Begin typing your search...

78 साल बाद भी नहीं बदली सोच! छत्तीसगढ़ में आज भी मौजूद हैं ‘नकटी’, ‘चमार टोला’, ‘भंगी बस्ती’ जैसे अपमानजनक गांवों के नाम

छत्तीसगढ़ में आज भी सैकड़ों गांव ऐसे नामों के साथ मौजूद हैं, जिन्हें सुनते ही लोग असहज हो जाते हैं. जातिसूचक, अपमानजनक और महिलाओं को नीचा दिखाने वाले कई गांवों के नाम न केवल सामाजिक संवेदनशीलता पर सवाल उठाते हैं. राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग ने इस गंभीर मुद्दे पर संज्ञान लिया है.

78 साल बाद भी नहीं बदली सोच! छत्तीसगढ़ में आज भी मौजूद हैं ‘नकटी’, ‘चमार टोला’, ‘भंगी बस्ती’ जैसे अपमानजनक गांवों के नाम
X
( Image Source:  AI: Sora )
विशाल पुंडीर
Edited By: विशाल पुंडीर

Updated on: 1 Dec 2025 5:14 PM IST

भारत को आजाद हुए 78 साल हो चुके हैं, लेकिन छत्तीसगढ़ में आज भी सैकड़ों गांव ऐसे नामों के साथ मौजूद हैं, जिन्हें सुनते ही लोग असहज हो जाते हैं. जातिसूचक, अपमानजनक और महिलाओं को नीचा दिखाने वाले कई गांवों के नाम न केवल सामाजिक संवेदनशीलता पर सवाल उठाते हैं, बल्कि वहां रहने वाले लोगों की पीढ़ियों को मानसिक तकलीफ भी देते आ रहे हैं.

गांवों में रहने वाले लोग बताते हैं कि उन्हें न सिर्फ बाहर शर्मिंदगी का सामना करना पड़ता है, बल्कि नौकरी, सरकारी कागज, यहां तक कि विवाह रिश्तों में भी गांव का नाम उनके लिए सबसे बड़ा अवरोध बन जाता है। अब राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग ने इस गंभीर मुद्दे पर संज्ञान लेते हुए राज्यों से ऐसे सभी गांवों की सूची मांगकर उनके नाम बदलने की प्रक्रिया शुरू करने का निर्देश दिया है.

बाहर जाते ही मजाक उड़ाते लोग

नया रायपुर के पास स्थित नकटी गांव इसका सबसे बड़ा उदाहरण है. यहा नकटी” शब्द का अर्थ है नाक कटी स्त्री या बेशर्म औरत. गांव के छोटे-बड़े सभी बताते हैं कि नाम सुनते ही लोग हंसी उड़ाने लगते हैं. ग्राम पंचायत में ग्रामीणों ने नाम बदलने का प्रस्ताव पास कर दिया है. गांव के सरपंच बिहारी यादव के अनुसार “हमने बहुत पहले ही ‘नकटी’ का नाम बदलकर ‘सम्मानपुर’ करने का फैसला कर लिया था. अब बस सरकारी मंजूरी का इंतजार है.”

छत्तीसगढ़ में ऐसे कई गांव अभी भी मौजूद

छत्तीसगढ़ के विभिन्न जिलों में कई गांव और बस्तियां आज भी जातिगत और अपमानजनक नामों के साथ दर्ज हैं. इनमें चमार टोला, चमार बस्ती, चुचरुंगपुर, भंगी टोला, भंगी बस्ती, माकरमुत्ता, टोनहीनारा, बोक्करखार, दौकीडीह, महार टोला, डोमपाड़ा, चुड़ैलझरिया, प्रेतनडीह जैसे गांव शामिल हैं. ग्रामीणों का कहना है कि वे अपने गांव से बेहद प्यार करते हैं, लेकिन नाम ऐसा होना चाहिए जिसे गर्व से बोला जा सके.

मानवाधिकार आयोग हुआ सख्त

राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग के हस्तक्षेप के बाद अब प्रशासन हरकत में आ गया है. सूत्रों के मुताबिक सभी जिला कलेक्टरों को निर्देश मिल चुके हैं. जिन्हें अपने जिले में मौजूद ऐसे सभी गांवों की सूची तैयार करने को कहा गया है. ग्राम सभाओं से नाम बदलने के प्रस्ताव लेकर प्रक्रिया जल्द शुरू की जा रही है.

क्या बोले ग्रामीण?

गांवों के लोगों का कहना है कि इन नामों से उनकी पहचान कमजोर पड़ती है और उन्हें अनचाही शर्मिंदगी झेलनी पड़ती है. ग्रामीणों ने साफ कहा “हमें अपने गांव से बहुत लगाव है. बस उसका नाम ऐसा हो कि हम गर्व से बोल सकें, न कि शर्म से सिर झुका लें.” उम्मीद जताई जा रही है कि जल्द ही छत्तीसगढ़ के इन सभी गांवों को नए, सम्मानजनक और सामाजिक रूप से स्वीकार्य नाम मिल जाएंगे.

Chhattisgarh News
अगला लेख