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दिल्ली का बिगड़ता संतुलन! चौथे साल भी गिरा सेक्स रेशियो, सरकार पर उठे सवाल- क्यों नहीं थम...

दिल्ली में लिंगानुपात लगातार चौथे साल गिरकर 920 पर पहुंच गया है. यह आंकड़ा न केवल समाज के बदलते संतुलन को दर्शाता है, बल्कि सरकार की नीतियों और कानून लागू करने की क्षमता पर भी बड़े सवाल खड़े करता है. जन्म पूर्व लिंग निर्धारण और भ्रूण हत्या जैसे अपराधों पर अंकुश लगाने के दावे बार-बार किए गए, लेकिन जमीनी स्तर पर हालात सुधरने के बजाय और बिगड़ते दिख रहे हैं.

दिल्ली का बिगड़ता संतुलन! चौथे साल भी गिरा सेक्स रेशियो, सरकार पर उठे सवाल- क्यों नहीं थम...
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( Image Source:  Eshani Verma @eshaniverma809 and perplexity )

देश की राजधानी दिल्ली में लिंगानुपात का संकट गहराता जा रहा है. ताज़ा आंकड़ों के मुताबिक लगातार चौथे साल लिंगानुपात में गिरावट दर्ज की गई है. यह घटकर 920 पर आ गया है. विशेषज्ञ इसे बेहद गंभीर स्थिति बता रहे हैं. सवाल उठ रहा है कि राजधानी जैसे मेट्रो शहर में भी बेटियों के जन्म को लेकर सोच क्यों नहीं बदल रही और सरकारी योजनाओं का असर आखिर क्यों नहीं दिख रहा? दिल्ली सरकार चुप क्यों बैठी है. दिल्ली वालों के लिए चुनौती बनी जन्म पूर्व निर्धारण जैसे गुप चुप गोरखधंधे के खिलाफ यहां की एजेंसिया कार्रवाई क्यों नहीं करतीं?

चौथे साल भी नीचे खिसका आंकड़ा

दिल्ली के आर्थिक एवं सांख्यिकी निदेशालय और मुख्य रजिस्ट्रार (जन्म एवं मृत्यु) कार्यालय की रिपोर्ट के मुताबिक 2021 में दिल्ली का लिंगानुपात 935 था, जो 2024 में घटकर 1,000 पुरुषों पर 920 रह गया. लगातार गिरावट से साफ है कि जागरूकता अभियानों और योजनाओं के बावजूद हालात सुधरने की बजाय और बिगड़ते जा रहे हैं. साल 2023 में यह 922 और 2022 में 929 था.

दिल्ली सरकार के एक वरिष्ठ स्वास्थ्य अधिकारी ने कहा कि यह गिरावट जिला अधिकारियों द्वारा निरीक्षणों को दी जाने वाली कम प्राथमिकता को दर्शाती है. उन्होंने कहा कि कम निरीक्षणों के कारण कारण बताओ नोटिस और पंजीकरण निलंबन कम हुए हैं, जिससे पूरी निवारक प्रणाली कमजोर हुई है. अधिकारी ने बताया कि घरेलू संग्रह सेवाओं के माध्यम से आईआईटी (गैर-आक्रामक प्रसव पूर्व परीक्षण) और कार्योटाइपिंग की पेशकश करने वाली अवैध प्रयोगशालाओं में तेजी से वृद्धि हुई है, जिसकी रिपोर्ट सीधे मरीजों तक पहुंचाई जाती है.

जन्म दर में भी आई गिरावट

दिल्ली में 2024 में 3,06,459 जन्म दर्ज किए गए, जो 2023 में 3,15,087 जन्मों से कम है। औसत दैनिक जन्म संख्या पिछले वर्ष के 863 से घटकर 837 हो गई. कुल जन्मों में से 52.1 प्रतिशत पुरुष, 47.9 प्रतिशत महिलाएं और 0.03 प्रतिशत अन्य श्रेणी में थे, जिनमें ट्रांसजेंडर, अस्पष्ट या अघोषित मामले शामिल हैं.

