कांग्रेस में खुली बगावत? विधायक ने उठाया गड़बड़ी पर सवाल, तो विधानसभा में भड़क गए स्वास्थ्य मंत्री, जमकर हुई तू-तू मैं-मैं
झारखंड विधानसभा का सोमवार का सत्र जहां सामान्य कार्यवाही के लिए जाना जाता, वहीं अचानक कांग्रेस के अंदरूनी मतभेदों की कहानी बन गया. कांग्रेस विधायक दल के नेता प्रदीप यादव और स्वास्थ्य मंत्री डॉ. इरफान अंसारी के बीच हुई तीखी नोकझोंक ने पार्टी के भीतर असहज माहौल पैदा कर दिया है.
कांग्रेस की अंदरूनी राजनीति एक बार फिर सुर्खियों में है. झारखंड विधानसभा में सोमवार को जो हुआ, उसने पार्टी नेताओं और कार्यकर्ताओं दोनों को चौंका दिया. सदन की कार्यवाही के दौरान कांग्रेस विधायक दल के नेता प्रदीप यादव ने स्वास्थ्य विभाग में कथित गड़बड़ियों का मुद्दा उठाया, लेकिन बात यहीं नहीं रुकी.
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आरोपों से तिलमिलाए स्वास्थ्य मंत्री डॉ. इरफान अंसारी ने खुलकर नाराजगी जताई और पूरा मामला अचानक तीखी जुबानी जंग में बदल गया. स्थिति इतनी तनावपूर्ण हो गई कि सदन में सत्तापक्ष के दो बड़े चेहरे आमने-सामने खड़े दिखाई दिए.
गड़बड़ियों का लगाया आरोप
सोमवार की कार्यवाही के दौरान प्रदीप यादव ने स्वास्थ्य विभाग में गड़बड़ियों के कारण राज्य को हुए नुकसान का मुद्दा जोरदार तरीके से उठाया. उनका तर्क था कि विभाग की खामियों से जनता और सरकार, दोनों को नुकसान उठाना पड़ रहा है. लेकिन यह आरोप सुनते ही स्वास्थ्य मंत्री डॉ. इरफान अंसारी भड़क गए.
मंत्री का पलटवार
स्वास्थ्य मंत्री डॉ. इरफान अंसारी ने कहा कि प्रदीप यादव झूठ का पुलिंदा पेश कर रहे हैं. उनकी नाराजगी इस बात पर ज्यादा थी कि ऐसी बातें सदन में उठाने से पहले विधायक दल के नेता को उनसे बात करनी चाहिए थी. डॉ. अंसारी के इस जवाब ने माहौल को और गर्म कर दिया और पूरा सदन कुछ देर के लिए राजनीतिक तनाव का केंद्र बन गया.
कांग्रेस में असहजता, विपक्ष को मिला मौका
इस टकराव की गूंज कांग्रेस दफ्तर तक पहुंची, जहां नेता और कार्यकर्ता दोनों ही सकते में हैं. पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष ने तत्काल हस्तक्षेप करते हुए दोनों नेताओं को विवाद से दूर रहने की सलाह दी और साफ कहा कि उन्हें प्रदेश प्रभारी के निर्णयों का सम्मान करना चाहिए. हालांकि, यह मामला कांग्रेस अनुशासन समिति के दायरे में नहीं आता है. यह बात खुद समिति के अध्यक्ष डॉ. रामेश्वर उरांव ने साफ कर दी. उनके अनुसार, विधानसभा की कार्यवाही पर पार्टी या कोर्ट का कोई हस्तक्षेप नहीं होता. यही कारण है कि किसी कार्रवाई की सुगबुगाहट तक नहीं है.
कांग्रेस के भीतर बढ़ती असहमति
लेकिन असली चिंता यह है कि इस विवाद ने विपक्ष को सरकार के खिलाफ नैरेटिव बनाने का सुनहरा मौका दे दिया है. सवाल उठ रहे हैं कि क्या यह कांग्रेस के भीतर बढ़ती असहमति का संकेत है? क्या पार्टी नेतृत्व इन टकरावों को संभालने में कमजोर पड़ रहा है. राजनीतिक गलियारों में अब यही चर्चा है कि अगर कांग्रेस भीतर ही भीतर ऐसी खींचतान जारी रही, तो आने वाले दिनों में सरकार की छवि पर इसका असर पड़ना तय है.





