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'बिग बॉस' ग्रुप से चला 1000 करोड़ का खेल, पूर्व CM के बेटे चैतन्य बघेल बने लिकर स्कैम के मास्टरमाइंड, ऐसे बनाया पूरा सिंडिकेट

रायपुर के होटल से शुरू हुई एक गुप्त बैठक, व्हाट्सएप पर बना ‘Bigg Boss’ नाम का ग्रुप और देखते ही देखते खड़ा हो गया 1000 करोड़ का साम्राज्य. छत्तीसगढ़ के बहुचर्चित लिकर स्कैम में अब सामने आया है पूर्व मुख्यमंत्री भूपेश बघेल के बेटे चैतन्य बघेल उर्फ़ बिट्टू का नाम, जिसे ED ने इस खेल का मास्टरमाइंड बताया है

बिग बॉस ग्रुप से चला 1000 करोड़ का खेल, पूर्व CM के बेटे चैतन्य बघेल बने लिकर स्कैम के मास्टरमाइंड, ऐसे बनाया पूरा सिंडिकेट
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( Image Source:  x-@chaitanyabaghel )
हेमा पंत
Edited By: हेमा पंत

Updated on: 19 Sept 2025 11:52 AM IST

राजनीति, शराब और काला धन... जब ये तीनों मिल जाते हैं तो एक ऐसा मायाजाल बनता है जिसमें कानून, नैतिकता और लोकतंत्र सब कैद हो जाते हैं. छत्तीसगढ़ की ज़मीन पर बीते कुछ सालों में यही हुआ. करोड़ों की रिश्वत, फर्जी होलोग्राम, सैकड़ों ट्रकों में अवैध शराब और करोड़ों की अचल संपत्ति, ये सब किसी फिल्मी स्क्रिप्ट से कम नहीं लगता.

लेकिन यह कोई काल्पनिक कहानी नहीं है. यह हकीकत है उस 'लिकर सिंडिकेट' की, जिसके केंद्र में है पूर्व मुख्यमंत्री भूपेश बघेल का बेटा चैतन्य बघेल, उर्फ़ 'बिट्टू'. उन पर आरोप है कि उन्होंने नेताओं, अफसरों और कारोबारियों को जोड़कर पूरा सिंडिकेट खड़ा किया जिसने पूरे राज्य की शराब नीति को पैरेलल करप्शन इंजन में बदल डाला.

शुरुआत: फरवरी 2019 की एक सीक्रेट बैठक

कहानी शुरू होती है फरवरी 2019 से. रायपुर के एक आलीशान होटल में सीक्रेट बैठक होती है. कमरे में शराब कारोबारी, कुछ तेज-तर्रार नेता और ऊंचे पदों पर बैठे नौकरशाह मौजूद हैं. कांग्रेस के दिग्गज अनवर ढेबर इस मीटिंग के सूत्रधार थे. यहां तय हुआ कि छत्तीसगढ़ में शराब व्यापार का असली खेल अब खुलेआम नहीं बल्कि "सिस्टम के भीतर एक समानांतर सिस्टम" बनाकर खेला जाएगा. डिस्टिलरी ऑपरेटरों से कहा गया कि 'आपको अधिक दाम मिलेंगे, लेकिन बदले में प्रति केस कमीशन देना होगा.' यही वह पल था जब करोड़ों की धारा बहाने वाली मशीन का स्विच ऑन कर दिया गया.

