धार्मिक सजा का उद्देश्य सिख समुदाय के विश्वास को पुनः प्राप्त करना था. लेकिन इसके उलट, इससे अकाली दल पर सिख संस्थाओं के दुरुपयोग का आरोप लगने लगा. इससे उनकी स्थिति और अधिक कमजोर हो गई है. अब सवाल यह है कि अकाली दल इन चुनौतियों से कैसे निपटेगा और क्या यह सिख समुदाय के भीतर अपनी खोई हुई साख को पुनः प्राप्त कर सकेगा. एसजीपीसी का यह कदम राजनीतिक विरोधियों को अकाली दल पर सिख संस्थाओं के नियंत्रण के लिए दोषारोपण करने का अवसर दे रहा है. आगे की राजनीतिक रणनीति और एसजीपीसी के भविष्य के फैसले इस पूरे विवाद के परिणाम को निर्धारित करेंगे.