2 साल की उम्र में सगाई और 16 में शादी! MP के इस गांव में जंजीरों में कैद बचपन
जहां हमारा देश चांद पर पहुंच गया है, लेकिन असलियत इसके बिल्कुल उलट है. आज भी भारत के कई गांवों में प्रथा के नाम पर छोटे बच्चों का जीवन अंधकार में डाला जाता है.

हमारा देश मंगल ग्रह पर पहुंच चुका है, लेकिन जब आप मध्यप्रदेश की राजधानी भोपाल से सटे राजगढ़ में पहुंचेंगे, तो आपको असली दुनिया की हकीकत नजर आएगी. 21वीं सदी में जीने के बाद भी यहां के लोग आज तक कुप्रथा को ढो रहे हैं. आपको यह जानकर हैरानी होगी कि राजगढ़ के 50 गांवों में आज भी गर्भ में बच्चों के रिश्ते तय किए जाते हैं. 6 महीने में सगाई और 10 साल में बच्चियों की शादी कर दी जाती है. इतना ही नहीं, अगर लड़की से बंधन से मुक्त होना चाहती हैं, तो उसके परिवार वालों को मुआवजा भी देना पड़ता है.
एनडीटीवी की रिपोर्ट के मुताबिक इस गांव को देख ऐसा लगता है, जैसे समय रुक गया है. सपनों को बेड़ियों में जकड़ा हुआ और बचपन छीन लिया गया है. यहां मासूमियत का सौदा होता है और परंपरा का क्रूर बोझ बच्चों को समय से बहुत पहले बड़े होने की ओर खींच ले जाता है. इसे झगड़ा-नत्रा प्रथा कहा जाता है. जैतपुरा की कहानियां 50 गांवों में फैली इस परंपरा के चलते 700 बच्चों का जीवन जंजीरोंं में जकड़ गया है.
गीता ने सुनाया अपना हाल
22 साल की गीता अपनी छोटी बेटी को गोद में लिए हुए है. गीता की सगाई दो साल की उम्र में हो गई थी. वहीं 16 साल की उम्र में उसकी शादी करवा दी गई थी. वह अपने साथ हुई इस घटना को दोहराना नहीं चाहती है. गीता ने बताया कि उस पर अपनी बच्ची की सगाई करने का दबाव बनाया जाता है, लेकिन उसने कहा कि वह किसी भी हालत में अपनी बेटी की सगाई नहीं करेगी.
बचपन के सपने जंजीरों में जकड़े
ये फैसले बच्चों पर गहरा असर डालते हैं. उनकी मासूमियत और सपनों को छीन लेते हैं. कुछ की सगाई एक साल की उम्र में ही हो जाती है, उन्हें प्रतिबद्धता दिखाने के लिए कंगन या लॉकेट पहनाए जाते हैं. इस पर एक छोटे लड़के दिनेश ने अपनी मगंतेर के बारे में बताया. मेरी मंगेतर गंगापार से है. सगाई के दौरान उसे एक कंगन और एक पेंडेंट दिया गया था. वहीं, दूसरी ओर एक और बच्चा मांगीलाल की मंगेतर ने कहा कि जब मेरी सगाई हुई थी, तब मैं सिर्फ एक साल का था. मुझे ज्यादा याद नहीं है, लेकिन मैं जानता हूं कि उसका नाम मांगीलाल है. सगाई के दौरान मुझे कुछ नहीं मिला. कई लोगों के लिए, प्रतिबद्धता के ये प्रतीक संजोए नहीं जाते बल्कि बोझ बन जाते हैं.
'मैं डॉक्टर बनना चाहता हूं'
इस दौरान कई ऐसे बच्चे मिले, जो इस कुप्रथा का शिकार हुए. ये बच्चे पढ़ना, खेलना और कुछ बनता चाहते हैं, लेकिन उनके यह सपने अधूरे ही रह जाते हैं. जहां10 साल के एक बच्चे ने अपनी परेशानी के बारे में बताया. उसने कहा कि जब मेरी सगाई हुई तो मुझे मिठाई दी गई, लेकिन मैं नहीं चाहता था. मैंने तय कर लिया है कि मैं शादी नहीं करूंगा. मैं पांचवीं कक्षा में हूं और डॉक्टर बनना चाहता हूं.
कड़े पहनने से दुखता है पैर
वहीं, युवा लड़कियों के लिए कड़े और चूड़ियां श्रृंगार नहीं बल्कि उत्पीड़न का प्रतीक हैं. शारीरिक और भावनात्मक दोनों तरह का दर्द उन पर भारी पड़ता है. जहां एक लड़की ने कहा कि पायल की वजह से मेरे पैरों में बहुत दर्द होता है. मैं अपने माता-पिता से हर दिन कहती हूं, लेकिन वे कहते हैं कि मुझे इसे पहनना ही होगा. यह बंधन है. मुझे इनसे मुक्ति चाहिए.अधिकांश लोगों के लिए ये गहने जीवन भर का बोझ होते हैं.
मजबूर हैं गांव वाले
एक 10 साल की लड़की जिसकी शादी उससे बहुत छोटी उम्र में हो गई थी. उसने कहा कि मेरी सगाई और शादी के दौरान मुझे चूड़ियां पहनाई गईं. कहा जाता है कि ये लड़कियों की खूबसूरती बढ़ाती हैं, लेकिन मेरे लिए ये बेड़ियां हैं. कभी-कभी, जब मेरे ससुराल में कोई परेशानी होती है, तो ये चूड़ियां उतारकर बेच दी जाती हैं. ग्रामीण इस व्यवस्था को मजबूरी के तौर पर सही ठहराते हैं. कर्ज या शादी के खर्च से बचने का एक तरीका मानते हैं, लेकिन इसकी कीमत बच्चों को चुकानी पड़ती है, उनकी जिंदगी महज लेन-देन बनकर रह जाती है. उप सरपंच गोवर्धन तंवर ने बताया कि सगाई तब होती है, जब माता-पिता नशे में होते हैं. वे कर्ज लेते हैं, अपनी बेटियों की शादी कर देते हैं और यह सिलसिला चलता रहता है.
आखिर ऐसा क्यों किया जाता है?
इस मामले में एक व्यक्ति ने बताया कि यहां जन्म से पहले ही रिश्ते तय हो जाते हैं. जब कोई महिला 6 महीने की प्रेग्नेंट होती है, तो उसी समय परिवार परिवार तय कर लेता है कि 'अगर तुम्हारा बेटा हुआ और हमारा बेटी हुई, तो सगाई कर दी जाएगी. इतना ही नहीं, वे अपनी बात पर अड़े रहते हैं. जैसे-जैसे बच्चे बड़े होते हैं, ज्यादा पैसे की जरूरत होती है और कभी-कभी नशे की हालत में सगाई तय कर दी जाती है. हमारे परिवार में भी ऐसा ही हुआ.