दिल्ली हाई कोर्ट की टिप्पणी! पढ़ी-लिखी महिलाएं न मांगें पति से एलिमनी, कानून खाली बैठने वालों को नहीं देता बढ़ावा
हाल ही में दिल्ली हाई कोर्ट के जस्टिस चंद्र धारी सिंह ने कहा है कि जो महिलाएं पढ़ी-लिखी है और नौकरी करने में सक्षम हैं उन्हें पति से भरण पोषण नहीं मांगना चाहिए। धारी सिंह ने महिलाओं को आत्मनिर्भर बनने पर जोर दिया है. उन्होंने कहा है कि जो महिलाएं अच्छी नौकरी से वेतन पा सकती है वह पति की एलिमनी का इंतजार नहीं करें.

दिल्ली हाई कोर्ट के जस्टिस चंद्र धारी सिंह ने एक ट्रायल कोर्ट की उस याचिका को खारिज कर दिया जिसमें एक महिला ने अपने पति से अलग हुए भरण पोषण के लिए पहले हाई कोर्ट में याचिका दायर की फिर सफलता हासिल न होने पर निचली अदालत में याचिका दायर की. अब जस्टिस चंद्र धारी सिंह ने कहा कि कानून बेकार और खाली बैठने वालों को बढ़ावा नहीं देती है. वहीं जो महिलाएं योग्य और नौकरी करने की क्षमता रखती हैं उन्हें अपने अलग हुए पति से भरण-पोषण की मांग नहीं करनी चाहिए.
दैनिक भास्कर के मुताबिक, सीआरपीसी की धारा 125 में पति-पत्नी के बीच समानता बनाए रखने और पत्नी, बच्चों और माता-पिता को सुरक्षा देने की विधायी मंशा है, लेकिन जो महिलाएं अच्छी खासी नौकरी कर रही है अच्छा वेतन पा रही हैं उन्हें पति से गुजारा भत्ता मांगने के लिए बेकार नहीं बैठना चाहिए. 19 मार्च को अपने आदेश में न्यायमूर्ति सिंह ने कहा, 'अदालत याचिकाकर्ता में कमाने और अपनी शिक्षा का लाभ उठाने की क्षमता देख सकती है इसलिए वह ऐसी महिलाओं को आत्मनिर्भर बनने पर जोर दिया.
क्या है मामला
हालांकि जिस महिला की याचिका को ख़ारिज किया गया है उसका अदालत में कहना है कि वह पढ़ी-लिखी और अन्य महिलाओं की तरह दुनियादारी से वाकिफ है. लेकिन साल 2019 में शादी के बंधन में बंधने के बाद वह अपने पति के साथ सिंगापुर चली गई जहां उसके पति समेत उसके ससुराल वालों ने उसके साथ दुर्व्यवहार किया. महिला का दावा है कि साल 2021 में उसे पति के द्वारा सही सलूक न करने के कारण उसे भारत लौटने पर मजबूर होना पड़ा जिसके लिए उसे अपने गहने बेचने पड़े. जब वह भारत आई तो उसे आर्थिक तंगी का सामना करना पड़ा और अपने मामा के साथ मजबूरन रहना पड़ा. जिसके बाद महिला ने पति से गुजारे भत्ते की मांग की.
एलिमनी का दावा नहीं कर सकती
वहीं पति ने याचिका का विरोध करते हुए कहा कि यह कानून का दुरुपयोग है क्योंकि महिला जानी-मानी है और कमाने में सक्षम है. महिला को कोई राहत देने से इनकार करते हुए, जो केवल बेरोजगारी के आधार पर एलिमनी का दावा नहीं कर सकती थी. हाई कोर्ट ने कहा कि याचिकाकर्ता यह समझने को तैयार नहीं है कि पढ़ी-लिखी होने और अच्छी योग्यता रखने के बावजूद, उसने भारत लौटने के बाद से बेकार रहना क्यों चुना?.
ऑस्ट्रेलिया से मास्टर डिग्री
बता दें महिला की याचिका को खारिज करने के पीछे का मकसद यह भी है कि महिला के पास ऑस्ट्रेलिया से मास्टर डिग्री थी और वह अपनी शादी से पहले दुबई में अच्छी कमाई कर रही थी. ट्रायल कोर्ट से सहमति जताते हुए, हाई कोर्ट ने कहा कि महिला ने दावा किया है कि वह बेकार नहीं बैठ सकती और नौकरी खोजने की कोशिश कर रही है, लेकिन उसने अपने दावे के सपोर्ट में न तो कोई सबूत पेश किया है और न ही अपनी प्रोफेशनल एक्टिविटी को फिर से शुरू किया है.