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न इमारत, न बच्चे... फिर भी कागजों में दिखाए गए 55 फर्जी स्कूल, सूरजपूर में शिक्षा के नाम पर ऐसे हुआ करोड़ों का घोटाला

छत्तीसगढ़ के सूरजपुर जिले में शिक्षा के अधिकार (RTE) जैसे नेक मकसद वाली योजना पर भ्रष्टाचार की परतें चढ़ गई हैं. करोड़ों रुपये के गबन और फर्जीवाड़े से जुड़ा यह मामला न केवल व्यवस्था की पोल खोलता है बल्कि यह सवाल भी खड़ा करता है कि बच्चों की शिक्षा के नाम पर आखिर कब तक राजनीति और लालच का खेल चलता रहेगा.

न इमारत, न बच्चे... फिर भी कागजों में दिखाए गए 55 फर्जी स्कूल, सूरजपूर में शिक्षा के नाम पर ऐसे हुआ करोड़ों का घोटाला
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( Image Source:  Canva )
हेमा पंत
Edited By: हेमा पंत

Updated on: 20 Sept 2025 2:48 PM IST

सूरजपुर से शिक्षा के क्षेत्र में एक चौंकाने वाला मामला सामने आया है, जिसने लोगों को हैरान कर दिया है. जिले में करीब 55 स्कूल न तो वास्तविक रूप में मौजूद हैं और न ही उनमें कोई छात्र पढ़ रहे हैं, फिर भी कागजों में इन्हें पूरी तरह चालू दिखाया गया. इस फर्जीवाड़े के जरिए शिक्षा के नाम पर शासन से करोड़ों रुपये का गबन किया गया.

इससे शिक्षा विभाग की विश्वसनीयता और बच्चों के भविष्य पर गंभीर सवाल खड़े हो गए हैं. यह मामला न केवल प्रशासन के लिए चुनौती बन गया है, बल्कि शिक्षा व्यवस्था में पारदर्शिता सुनिश्चित करने की जरूरत को भी उजागर करता है.

कांग्रेस अध्यक्ष ने खोली पोल

शहर कांग्रेस अध्यक्ष संजय डोसी ने प्रशासन को एक ज्ञापन सौंपते हुए पूरे घोटाले को "शिक्षा की जगह भ्रष्टाचार की पाठशाला" करार दिया. उन्होंने कलेक्टर एस. जयवर्धन से पूरे मामले की उच्चस्तरीय जांच और दोषियों पर एफआईआर दर्ज करने की मांग की. उनका कहना है कि इस फर्जीवाड़े ने बच्चों के अधिकारों पर डाका डाला है और शासन की छवि को कलंकित किया है.

कागजों पर स्कूल, मैदान में सूना सन्नाटा

ज्ञापन में यह गंभीर आरोप लगाया गया है कि जिले में दर्जनों ऐसे स्कूल मौजूद बताए गए हैं, जो असल में कहीं अस्तित्व में ही नहीं हैं. विभागीय अधिकारियों की मिलीभगत से इन 'कागजी स्कूलों' को हर साल आरटीई योजना के तहत लाखों-करोड़ों की राशि दी जाती रही. इन फर्जी स्कूलों के नाम पर ऐसे बच्चों की लिस्ट बनाई गई, जो कभी पैदा ही नहीं हुए थे या फिर जिनका शिक्षा से कोई वास्ता नहीं था.

ऐसे किया गया फर्जीवाड़ा

वेरिफिकेशन में सामने आया कि सूरजपुर जिले में करीब 55 स्कूल सिर्फ दस्तावेजों तक ही सीमित हैं. इनमें से कई जगहों पर एक ही परिसर में दो-दो स्कूलों को अलग-अलग नाम से दिखाकर शासन से फायदा लिया गया. वहीं कुछ स्कूलों ने तो अपनी पहचान तक बदल डाली. कहीं शिक्षा का माध्यम बदला गया, तो कहीं बोर्ड तक का नाम बदलकर फर्जीवाड़े को छुपाने की कोशिश की गई.

बच्चों के नाम पर करोड़ों की लूट

सबसे चौंकाने वाली परत उस समय खुली, जब वर्ष 2023-24 में जिले में आरटीई योजना के तहत 12,485 बच्चों को लाभार्थी बताया गया. लेकिन जब इन नामों की जांच की गई, तो बड़ी संख्या में छात्रों के नाम संदिग्ध और फर्जी पाए गए. यानी लाखों रुपये की फीस की पेमेंट उन बच्चों के लिए किया गया जो असल में थे ही नहीं. इससे साफ है कि शिक्षा के नाम पर सरकारी खजाने को बड़े पैमाने पर चूना लगाया गया और पूरा खेल अधिकारियों, स्कूल प्रबंधन और ठेकेदारों की सांठगांठ से खेला गया.

कांग्रेस का सख्त रुख, चेतावनी का ऐलान

कांग्रेस के प्रतिनिधिमंडल ने कलेक्टर से मांग की है कि सात दिन के भीतर जांच शुरू होनी चाहिए और दोषियों के खिलाफ एफआईआर दर्ज की जानी चाहिए. शहर कांग्रेस अध्यक्ष संजय डोसी ने साफ चेतावनी दी कि यदि समय रहते कार्रवाई नहीं हुई तो कांग्रेस को आंदोलन का रास्ता अपनाना पड़ेगा. यह सिर्फ घोटाले का मामला नहीं है बल्कि हजारों बच्चों के भविष्य से खिलवाड़ का बड़ा अपराध है.

प्रशासन की प्रतिक्रिया

कलेक्टर एस. जयवर्धन ने कांग्रेस के ज्ञापन को गंभीरता से लेते हुए मामले में जांच टीम गठित करने की घोषणा की. उन्होंने आश्वासन दिया कि किसी भी दोषी को बख्शा नहीं जाएगा और जांच पूरी तरह निष्पक्ष होगी.

असल सवाल

यह पूरा मामला सिर्फ भ्रष्टाचार की एक कड़ी नहीं है बल्कि एक बड़ा संकेत है कि मासूम बच्चों के अधिकार भी सत्ता और पैसों के खेल में बलि चढ़ रहे हैं. आरटीई जैसी योजना उन गरीब और वंचित बच्चों के लिए बनाई गई थी जिन्हें शिक्षा का अवसर नहीं मिल पाता. लेकिन जब योजना ही भ्रष्टाचार की भेंट चढ़ जाए, तो सबसे अधिक नुकसान उसी वर्ग को होता है जिसके लिए यह बनाई गई थी.

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