...लड़की के प्राइवेट पार्ट को छूना रेप नहीं, सुप्रीम कोर्ट ने यह कहकर घटा दी आरोपी की 13 साल की सजा
सुप्रीम कोर्ट ने महत्वपूर्ण फैसले में कहा कि नाबालिग लड़की के प्राइवेट पार्ट को छूना भारतीय दंड संहिता (IPC) या पॉक्सो एक्ट के तहत रेप का अपराध नहीं माना जाएगा. अदालत ने इस आधार पर आरोपी की 13 साल की सजा घटाकर 7 साल कर दी है. कोर्ट ने स्पष्ट किया कि ऐसा कृत्य गंभीर यौन उत्पीड़न और महिला की गरिमा को ठेस पहुंचाने के अपराध के तहत आता है. इसके अलावा, आरोपी पर 50,000 रुपये का जुर्माना बरकरार रखा गया और इसे पीड़िता को मुआवजे के रूप में देने का आदेश दिया गया.

सुप्रीम कोर्ट ने एक महत्वपूर्ण फैसला सुनाते हुए स्पष्ट किया है कि 12 वर्ष से कम उम्र की नाबालिग लड़की के प्राइवेट पार्ट को छूना अब भारतीय दंड संहिता (IPC) की धारा 375/376 एबी या पॉक्सो एक्ट (POCSO Act) की धारा 6 के तहत दुष्कर्म या प्रवेशात्मक यौन उत्पीड़न का अपराध नहीं माना जाएगा. अदालत ने कहा कि ऐसा कृत्य अब POCSO Act की धारा 9(एम) के तहत 'गंभीर यौन उत्पीड़न' और IPC की धारा 354 के तहत 'महिला की गरिमा को ठेस पहुंचाना' माना जाएगा.
इस फैसले का असर लक्ष्मण जांगड़े के मामले पर भी पड़ा, जिन पर पहले छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट ने IPC की धारा 376एबी और POCSO Act की धारा 6 के तहत 20 साल की सजा सुनाई थी. सुप्रीम कोर्ट ने सजा को घटाकर IPC धारा 354 के तहत पांच साल और POCSO Act की धारा 10 के तहत सात साल के कठोर कारावास में बदल दिया, जबकि ₹50,000 जुर्माना बरकरार रखा गया.
मामला और आरोपों की जांच
सुप्रीम कोर्ट ने जांच में पाया कि आरोपी ने पीड़िता के गुप्तांगों को छुआ और अपने गुप्तांगों को भी दिखाया, लेकिन कोई प्रवेशात्मक कृत्य नहीं हुआ. अदालत ने कहा कि 'साक्ष्यों और अभिलेखों के अध्ययन से स्पष्ट है कि यह अपराध IPC की धारा 375 या POCSO Act की धारा 3(ग) के प्रावधानों को पूरा नहीं करता.' ट्रायल कोर्ट और हाईकोर्ट की यौन उत्पीड़न की धारणा इस आधार पर टिक नहीं पाई, क्योंकि यह मेडिकल रिपोर्ट, पीड़िता के बयानों या माँ की गवाही से समर्थित नहीं थी.
सुप्रीम कोर्ट का संशोधित निर्णय
सुप्रीम कोर्ट ने पाया कि आरोपी का कृत्य सीधे तौर पर- IPC धारा 354: महिला की गरिमा को ठेस पहुंचाना, POCSO Act धारा 9(एम): गंभीर यौन उत्पीड़न के अंतर्गत आता है. परिणामस्वरूप, सजा को संशोधित किया गया और जुर्माना पीड़िता को मुआवजे के रूप में दो महीने में देने का निर्देश दिया गया.
सुप्रीम कोर्ट की टिप्पणी
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि किसी नाबालिग लड़की के केवल निजी अंगों को छूना अब दुष्कर्म नहीं माना जाएगा, बल्कि इसे गंभीर यौन उत्पीड़न और महिला की गरिमा को ठेस पहुंचाने के अपराध के रूप में देखा जाएगा.'