पेड़ नहीं थे, ज़मीन भी नहीं... फिर भी खड़ा कर दिया 3 करोड़ का कारोबार, यह है लाह वाले शक्ति कोईरी की कहानी
शक्ति के पास अपना कुछ नहीं था लेकिन उन्हें पता था दूसरे किसानों के पास खेत और पेड़ दोनों हैं. ऐसे में शक्ति ऐसे लोगों के पास गए जिनके पास उनके खुद के पेड़ थे, लेकिन उन्हें पता नहीं था कि उन पेड़ों से कुछ कमा भी सकते हैं.

रांची की एक संकरी सी गली से निकलकर, जिस युवक ने कभी साइकिल पर लाह की जानकारी बटोरी थी, आज वह देशभर के हजारों किसानों के लिए उम्मीद की रौशनी बन गया है। शक्ति धार कोईरी, जिनके पास न खेत था, न पेड़ बस था तो एक सपना, कुछ सीखने की ललक और हार न मानने का जज़्बा जिसके बलबूते उन्होंने 3 करोड़ का कारोबार खड़ा किया और अब दुनियाभर के लोगों को प्रेरित कर रहे हैं. शक्ति एक ऐसे व्यक्ति जिनसे सीखने को मिलता है कि अगर इरादे मजबूत हों, तो न ज़मीन की ज़रूरत होती है, न विरासत की। बस ज़रूरत होती है तो कुछ कर गुजरने की ललक की.
न्यूज़ 18 के मुताबिक, शक्ति कहते हैं, 'ना मेरे पास ज़मीन थी, न पेड़, और न ही पैसे फिर भी उन्होंने हार नहीं मानी. जब उन्हें पता चला कि लाह नाम की एक कीमती चीज़ होती है, जो पेड़ों से निकलती है और जिसकी कीमत बाज़ार में सोने से कम नहीं, तो उन्होंने ठान लिया अब जो करना है, इसी में करना है. उन्होंने लाह से कमाई करने की तरकीब निकाली. जिसने न सिर्फ उन्हें करोड़पति बना दिया बल्कि उनकी इस पहल में कई किसान उनके साथ आए. हालांकि यह सब कुछ करना इतना आसान नहीं था क्योंकि लाह के जरिए भी कमाने के लिए उनके पास न तो पैसा था न जमीन न खेत खलियान.
क्या है लाह?
बता दें कि (Lac) एक प्रकार का प्राकृतिक रेज़िन (गोंद) होता है, जो कुछ खास तरह के कीड़ों (जिन्हें लाह कीट या 'लैक बग' कहा जाता है) द्वारा पेड़ों की शाखाओं पर तैयार किया जाता है. ये कीड़े पेड़ की छाल पर बैठकर एक चिपचिपा पदार्थ छोड़ते हैं, जो बाद में जमकर लाह बनता है. लाह का इस्तेमाल कई उद्योगों में होता है.
ऐसे रखी कांट्रैक्ट फार्मिंग की नींव
शक्ति के पास अपना कुछ नहीं था लेकिन उन्हें पता था दूसरे किसानों के पास खेत और पेड़ दोनों हैं. ऐसे में शक्ति ऐसे लोगों के पास गए जिनके पास उनके खुद के पेड़ थे, लेकिन उन्हें पता नहीं था कि उन पेड़ों से कुछ कमा भी सकते हैं. शक्ति ने गांव-गांव जाकर ऐसे किसानों को ढूंढा, समझाया, और फिर कांट्रैक्ट फार्मिंग शुरू की. पेड़ उनके, मेहनत शक्ति की, और मुनाफा दोनों का. इसी साझेदारी के मॉडल ने आज उन्हें झारखंड, बिहार, छत्तीसगढ़ और यहां तक कि नेपाल के सैकड़ों गांवों तक पहुंचा दिया है.
एक पेड़, दो क्विंटल लाह और लाखों की कमाई
शक्ति बताते हैं, 'लाह की कीमत लगभग 900 प्रति किलो है. एक पेड़ से दो क्विंटल लाह मिलती है. यानी एक पेड़ से लगभग 2 लाख रुपए की कमाई. यही वजह है कि आज लाह की खेती से जुड़े किसान भी सालाना 7 से 8 लाख रुपए तक कमा रहे हैं. शक्ति को ये हुनर मिला था रांची के लाह रिसर्च सेंटर से मिला लेकिन उस वक्त उनकी जेब में सिर्फ 200 थे, और पेट में एक वक्त का खाना. शक्ति कहते हैं, कि वह कभी भूखा सोए, कभी उधारी का खाया, लेकिन वह अपनी मंजिल पाने से पीछे नहीं हटे. आज, वही शक्ति 2.5 से 3 करोड़ रुपये सालाना का टर्नओवर कर रहे हैं.
बड़ी कंपनियों से डील, और सपनों की उड़ान
पेंट कंपनियों से लेकर कॉस्मेटिक इंडस्ट्री और चूड़ी बनाने तक, सभी लाह की मांग करते हैं. अब स्थिति ये है कि कंपनियां खुद आकर लाह ले जाती हैं. शक्ति का कहना है कि हमें कहीं नहीं जाना पड़ता उनकी इस यात्रा में अब 4500 से ज़्यादा किसान उनके साथ जुड़ चुके हैं। जिनका न सिर्फ मुनाफा बढ़ा है, बल्कि आत्मनिर्भरता का आत्मविश्वास भी