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दिल्ली की धुंध सिर्फ फेफड़े नहीं, जोड़ों को भी कर रही कमजोर; बढ़ते वायु प्रदूषण से Arthritis का भी खतरा

दिल्ली-एनसीआर की बढ़ती धुंध और वायु प्रदूषण सिर्फ फेफड़ों को ही नहीं, बल्कि जोड़ों और प्रतिरक्षा तंत्र को भी प्रभावित कर रही है. विशेषज्ञों ने IRACON 2025 सम्मेलन में चेताया कि PM2.5 और अन्य प्रदूषक सूजन, ऑक्सीकरण तनाव और ऑटोबॉडी निर्माण को बढ़ाकर रुमेटॉयड आर्थराइटिस जैसी ऑटोइम्यून बीमारियों का खतरा बढ़ा रहे हैं. खासकर युवा और बिना पारिवारिक इतिहास वाले लोग अब तेजी से प्रभावित हो रहे हैं. प्रदूषण नियंत्रण और हरी जगहों का विस्तार राष्ट्रीय स्वास्थ्य प्राथमिकता बनने की आवश्यकता है.

दिल्ली की धुंध सिर्फ फेफड़े नहीं, जोड़ों को भी कर रही कमजोर; बढ़ते वायु प्रदूषण से Arthritis का भी खतरा
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( Image Source:  Sora AI )
प्रवीण सिंह
Edited By: प्रवीण सिंह

Published on: 10 Oct 2025 12:44 PM

दिल्ली-एनसीआर की हवा में घुली धुंध और जहरीली गैसें सिर्फ आंखों और फेफड़ों को ही नहीं प्रभावित कर रही हैं, बल्कि यह हमारे प्रतिरक्षा तंत्र (Immune System) को भी प्रभावित कर रही हैं. विशेषज्ञों का कहना है कि लगातार प्रदूषित वातावरण में रहने से रुमेटॉयड आर्थराइटिस (RA) जैसे ऑटोइम्यून रोग तेजी से बढ़ रहे हैं. यह चेतावनी इंडियन रुमेटोलॉजी एसोसिएशन (IRACON 2025) की 40वीं वार्षिक सम्मेलन में पेश की गई, जो 9 से 12 अक्टूबर तक द्वारका के यशोभूमि में आयोजित हो रहा है.

रुमेटॉयड आर्थराइटिस एक क्रॉनिक डिसऑर्डर है, जिसमें शरीर की प्रतिरक्षा प्रणाली गलती से अपनी ही ऊतकों, खासकर जोड़ों पर हमला करती है. इससे जोड़ों में सूजन, अकड़न और दीर्घकालिक विकलांगता होती है. पहले इसे मुख्यतः जेनेटिक (आनुवंशिक) माना जाता था, लेकिन अब यह स्पष्ट हो गया है कि पर्यावरणीय कारक भी इसका अहम कारण बन सकते हैं. इसमें दिल्ली की प्रदूषित हवा सबसे खतरनाक योगदानकर्ता के रूप में उभर रही है.

वैश्विक शोध, यूरोप और चीन से लेकर भारत तक, यह दर्शाता है कि PM2.5 जैसी सूक्ष्म प्रदूषक कणों की लंबे समय तक एक्सपोज़र से प्रतिरक्षा संतुलन बिगड़ता है और सिस्टमिक इन्फ्लेमेशन (systemic inflammation) बढ़ता है. विशेषज्ञों का मानना है कि यही प्रक्रिया ऑटोइम्यून रोगों में वृद्धि का कारण बन रही है.

इम्‍यून सिस्‍टम को ओवएक्टिव कर रहा प्रदूषण

टाइम्‍स ऑफ इंडिया की रिपोर्ट के अनुसार डॉ. उमा कुमार, एआईआईएमएस की रुमेटोलॉजी विभाग प्रमुख, ने कहा, “हम देख रहे हैं कि प्रदूषित क्षेत्रों में रहने वाले मरीजों में RA के मामले बढ़ रहे हैं, जबकि उनका परिवार या जीन इसमें योगदान नहीं देता. प्रदूषक सूजन (inflammatory reactions) बढ़ाते हैं, जोड़ों को नुकसान पहुंचाते हैं और बीमारी की प्रगति को तेज करते हैं. यह ऑक्सीकरण तनाव (oxidative stress) पैदा करता है और प्रतिरक्षा प्रणाली को ओवरएक्टिव कर देता है. यह एक गंभीर सार्वजनिक स्वास्थ्य संकट है.”

