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विरोध पर उतरा कांकेर का ये गांव, धर्मांतरण कराने वालों पर लगाया बैन, एंट्री गेट पर बोर्ड लगाकर दी चेतावनी

कांकेर के चारभाठा गांव ने धर्मांतरण को लेकर अपनी आवाज बुलंद कर दी है. गांव वालों ने धर्मांतरण कराने वालों पर सख्त पाबंदी लगाई है और अपने एंट्री गेट पर एक बोर्ड लगाकर साफ चेतावनी जारी की है. यह कदम अपनी धार्मिक और सामाजिक पहचान बचाने के लिए उठाया गया है, जिससे गांव में इस तरह की गतिविधियों को पूरी तरह रोका जा सके.

विरोध पर उतरा कांकेर का ये गांव, धर्मांतरण कराने वालों पर लगाया बैन, एंट्री गेट पर बोर्ड लगाकर दी चेतावनी
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( Image Source:  AI Perplexity )
हेमा पंत
Edited By: हेमा पंत

Updated on: 11 Oct 2025 4:31 PM IST

छत्तीसगढ़ के कांकेर जिले में धर्मांतरण का विरोध लगातार तेज होता जा रहा है. अब नरहरपुर ब्लॉक के ग्राम चारभाठा ने खुलकर इसके खिलाफ मोर्चा खोल दिया है. गांव के लोगों ने एक सर्वसम्मत निर्णय लेते हुए पास्टर, पादरी और धर्मांतरण कराने वालों के गांव में प्रवेश पर रोक लगा दी है.

इस फैसले के बाद चारभाठा जिला कांकेर का ऐसा 12वां गांव बन गया है जिसने धर्मांतरण विरोध में सख्त कदम उठाया है. गांव के मुख्य प्रवेश द्वार पर इस प्रतिबंध की घोषणा करते हुए एक बड़ा बोर्ड भी लगाया गया है.

क्यों भड़के ग्रामीण?

चारभाठा के ग्रामीणों का कहना है कि गांव के आठ परिवार ईसाई धर्म अपना चुके हैं, जिससे गांव की सामाजिक और सांस्कृतिक एकता पर असर पड़ रहा है. उनका आरोप है कि कुछ लोग गांव में आकर भोले-भाले आदिवासी परिवारों को प्रलोभन देकर धर्म परिवर्तन के लिए उकसा रहे हैं. ग्रामीणों का मानना है कि यह सिर्फ धर्म परिवर्तन नहीं बल्कि उनकी पारंपरिक रीति-रिवाज, देवी-देवताओं की मान्यता और सांस्कृतिक अस्तित्व पर हमला है.

बोर्ड पर क्या लिखा?

गांव में लगाए गए बोर्ड में कानूनी आधार भी साफ तौर पर दर्ज किया गया है. इसमें लिखा है कि पेशा अधिनियम 1996 की धारा 4(घ) के तहत ग्राम सभा को अपनी सांस्कृतिक पहचान और परंपराओं की रक्षा का अधिकार प्राप्त है. इसी अधिकार के तहत गांव में पास्टर, पादरी और धर्मांतरण करने वालों का प्रवेश प्रतिबंधित किया जाता है. यह बोर्ड बाहरी लोगों के लिए स्पष्ट संदेश देता है कि गांव में धर्मांतरण गतिविधियों को किसी भी कीमत पर बर्दाश्त नहीं किया जाएगा.

पांच महीने पहले उठी थी शुरुआत

यह विरोध अचानक नहीं हुआ. करीब पांच महीने पहले जामगांव में सोमलाल राठौर नामक व्यक्ति की मौत के बाद अंतिम संस्कार को लेकर विवाद हुआ था. वह व्यक्ति ईसाई धर्म अपना चुका था, और गांव वालों ने उसके पारंपरिक अंतिम संस्कार का विरोध किया. विवाद बढ़ा और फिर ग्राम सभा ने धर्मांतरण कराने वालों पर रोक लगाने का प्रस्ताव पारित किया. उसी के बाद से आसपास के गांव एक-एक कर इसी दिशा में निर्णय लेते जा रहे हैं.

क्या है ग्रामीणों का रुख?

ग्रामीणों ने साफ कहा है कि उनका ईसाई धर्म या किसी भी धर्म से व्यक्तिगत विरोध नहीं है. वे सिर्फ जबरन या लालच देकर धर्म परिवर्तन कराने वालों का विरोध कर रहे हैं. उनका कहना है कि जब तक धर्मांतरण बंद नहीं होगा, तब तक गांवों में यह प्रतिबंध लागू रहेगा. उनका जोर सिर्फ एक बात पर है 'हमारी संस्कृति, हमारी परंपरा और हमारी पहचान से कोई समझौता नहीं.'

चारभाठा गांव का यह फैसला अब नई चर्चा का केंद्र बन गया है. यह मुद्दा सिर्फ धर्म परिवर्तन तक सीमित नहीं, बल्कि आदिवासी संस्कृति की सुरक्षा और सामाजिक एकता से भी जुड़ गया है.

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