इनमें से अधिकांश जन्म, 96.1 प्रतिशत, संस्थागत प्रसवों में हुए, जिनमें से 65.11 प्रतिशत संस्थागत प्रसव सरकारी अस्पतालों में हुए. घरेलू (घर) प्रसव 3.9 प्रतिशत थे? और इनमें से लगभग 17 प्रतिशत को प्रशिक्षित चिकित्सा कर्मियों की सहायता मिली. जबकि 61.4 प्रतिशत रिश्तेदारों या अप्रशिक्षित मदद पर निर्भर थे. प्रसव में शहरी प्रभुत्व महत्वपूर्ण था, जहां 88.1 प्रतिशत जन्म शहरी क्षेत्रों में रहने वाली माताओं द्वारा हुए, जबकि दिल्ली के ग्रामीण इलाकों में यह प्रतिशत 11.9 प्रतिशत था.

दिल्ली में 51.5 प्रतिशत बच्चे पहली बार जन्मे, उसके बाद 36.4 प्रतिशत दूसरे क्रम के, 10.2 प्रतिशत तीसरे क्रम के और लगभग 2 प्रतिशत चौथे या उससे ऊपर के क्रम के थे. जब मातृ शिक्षा स्तर के आधार पर जन्म क्रम का विश्लेषण किया गया तो एक दिलचस्प पैटर्न सामने आया. चौथे या उससे ऊपर के क्रम में जन्म देने वाली माताओं में, 41.1 प्रतिशत की शिक्षा मैट्रिक और स्नातक से नीचे के बीच थी, जबकि 16.7 प्रतिशत निरक्षर थी. ऐसे जन्मों में से केवल 9.6 प्रतिशत स्नातक या उच्च योग्यता वाली माताओं में दर्ज किए गए, जो कम शिक्षा और उच्च प्रजनन दर के बीच एक स्पष्ट संबंध को दर्शाता है.

दिल्ली सरकार के अधिकारियों का कहना है कि यह गिरावट मामला है, लेकिन स्वास्थ्य विशेषज्ञों ने चिंता जताई है और कहा है कि यह रुझान दिल्ली-एनसीआर में अवैध जन्मपूर्व लिंग निर्धारण परीक्षणों की ओर इशारा करता है. दिल्ली के आर्थिक एवं सांख्यिकी निदेशालय और मुख्य रजिस्ट्रार (जन्म एवं मृत्यु) कार्यालय द्वारा 2024 में जन्म एवं मृत्यु पर अपनी वार्षिक रिपोर्ट में जारी किया गया है.

जन्म पूर्व लिंग निर्धारण के खिलाफ कार्रवाई की जरूरत

एमसीडी के अस्पताल प्रशासन के पूर्व निदेशक अरुण यादव ने कहा, "यह रुझान चिंता का विषय है क्योंकि अब (2020 से) इसमें लगातार गिरावट आ रही है. यह शहर में जन्मपूर्व लिंग निर्धारण के संकेत देता है." उन्होंने आगे कहा, "हमें छिटपुट छापेमारी के बजाय इन अवैध इकाइयों पर लगातार कार्रवाई की जरूरत है."

कानून के बावजूद अल्ट्रासाउंड और जन्म पूर्व लिंग निर्धारण के मामले सामने आते रहे हैं. भ्रूण हत्या रोकने के लिए पीएनडीटी एक्ट (Pre-Conception and Pre-Natal Diagnostic Techniques Act) लागू है, लेकिन इसके बावजूद कड़ी निगरानी और कार्रवाई की कमी साफ झलकती है.

सरकार की नीतियों पर सवाल

दिल्ली सरकार ने ‘लाड़ली योजना’ और केंद्र की ‘बेटी बचाओ-बेटी पढ़ाओ’ जैसी योजनाओं का प्रचार तो किया, लेकिन नतीजे उत्साहजनक नहीं रहे. विशेषज्ञों का कहना है कि योजनाओं का क्रियान्वयन जमीनी स्तर पर कमजोर है. यही वजह है कि आंकड़े लगातार गिर रहे हैं.

सामाजिक मानसिकता बनी सबसे बड़ी वजह

विशेषज्ञ मानते हैं कि लिंगानुपात में गिरावट की सबसे बड़ी वजह समाज की मानसिकता है. बेटों को वंश बढ़ाने और बेटियों को बोझ समझने की सोच अभी भी मजबूती से कायम है. राजधानी जैसे आधुनिक शहर में भी यह मानसिकता बदलाव की राह नहीं पकड़ पा रही.

भविष्य पर संकट

विशेषज्ञ चेतावनी देते हैं कि अगर यही हालात रहे तो समाज में पुरुष-महिला संतुलन और बिगड़ेगा। इसका असर महिलाओं की सुरक्षा, विवाह संबंधी असमानता और अपराध दर पर पड़ सकता है.

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