डॉ. बिमलेश धर पांडे, IRACON 2025 के ऑर्गनाइजिंग सेक्रेटरी और फोर्टिस हॉस्पिटल के रुमेटोलॉजी डायरेक्टर, ने भी इस चिंता को दोहराया. उनका कहना है, “PM2.5, नाइट्रोजन ऑक्साइड और ओजोन जैसे प्रदूषक सूजन, ऑक्सीकरण तनाव और ऑटोबॉडी निर्माण को बढ़ावा देते हैं. उच्च-यातायात वाले क्षेत्रों के पास रहने वाले लोग सबसे अधिक जोखिम में हैं, क्योंकि वे लगातार वाहनों के उत्सर्जन के संपर्क में रहते हैं.”

इस वजह से बीमारी का कारण बन रहा प्रदूषण से एक्‍सपोजर

वैज्ञानिक प्रमाण अब इन चिकित्सीय अवलोकनों का समर्थन कर रहे हैं. 2025 में प्रकाशित यूरोपियन मेडिकल जर्नल की एक स्टडी में प्रदूषण एक्सपोज़र और ऑटोइम्यून रोगों के बीच सीधा आनुवंशिक लिंक पाया गया. उन्नत जीन मॉडलिंग से शोधकर्ताओं ने साबित किया कि हवा में प्रदूषक प्रतिरक्षा मार्गों को बदल सकते हैं, जिससे पर्यावरणीय एक्सपोज़र केवल संयोग नहीं, बल्कि रोग का कारण बन जाता है.

डॉ. नीरज जैन, IRACON 2025 के वैज्ञानिक अध्यक्ष और सर गंगा राम हॉस्पिटल के रुमेटोलॉजी के वाइस-चेयरमैन, कहते हैं, “पर्यावरणीय बोझ संतुलन को झुका रहा है, स्वस्थ लोगों को मरीजों में बदल रहा है. युवा लोगों में RA के मामलों का बढ़ना सच में चेतावनी की घंटी बजा देता है.”

PM2.5 के संपर्क में रहने वालों में तेजी से बढ़ रहे मामले

डॉ. पुलिन गुप्ता, RML हॉस्पिटल के रुमेटोलॉजी प्रोफेसर ने बताया कि जो मरीज अधिक PM2.5 के संपर्क में रहते हैं, उनमें तेजी से बढ़ने वाली और आक्रामक आर्थराइटिस देखी जा रही है. उनका कहना है कि शहरों में हरी जगहों का सिकुड़ना समस्या को और बढ़ा रहा है, क्योंकि प्राकृतिक फिल्टर्स हवा को साफ करने में मदद करते थे.

'यह क सामाजिक संकट है'

डॉ. रोहिनी हंडा, सम्मेलन की चेयरपर्सन और इंद्रप्रस्थ अपोलो हॉस्पिटल्स की वरिष्ठ कंसल्टेंट, ने इसे एक "सामाजिक संकट" करार दिया. उनका कहना है, “यदि प्रदूषण स्तर को नियंत्रित नहीं किया गया, तो हम एक ऐसे पीढ़ी की ओर बढ़ रहे हैं जो रोकथाम योग्य ऑटोइम्यून रोगों से विकलांग हो जाएगी. इसके सामाजिक, आर्थिक और स्वास्थ्य संबंधी परिणाम गंभीर होंगे.”

सर्दियां आने से पहले ही एक्‍सपर्ट्स ने चेताया

जैसे ही दिल्ली धुंध भरी सर्दियों की ओर बढ़ रही है, रुमेटोलॉजिस्ट्स ने चेतावनी दी है कि गंदी हवा सिर्फ फेफड़ों को ही नहीं, जोड़ों को भी प्रभावित कर रही है. डॉ. उमा कुमार कहती हैं, “रुमेटोलॉजी अब केवल दर्द प्रबंधन का विषय नहीं रहा. यदि भारत अपनी आने वाली पीढ़ियों को ऑटोइम्यून रोगों की विकराल पकड़ से बचाना चाहता है, तो हवा को साफ करना राष्ट्रीय स्वास्थ्य प्राथमिकता बननी चाहिए.” विशेषज्ञों ने सुझाव दिया है कि प्रदूषण से होने वाले RA और अन्य ऑटोइम्यून रोगों की रोकथाम के लिए शहरी नीतियों में सुधार, प्रदूषण नियंत्रण, ग्रीन स्पेस का विस्तार, और सार्वजनिक स्वास्थ्य शिक्षा पर जोर देना जरूरी है.

दिल्ली और एनसीआर की बढ़ती प्रदूषण समस्या केवल सांस लेने की तकलीफ नहीं, बल्कि प्रतिरक्षा तंत्र और जोड़ों की बीमारी का खतरा भी बढ़ा रही है. विशेषज्ञों का कहना है कि यदि समय रहते सख्त प्रदूषण नियंत्रण उपाय और जन जागरूकता नहीं लाए गए, तो आने वाली पीढ़ियां रोकथाम योग्य, लेकिन विकराल ऑटोइम्यून रोगों से प्रभावित हो सकती हैं.

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