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'सरकार बदलने की साजिश का हिस्‍सा थे 2020 के दिल्‍ली दंगे', सुप्रीम कोर्ट में दिल्‍ली पुलिस के एफिडेविट में क्‍या-क्‍या?

दिल्ली पुलिस ने सुप्रीम कोर्ट में दाखिल एफिडेविट में 2020 के दिल्ली दंगों को “रिजीम-चेंज ऑपरेशन” बताया है. पुलिस का दावा है कि यह हिंसा सीएए विरोध की आड़ में रची गई सुनियोजित साजिश थी, जिसका उद्देश्य भारत की स्थिरता और अंतरराष्ट्रीय छवि को नुकसान पहुंचाना था. एफिडेविट में उमर खालिद, शरजील इमाम, मीरन हैदर और गुलफिशा फातिमा पर ट्रायल में देरी और सामूहिक साजिश रचने के आरोप लगाए गए हैं.

सरकार बदलने की साजिश का हिस्‍सा थे 2020 के दिल्‍ली दंगे, सुप्रीम कोर्ट में दिल्‍ली पुलिस के एफिडेविट में क्‍या-क्‍या?
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( Image Source:  ANI )
प्रवीण सिंह
Edited By: प्रवीण सिंह

Updated on: 30 Oct 2025 1:42 PM IST

दिल्ली पुलिस ने 2020 के उत्तर-पूर्वी दिल्ली दंगों को लेकर सुप्रीम कोर्ट में दायर अपने एफिडेविट में सनसनीखेज दावा किया है. पुलिस ने कहा है कि ये दंगे किसी आकस्मिक विरोध का परिणाम नहीं थे, बल्कि सरकार बदलने के उद्देश्य से रची गई सुनियोजित साजिश का हिस्सा थे.

दिल्ली पुलिस ने सुप्रीम कोर्ट में उमर खालिद, शरजील इमाम, मीरन हैदर, गुलफिशा फातिमा और अन्य आरोपियों की जमानत याचिकाओं का विरोध करते हुए कहा है कि 2020 के दंगे एक ‘रिजीम-चेंज ऑपरेशन’ का हिस्सा थे.

एफिडेविट में दावा किया गया है कि यह कोई अचानक भड़का विरोध नहीं था, बल्कि भारत की आंतरिक स्थिरता और अंतरराष्ट्रीय साख को कमजोर करने की सुनियोजित साजिश थी. पुलिस ने कहा कि जांच में मिले आंखों देखे गवाहों के बयान, तकनीकी डेटा, और दस्तावेजी सबूतों से यह साबित होता है कि यह हिंसा साम्प्रदायिक आधार पर गढ़ी गई गहरी साजिश थी, जिसका मकसद देश की संप्रभुता पर प्रहार करना था.

नागरिकता संशोधन कानून के विरोध की आड़ में साजिश

एफिडेविट में कहा गया है कि नागरिकता संशोधन कानून (CAA) को एक “रैडिकल कैटेलिस्ट” के रूप में इस्तेमाल किया गया, यानी यह मुद्दा केवल एक बहाना था जिसके जरिए लोगों को भड़काया गया. दिल्ली पुलिस का कहना है कि इस कानून के खिलाफ प्रदर्शन को शांति की आड़ में उग्रता में बदला गया और इसे देश के खिलाफ हथियार बनाया गया. पुलिस के मुताबिक, दंगे का समय भी सोचा-समझा गया था - जब तत्कालीन अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप भारत दौरे पर थे. इस दौरान देश को अंतरराष्ट्रीय मंच पर नकारात्मक रूप में पेश करने की कोशिश की गई ताकि भारत की छवि को धक्का लगे.

‘जेल, न कि बेल’ - UAPA का हवाला

एफिडेविट में पुलिस ने UAPA (Unlawful Activities Prevention Act) के तहत दायर आरोपों पर ज़ोर देते हुए कहा कि ऐसे गंभीर मामलों में “जेल, न कि बेल” ही नियम है. पुलिस का कहना है कि आरोपियों ने अब तक अपने निर्दोष होने का कोई ठोस सबूत पेश नहीं किया है. दिल्ली पुलिस ने तर्क दिया है कि मामले की गंभीरता और देशविरोधी गतिविधियों की प्रकृति को देखते हुए केवल मुकदमे में देरी के आधार पर आरोपियों को जमानत नहीं दी जा सकती.

