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केंद्र ने माना एमपी में कफ सिरप बना मौत का कारण, लैब रिपोर्ट ने खोली असलियत, सैंपल निकले जहरीले

देश के स्वास्थ्य तंत्र में हलचल मचाने वाली खबर आई जब केंद्र सरकार ने यह माना कि स्रेसन फ़ार्मास्युटिकल द्वारा बनी खांसी की दवा Coldrif Syrup में हार्मफुल केमिकल Diethylene Glycol (DEG) की मात्रा तय सीमाओं से कहीं ज़्यादा पाई गई है.

केंद्र ने माना एमपी में कफ सिरप बना मौत का कारण, लैब रिपोर्ट ने खोली असलियत, सैंपल निकले जहरीले
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( Image Source:  Canva )
हेमा पंत
Edited By: हेमा पंत

Updated on: 4 Oct 2025 1:51 PM IST

मध्य प्रदेश में कफ सिरप से हुई बच्चों की मौत के मामले में आखिरकार केंद्र सरकार ने भी गंभीर चूक को मान लिया है. हाल ही में आई लैब रिपोर्ट ने खुलासा किया है कि जिस कफ सिरप का इस्तेमाल किया गया था, उसके सैंपल जहरीले पाए गए हैं.

रिपोर्ट में साफ हुआ है कि सिरप में ऐसे खतरनाक तत्व मौजूद थे, जिनके सेवन से मासूमों की जान चली गई. एक दिन पहले तक केंद्र ने इस रिपोर्ट से इनकार किया था, लेकिन तमिलनाडु की लैब रिपोर्ट ने तस्वीर पूरी तरह बदल दी.

केंद्र की शुरुआती सफाई

शुक्रवार शाम तक स्वास्थ्य मंत्रालय यह दावा कर रहा था कि बच्चों की मौत से जुड़े खांसी के सिरप में कोई हानिकारक तत्व नहीं मिला है. सेंट्रेल ड्रग्स स्टैंटर्ड कंट्रोल ऑर्गेनाइजेशन द्वारा छह सैंपलों की जांच की गई थी और सभी में DEG या EG का कोई अंश नहीं पाया गया था. इसी तरह मध्यप्रदेश एफडीए ने भी 13 में से तीन सैंपल को जांच में साफ़ बताया था. इन नतीजों के आधार पर ऐसा प्रतीत हो रहा था कि दवा सुरक्षित है और मौतें किसी अन्य वजह से हुई हैं.

तमिलनाडु की रिपोर्ट ने बदली पूरी कहानी

हालांकि तस्वीर जल्द ही बदल गई. मध्यप्रदेश सरकार के अनुरोध पर तमिलनाडु एफडीए ने स्रेसन फार्मा की Coldrif Syrup की जांच की तो चौंकाने वाले नतीजे सामने आए. रिपोर्ट में कहा गया कि सैंपल में DEG की मात्रा 48.6% w/v थी, जबकि अनुमत सीमा केवल 0.1% है. 3 अक्टूबर की शाम यह रिपोर्ट केंद्र को सौंपी गई, और उसी रात सरकार ने अपना रुख पलटते हुए माना कि सैंपल में DEG खतरनाक स्तर पर मौजूद है.

फैक्ट्री पर शिकंजा

तमिलनाडु ड्रग्स कंट्रोल विभाग ने तुरंत कार्रवाई करते हुए कांचीपुरम स्थित स्रेसन फार्मास्युटिकल पर उत्पादन बंद करने का आदेश जारी कर दिया. इसके बाद केंद्र ने भी एक रिस्क बेस्ड इंस्पेक्शन शुरू की है, जिसके तहत छह राज्यों के 19 सैंपलों की जांच की जाएगी. इस निरीक्षण का मकसद मैन्युफैक्चरिंग प्रोसेस में खामियां ढूंढना और भविष्य में गुणवत्ता की विफलता रोकने के उपाय सुझाना है.

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