टाइपो की गलती ने ठहराया दोषी, NSA के तहत शादी के बाद सालभर काटी जेल, एमपी हाईकोर्ट ने कलेक्टर को दी ये सजा
मध्य प्रदेश से एक हैरान कर देने वाला मामला सामने आया है, जहां एक निर्दोष व्यक्ति को सिर्फ एक टाइपिंग गलती की वजह से एक साल से ज्यादा जेल में रहना पड़ा. शादी के कुछ ही दिनों बाद सुशांत बैस नाम के युवक को एनएसए की कठोर धाराओं के तहत गिरफ्तार कर लिया गया था.
मध्य प्रदेश से एक हैरान कर देने वाला मामला सामने आया है, जहां एक निर्दोष व्यक्ति को सिर्फ एक टाइपिंग गलती की वजह से अपनी नई-नई शादी के बाद पूरा एक साल जेल में बिताना पड़ा. हालांकि, अब शख्स को एमपी हाईकोर्ट ने बरी कर दिया है और इस मामले में कलेक्टर पर जुर्माना लगाया है.
मामला सिर्फ कागजी हेरफेर और टाइपिंग एरर का नहीं, बल्कि एक ऐसे सिस्टम की लापरवाही का है जहां इंसान की जिंदगी सिर्फ एक दस्तावेज़ पर लिखे नाम से तय हो जाती है.
शादी के बाद जेल की सलाखों के पीछे
शहडोल जिले के बुढ़वा गांव के रहने वाले सुशांत बैस की जिंदगी उस दिन पूरी तरह बदल गई, जब अचानक उन पर राष्ट्रीय सुरक्षा कानून (NSA) के तहत कार्रवाई कर दी गई. उन्हें बिना वजह गिरफ्तार कर जेल भेज दिया गया. सबसे चौंकाने वाली बात यह थी कि सुशांत का किसी अपराध से कोई लेना-देना ही नहीं था. असल में, जिस कागज़ पर कार्रवाई हुई थी, उसमें असली आरोपी की जगह गलती से सुशांत का नाम टाइप हो गया था. यह मामूली सी टाइपिंग गलती सुशांत के लिए एक बड़ी सज़ा बन गई. वह महीनों तक जेल में बंद रहे, जबकि उन्होंने कोई गलती नहीं की थी. इस एक गलती ने उनकी नई शादीशुदा जिंदगी और परिवार दोनों को तोड़कर रख दिया.
हाई कोर्ट की दखल से मिली राहत
जब यह मामला अदालत पहुंचा, तो मध्य प्रदेश हाई कोर्ट ने इसे बेहद गंभीरता से लिया. जस्टिस विवेक अग्रवाल और ए. के. सिंह की खंडपीठ ने जांच में पाया कि कलेक्टर केदार सिंह ने बिना ठीक से जांचे-परखे उस दस्तावेज़ पर हस्ताक्षर कर दिए, जिसमें गलत नाम लिखा हुआ था. कोर्ट ने इस गलती को “बिना सोच-समझ के किया गया फैसला” बताया और कलेक्टर पर 2 लाख रुपये का जुर्माना लगा दिया.
निर्दोष को मिलेगी जुर्माने की रकम
अदालत ने आदेश दिया कि यह पूरी रकम उस निर्दोष व्यक्ति सुशांत बैस को दी जाएगी, जिसने किसी अपराध के बिना जेल में समय बितायाय कोर्ट ने सख्त टिप्पणी करते हुए कहा कि इस तरह की लापरवाही किसी नागरिक के मौलिक अधिकारों का सीधा उल्लंघन है और प्रशासनिक अफसरों को अपने फैसलों में ज्यादा जिम्मेदारी दिखानी चाहिए.
कब तक होगी ऐसी गलतियां?
यह घटना सिर्फ एक प्रशासनिक भूल नहीं, बल्कि हमारे सिस्टम की संवेदनहीनता की मिसाल है. एक टाइपो ने एक इंसान की जिंदगी से एक साल छीन लिया. क्या अब भी हम कह सकते हैं कि हमारा सिस्टम आम आदमी के लिए जवाबदेह है? अदालत का दखल तो सुशांत को न्याय दिला गया, लेकिन इस मामले ने यह जरूर दिखा दिया कि अगर “कागज पर नाम गलत लिखा हो”, तो किसी की जिंदगी भी गलत दिशा में जा सकती है.





