हेल्थ चेकअप या कैश चेकअप! 25% ज्यादा चार्ज कर MP के भोपाल में इस अस्पताल ने भर डाली 300 करोड़ की तिजोरी
भोपाल के जिला अस्पतालों में मेडिकल जांच के नाम पर बड़ा घोटाला उजागर हुआ है. निजी कंपनियों साइंस हाउस मेडिकल्स प्रा. लि. और पीओसीटी सर्विसेज प्रा. लि. ने बिना एनएबीएल सर्टिफिकेट लिए एनएबीएल दरों पर वसूली की. अब तक करीब 800 करोड़ रुपए का बिल लगाया गया, जिसमें लगभग 300 करोड़ रुपए फर्जी वसूली बताई जा रही है. मेडिकल कॉलेजों में भी निर्धारित छूट नहीं दी गई.

मध्य प्रदेश की राजधानी भोपाल के सरकारी जिला अस्पतालों में जांच के नाम पर बड़ा घोटाला सामने आया है. स्वास्थ्य विभाग ने निजी कंपनियों को मेडिकल जांच का ठेका देकर न केवल नियमों को ताक पर रखा, बल्कि विभाग को करोड़ों रुपए का चूना भी लग गया. कंपनियां बिना एनएबीएल सर्टिफिकेट लिए जांच दरें एनएबीएल रेट के अनुसार वसूल रही हैं, जिससे सरकारी खजाने को भारी नुकसान हुआ है.
सूत्रों के अनुसार, अब तक करीब 800 करोड़ रुपए का बिल लगाया जा चुका है, जिसमें लगभग 300 करोड़ रुपए की वसूली फर्जी तरीके से एनएबीएल दरों के नाम पर की गई है. हैरानी की बात यह है कि लगातार शिकायतों के बावजूद विभाग ने जांच कराने के बजाय विवादित ठेके को और आगे बढ़ा दिया.
कैसे हुआ करोड़ों का घोटाला?
स्वास्थ्य विभाग ने 2019 में जिला अस्पतालों की मेडिकल जांच का काम निजी कंपनियों, साइंस हाउस मेडिकल्स प्राइवेट लिमिटेड और पीओसीटी सर्विसेज प्राइवेट लिमिटेड को सौंपा. दोनों कंपनियों ने टेंडर दस्तावेजों में सीजीएचएस की एनएबीएल दरें शामिल कीं, जो गैर-एनएबीएल सर्टिफिकेट लैब की तुलना में लगभग 25% अधिक होती हैं. वर्ष 2020 से इन कंपनियों ने काम शुरू किया और आज प्रदेश के 85 जिला अस्पतालों में जांच का जिम्मा इन्हीं के हाथों में है.
मेडिकल कॉलेजों में भी नियमों की अनदेखी
सूत्रों ने बताया कि दो मेडिकल कॉलेजों में भी साइंस हाउस जांच का काम कर रही है. नियमानुसार मेडिकल कॉलेज में कंपनियों को जांच दरों पर 71% छूट देनी चाहिए थी, लेकिन कंपनी ने महज 31% छूट दी. इस तरह से विभाग को दोहरा नुकसान झेलना पड़ा. एक तो एनएबीएल दरों के नाम पर ओवर चार्जिंग और दूसरा निर्धारित छूट से कम राहत.
विवादित कंपनियों का काला इतिहास
दोनों कंपनियों का ट्रैक रिकॉर्ड पहले से ही संदिग्ध रहा है. साइंस हाउस के प्रमोटर पहले भी भ्रष्टाचार के मामलों में जेल जा चुके हैं. वहीं, पीओसीटी सर्विसेज को कई राज्यों में घटिया काम और घोटालों के चलते ब्लैकलिस्ट किया गया था. इसके बावजूद इन कंपनियों को प्रदेश में करोड़ों का ठेका दिया गया.
टेंडर प्रक्रिया पर सवाल
इस घोटाले का सबसे चौंकाने वाला पहलू टेंडर प्रक्रिया है. मेडिकल जांचों के लिए कुल दो कंपनियों ने टेंडर डाला था. लेकिन, दूसरी कंपनी एम/एस मॉलिक्यूलर साइंटिफिक को बिना ठोस कारण प्रतियोगिता से बाहर कर दिया गया. इसके बाद एकमात्र बोलीदाता साइंस हाउस को ठेका दे दिया गया. जबकि नियमों के अनुसार, यदि केवल एक बोलीदाता बचता है तो टेंडर दोबारा बुलाया जाना चाहिए था, लेकिन ऐसा नहीं किया गया.