'बिग बॉस' का ग्रुप और बिट्टू की एंट्री

इस सिंडिकेट को चलाने के लिए बनाया गया एक व्हाट्सएप ग्रुप नाम रखा गया बिग बॉस. इस ग्रुप में शामिल थे अनवर ढेबर, रिटायर आईएएस अफसर अनिल टुटेजा, एक्साइज अधिकारी सौम्या चौरसिया, कारोबारी पुष्पक और सबसे अहम, चैतन्य बघेल उर्फ़ बिट्टू. यहीं तय होता था कौन पैसा देगा, किसे पैसा मिलेगा और कैसे लाखों-करोड़ों का कैश हवाला चैनलों के जरिए घुमाया जाएगा. ED की चार्जशीट में चैट स्क्रीनशॉट्स मौजूद हैं कि कब बिट्टू ने कॉल किया, कितनी देर बातचीत हुई और किसे क्या आदेश दिया गया. यह ग्रुप एक 'पैरेलल कमांड सेंटर' था, जहां से छत्तीसगढ़ की शराब नीति नहीं, बल्कि शराब माफिया का कानून चलता था.

तीन हिस्सों में बंटी साजिश

ED ने अपनी जांच में पूरे सिंडिकेट को तीन हिस्सों में बांटा है.

पार्ट A: कमीशन का खेल

हर केस पर 75 रुपये की वसूली तय हुई. इस 'साधारण' खेल से भी 300 करोड़ रुपये से ज्यादा वसूल लिए गए.

पार्ट B: नकली होलोग्राम और ट्रकों की बारिश

यहीं असली खेल छिपा था. शराब की बोतलों पर नकली होलोग्राम लगाए गए और हजारों केस सरकारी वेयरहाउस से बचाकर सीधे बाजार में उतारे गए. 2022-23 में हर महीने 400 ट्रक अवैध शराब की सप्लाई होती थी. हर केस पर 3000 रुपये का मुनाफा. सोचिए, यह कैसा "सुपर-प्रिंटिंग मशीन" था जो नोट उगल रहा था.

पार्ट C: FL-10A लाइसेंस का जादू

आयातित विदेशी शराब बेचने के लिए चुनींदा कंपनियों को खास लाइसेंस दिए गए. यहां रेट इतने बढ़ाए गए कि 211 करोड़ रुपये का मुनाफा सीधे नेताओं और अधिकारियों की जेब में चला गया.

बिट्टू और रियल एस्टेट का जाल

सवाल उठता है कि इतना काला धन आखिर गया कहां? जवाब है रियल एस्टेट."Vitthal Green" और "Baghel Developers & Associates" नाम के प्रोजेक्ट चैतन्य बघेल की महत्वाकांक्षा और मनी लॉन्ड्रिंग दोनों का केंद्र बने. सरकारी रिकॉर्ड कहता है कि 7.14 करोड़ रुपये खर्च हुए. लेकिन जांच एजेंसियों ने पाया कि असली लागत 13-15 करोड़ थी, जिसमें से 4.2 करोड़ सीधे कैश में कॉन्ट्रैक्टरों को दिया गया. 2020 में एक दिन ऐसा भी आया जब एक ही दिन में 19 फ्लैट खरीदे गए. खरीदार थे शराब कारोबारी त्रिलोक सिंह धिल्लों के कर्मचारी. यह सीधा-सीधा काले धन को 'व्हाइट' बनाने की रणनीति थी.

ज्वेलर्स और प्लॉट का खेल

भिलाई के कुछ नामी ज्वेलर्स भी इस जाल में शामिल पाए गए. उन्होंने चैतन्य बघेल की कंपनियों को 5 करोड़ का 'लोन' दिया. फिर छह कीमती प्लॉट्स केवल 80 लाख रुपये में खरीद लिए. ED ने इसे 'टेक्स्टबुक एक्ज़ाम्पल' कहा है कि कैसे कैश अंदर जाता है और प्रॉपर्टी बाहर आती है, सब कुछ वैध दिखता है लेकिन असल में सब फर्जी है.

ब्यूरोक्रेसी का बिकना

सिर्फ कारोबारी और नेता ही नहीं, नौकरशाह भी इस सिंडिकेट का हिस्सा बने. ED की रिपोर्ट में कहा गया कि पूर्व मुख्य सचिव विवेक धांध केवल 'साइलेंट ऑब्ज़र्वर' नहीं थे, बल्कि सीधे लाभार्थी थे. एजेंसी के शब्दों में सरकारी विभाग को 'मनी मशीन' में बदल दिया गया था.