सुनियोजित देरी और ‘कोऑर्डिनेटेड नॉन-कॉपरेशन’

एफिडेविट में पुलिस ने यह भी आरोप लगाया है कि आरोपी जानबूझकर मुकदमे की प्रक्रिया में देरी कर रहे हैं. पुलिस का कहना है कि उमर खालिद, शरजील इमाम, मीरन हैदर और गुलफिशा फातिमा जैसे अभियुक्तों ने “फ्रिवोलस एप्लीकेशंस” (तुच्छ याचिकाएं) दाखिल करके ट्रायल कोर्ट को आरोप तय करने से रोका है. एफिडेविट के मुताबिक, यह “ब्रेज़न एब्यूज ऑफ प्रोसेस” यानी न्यायिक प्रक्रिया का खुला दुरुपयोग है. पुलिस का तर्क है कि अगर आरोपी सहयोग करें, तो मुकदमा 100–150 प्रमुख गवाहों के आधार पर जल्द निपटाया जा सकता है.

डोनाल्ड ट्रंप दौरे से जुड़ा एंगल

दिल्ली पुलिस ने एफिडेविट में यह भी उल्लेख किया है कि जांच के दौरान मिले चैट मैसेजों और डिजिटल डेटा में कई संदर्भ मिले हैं जो डोनाल्ड ट्रंप की भारत यात्रा से जुड़े हैं. पुलिस का कहना है कि यह कोई संयोग नहीं था कि दंगे उसी समय हुए जब अमेरिकी राष्ट्रपति दिल्ली में मौजूद थे. इन दंगों के ज़रिए अंतरराष्ट्रीय मीडिया का ध्यान आकर्षित करना और CAA को वैश्विक स्तर पर मुस्लिमों के खिलाफ कानून के रूप में पेश करना ही मकसद था. एफिडेविट में कहा गया है कि यह सब एक “इंटरनेशनल नैरेटिव सेटिंग” रणनीति का हिस्सा था.

व्यापक हिंसा और नुकसान

दिल्ली पुलिस ने बताया कि इस साजिश के परिणामस्वरूप 53 लोगों की मौत, 750 से अधिक एफआईआर, और सैकड़ों करोड़ रुपये की संपत्ति का नुकसान हुआ. एफिडेविट में कहा गया है कि हिंसा केवल दिल्ली तक सीमित नहीं रखी गई थी, बल्कि इसे देश के अन्य हिस्सों तक फैलाने की योजना भी बनाई गई थी. पुलिस का दावा है कि जांच में कई पैन-इंडिया लिंक मिले हैं - यानी देश के अलग-अलग हिस्सों में एक समान प्रदर्शन, नारेबाजी, और भड़काऊ भाषणों का पैटर्न दिखाई दिया.

अंतरराष्ट्रीय छवि को निशाना बनाने की रणनीति

एफिडेविट के अनुसार, दंगों के पीछे मुख्य उद्देश्य भारत की अंतरराष्ट्रीय छवि को धूमिल करना था. पुलिस ने कहा कि सोशल मीडिया पर फैलाई गई सामग्री, विदेशी पत्रकारों को भेजे गए वीडियो और ट्वीट्स सब यह दर्शाते हैं कि भारत को “अल्पसंख्यक विरोधी राष्ट्र” के रूप में दिखाने की सुनियोजित कोशिश की गई. इससे देश के खिलाफ ग्लोबल मीडिया नैरेटिव तैयार करने की कोशिश की गई, ताकि सरकार पर अंतरराष्ट्रीय दबाव बढ़ाया जा सके.

पुलिस का रुख: साक्ष्य पर्याप्त, साजिश स्पष्ट

दिल्ली पुलिस ने अपने एफिडेविट में यह भी कहा है कि “मौजूदा सबूत” जमानत देने के खिलाफ हैं. पुलिस ने अदालत से आग्रह किया है कि देशविरोधी गतिविधियों में शामिल होने के आरोपियों को रिहा करना कानून व्यवस्था के लिए खतरा होगा. एफिडेविट में कहा गया है कि जांच के दौरान बरामद किए गए वीडियो फुटेज, फोन कॉल रिकॉर्ड्स, और वॉट्सऐप चैट्स यह दिखाते हैं कि हिंसा का संचालन केंद्रीय स्तर पर तालमेल से किया गया था.

सुप्रीम कोर्ट अब इस एफिडेविट पर सुनवाई करेगा, जिसके बाद तय होगा कि उमर खालिद, शरजील इमाम, मीरन हैदर और गुलफिशा फातिमा को जमानत दी जाएगी या नहीं. दिल्ली पुलिस ने यह स्पष्ट किया है कि वह अदालत में इस मामले को राष्ट्रीय सुरक्षा से जुड़ा मामला मानते हुए पूरी गंभीरता से पेश करेगी.

सुप्रीम कोर्ट
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