दिल्ली सरकार और एलजी के बीच खत्म होना चाहिए विवाद, जानें सुप्रीम कोर्ट ने ऐसा क्यों कहा?
याचिका पर सुनवाई के दौरान, दिल्ली सरकार के वरिष्ठ अधिवक्ता शादान फरासात ने अदालत को बताया कि दिसंबर 2023 में नोटिस जारी होने के बाद निजी अस्पतालों को बकाया भुगतान कर दिया गया था. इसके बाद कोर्ट ने दिल्ली सरकार को याचिका वापस लेने की अनुमति दी.

सुप्रीम कोर्ट ने गुरुवार को दिल्ली सरकार और उपराज्यपाल (एलजी) के बीच चल रहे विवाद को हमेशा के लिए समाप्त करने की जरूरत पर जोर दिया. अदालत ने यह टिप्पणी उस याचिका को समाप्त करते हुए की, जिसमें सड़क दुर्घटना में घायल लोगों के कैशलेस इलाज के लिए लागू की गई 'फरिश्ते योजना' को सुचारू रूप से संचालित करने की मांग की गई थी.
याचिका पर सुनवाई के दौरान, दिल्ली सरकार के वरिष्ठ अधिवक्ता शादान फरासात ने अदालत को बताया कि दिसंबर 2023 में नोटिस जारी होने के बाद निजी अस्पतालों को बकाया भुगतान कर दिया गया था. इसके बाद कोर्ट ने दिल्ली सरकार को याचिका वापस लेने की अनुमति दी. फरासात ने सुनवाई के दौरान कहा कि दिल्ली के उपराज्यपाल और आम आदमी पार्टी सरकार के बीच टकराव का मुख्य कारण सेवाओं पर नियंत्रण को लेकर है.
क्या है फरिश्ते योजना?
दिल्ली सरकार की फरिश्ते योजना फरवरी 2018 में शुरू की गई थी. इसका मकसद सड़क दुर्घटना के पीड़ितों को निजी अस्पतालों में मुफ्त इलाज प्रदान करना है. योजना के तहत सरकार घायल व्यक्ति के 'गोल्डन आवर' में किए गए इलाज का खर्च निजी अस्पतालों को भुगतान करती है. याचिका में आरोप लगाया गया कि बिलों का भुगतान न होने से कई निजी अस्पताल योजना के तहत मरीजों को इलाज देना बंद कर देते हैं. इससे घायलों की जान को खतरा बढ़ जाता है.
दिल्ली सरकार ने क्यों की कार्रवाई की मांग?
दिल्ली सरकार ने कोर्ट को बताया कि फरिश्ते योजना के तहत अब तक सड़क दुर्घटनाओं में घायल लगभग 23,000 मरीजों को कैशलेस उपचार की सुविधा दी जा चुकी है. हालांकि, 42 निजी अस्पतालों के बकाया बिलों का भुगतान अभी लंबित था. अदालत ने दिसंबर 2023 में नोटिस जारी करते हुए टिप्पणी की थी कि हमें समझ में नहीं आता कि सरकार का एक विभाग दूसरे विभाग से क्यों लड़ रहा है. दिल्ली सरकार ने तत्कालीन स्वास्थ्य सेवा महानिदेशालय और स्वास्थ्य सचिव पर योजना को जानबूझकर बाधित करने का आरोप लगाते हुए उनके खिलाफ अनुशासनात्मक कार्रवाई की मांग की.
सुप्रीम कोर्ट के फैसले को केंद्र ने पलटा
मई 2023 में सुप्रीम कोर्ट की संविधान पीठ ने अधिकारियों के तबादलों और पोस्टिंग पर नियंत्रण दिल्ली सरकार को सौंपने का निर्णय दिया था. इसके कुछ ही दिनों बाद केंद्र सरकार ने एक अध्यादेश लाकर इस फैसले को पलट दिया. इसके बाद केंद्र ने राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र दिल्ली सरकार अधिनियम, 1991 में संशोधन करके प्रशासनिक सेवाओं पर नियंत्रण दोबारा अपने हाथ में ले लिया. AAP सरकार ने केंद्र सरकार के इस कदम को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी है और यह मामला अब विचाराधीन है. फरासात ने कोर्ट से कहा कि एक बार संविधान पीठ के फैसले पर निर्णय हो जाने के बाद यह विवाद ख़त्म हो जाएगा.