पप्पू बंसल की गवाही

किसी भी अपराध साम्राज्य की पोल खोलने के लिए अक्सर भीतर का कोई आदमी ही चाबी बनता है. इस केस में वह शख्स है लक्ष्मी नारायण उर्फ़ पप्पू बंसल. शराब कारोबारी और भूपेश बघेल के करीबी माने जाने वाले पप्पू ने पूछताछ में कबूल किया कि वह और चैतन्य बघेल मिलकर 1000 करोड़ रुपये से ज्यादा कैश हैंडल कर चुके हैं. उसने खुलासा किया कि पैसा अनवर ढेबर से दीपेन चावड़ा तक जाता था और वहां से कांग्रेस नेताओं राम गोपाल अग्रवाल और केके श्रीवास्तव तक पहुंचता था. सिर्फ तीन महीने में उसने 136 करोड़ रुपये खुद हैंडल किए.

आरोप और बचाव

ED की पांचवीं सप्लीमेंट्री चार्जशीट 15 सितंबर को दाखिल की गई. 7000 पन्नों से ज्यादा की यह रिपोर्ट बताती है कि बिट्टू ही इस पूरे सिंडिकेट का असली 'मास्टरमाइंड' था. उस पर 200 करोड़ रुपये से ज्यादा व्यक्तिगत लाभ का आरोप है, जबकि 850 करोड़ रुपये कथित रूप से कांग्रेस के खजाने में भेजे गए. लेकिन चैतन्य बघेल के वकील फैसल रिज़वी का कहना है कि पूरा केस राजनीतिक साज़िश है. उनके अनुसार गिरफ्तारी अवैध है, क्योंकि ना तो समन भेजा गया और ना ही पहले पूछताछ की गई. उन्होंने तर्क दिया कि मेरे मुवक्किल को बलि का बकरा बनाया गया है ताकि पूर्व मुख्यमंत्री को निशाना बनाया जा सके.

सत्ता और शराब का गहरा रिश्ता

यह मामला केवल अवैध शराब या पैसे का नहीं है. यह उस गहरे रिश्ते का प्रतीक है जो राजनीति और कारोबार के बीच पनपता है. जब सत्ता में बैठे लोग नियम बनाने वाले विभाग को ही 'कैश मशीन' बना दें तो लोकतंत्र का तंत्र चरमराने लगता है. ED की जांच से यह साफ हुआ कि छत्तीसगढ़ में शराब नीति केवल जनता को शराब उपलब्ध कराने की नीति नहीं थी. यह सत्ता की भूख, पैसे की हवस और भ्रष्टाचार का संगम थी.

नतीजा: सवालों से घिरी विरासत

आज चैतन्य बघेल ED की कस्टडी में है और EOW से गिरफ्तारी का सामना कर सकता है. लेकिन इस पूरे मामले ने छत्तीसगढ़ की राजनीति को झकझोर दिया है. एक ओर विपक्ष इसे 'कांग्रेस की शराब पॉलिसी का असली चेहरा' बता रहा है, वहीं समर्थक इसे 'राजनीतिक प्रतिशोध' कह रहे हैं.

लेकिन आम जनता के मन में सवाल गहरे हैं. क्या वाकई 1000 करोड़ रुपये का साम्राज्य सिर्फ 'बिट्टू' के इशारों पर खड़ा हुआ? क्या सैकड़ों नौकरशाह और कारोबारी बिना राजनीतिक संरक्षण के इतने बड़े खेल का हिस्सा बन सकते थे? और सबसे बड़ा सवाल अगर यह सब सच है तो लोकतंत्र की रक्षा कौन करेगा, जब उसके रक्षक ही लुटेरे बन जाएं?

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