बेटे का कर्तव्य माता-पिता के साथ रहे, तलाक पर छत्तीसगढ़ हाई कोर्ट ने सुनाया फैसला
छत्तीसगढ़ हाई कोर्ट ने तलाक की अर्जी पर बड़ा फैसला सुनाया है. अदालत का कहना है कि पत्नी के अलग होने की जिद्द मानसिक क्रूरता है. उन्होंने कहा कि भारत में ऐसी प्रथा नहीं है. बेटे का माता-पिता के साथ रहना सांस्कृतिक कर्तव्य है. बेटों का पत्नी के कहने पर अपने माता-पिता को छोड़ देना आम बात नहीं है.

छत्तीसगढ़ हाई कोर्ट ने एक याचिका पर सुनवाई करते हुए पति के पक्ष में फैसला सुनाया है. आरोप है कि व्यक्ति की पत्नी बार-बार उसे उसके माता-पिता से अलग रहने की जिद्द किया करती थी. इस कारण व्यक्ति मानसिक प्रताड़ना का शिकार हुआ. कोर्ट ने भी ये बात मानी और इस बात पर जोर दिया कि पने माता पिता के प्रति जिम्मेदारी एक सांस्कृतिक महत्व है. अदालत का कहना है कि भारत में बेटों का पत्नी के कहने पर अपने माता-पिता को छोड़ देना आम बात नहीं है.
2017 में हुई शादी
जानकारी के अनुसार दंपत्ति की शादी साल 2017 में हुई. दोनों को एक साथ कुछ समय बीता लेकिन इस दौरान पत्नी ने पति से अलग रहने की जिद्द कर दी. इसके पीछे का कारण सिर्फ इतना की वह ग्रामीण जीवन जीने में खुश नहीं थी. अपने करियर में आगे बढ़ना चाहती थी. इस कारण बार-बार पति से अलग रहने की जिद्द करती थी. किसी तरह मामला सुलझे तो पति ने रायपुर में किराये पर अलग घर लिया. जिससे मामला सुलझ जाए. लेकिन यहां भी पत्नी नहीं मानी बताया गया कि उसका व्यवहार बेहद अपमानजनक और क्रूर होता रहा. यहां तक की बिना बताए घर छोड़कर चली गई. जिसके बाद पति ने तलाक की अर्जी दायर की.
आरोप था कि इस कारण मानसिक प्रताड़ना हुई. मामला निचली अदालत में पहुंचा लेकिन शिकायतकर्ता प्रशांत की अर्जी को अदालत ने खारिज कर दिया. इसके पीछे का कारण कि व्यक्ति मानसिक क्रूरता साबित नहीं कर पाया. निचली अदलात के इस फैसले के खिलाफ पीड़ित ने हाईकोर्ट में अपील की जहां अदालत ने उसके पक्ष में फैसला सुनाया है. हाईकोर्ट में पीड़ित ने कहा कि उसके परिवार के साथ रहने के लिए बार-बार इनकार करना, घर से बिना बताए चले जाना, इतना ही नहीं उसकी अनुपस्थिती में परिवार के साथ अपमानजनक व्यवहार मानसिक क्रूरता हुई है.
पति के पक्ष में सुनाया फैसला
अब इस मामले में हाई कोर्ट ने भी पति के पक्ष में फैसला सुनाया है. अदालत ने माना कि शिकायतकर्ता के साथ मानसिक क्रूरता हुई है. अदालत का कहना है कि बेटे के अपने बूढ़े माता-पिता की देखभाल करने के नैतिक और कानूनी दायित्व पर जोर दिया, खासकर जब उनकी आय सीमित हो. हालांकि सुनवाई के दौरान अदालत ने पति से उसकी पत्नी को आर्थिक सहायता देने की बात की. दो महीने के अंदर 5 लाख रुपये गुजारा भत्ता देने का निर्देश दिया गया है.
वहीं बार-बार पति को उसके परिवार से अलग करने के मामले पर अदालत ने कहा कि किसी बिना किसी कारण के पति को अपने परिवार से अलग रहने के लिए मजबूर करने के लिए पत्नी के लगातार प्रयास उसके लिए कष्टदायक होंगे और क्रूरता का कार्य माना जाएगा.