बिहार में कुर्मी वोट बैंक के सबसे ताकतवर नेता कौन? जानें 5 बड़े नाम जो निभाते हैं किंगमेकर की भूमिका
बिहार की राजनीति में जातीय समीकरण हमेशा से निर्णायक रहे हैं. कुर्मी समाज एक ऐसा वोट बैंक है, जो कई सीटों पर परिणाम तय करता है. हालांकि, बिहार में कुर्मी समाज के लोगों की आबादी बहुत ज्यादा नहीं है, लेकिन इस समाज के नेता अपने दम खम पर पिछले दो दशक से ज्यादा समय से बिहार की राजनीति में किंगमेकर की भूमिका में हैं.

बिहार में चुनावी मौसम हो या राजनीतिक उठापटक, एक सवाल बार-बार उठता है कि "कुर्मी वोट किसके साथ जाएगा? क्योंकि कुर्मी समाज सिर्फ संख्या में मजबूत नहीं बल्कि एक सामूहिक ताकत और संगठित वोट बैंक बन चुका है. नालंदा जिले को कुर्मी समाज का गढ़ माना जाता है. कुर्मी समाज के लोग कभी कांग्रेस के साथ थे. उसके बाद कुर्मी समाज के लोग जेडीयू से जुड़ गए. अब बीजेपी और प्रशांत किशोर नेता जैसे कुर्मी समाज को लेकर नए समीकरण गढ़ने में जुटे हैं.
आइए, जानते हैं बिहार के 5 सबसे प्रभावशाली कुर्मी नेता कौन हैं, जिनकी राजनीति में आज भी धमक कायम है और वे कुर्मी वोट बैंक के असली दावेदार माने जाते हैं.
1. नीतीश कुमार
JDU सुप्रीमो और कुर्मी समाज के सर्वमान्य चेहरा नीतीश कुमार पिछले दो दशक से बिहार में सीएम बने हुए हैं. वह नौ बार बिहार का सीएम बन चुके हैं. बिहार की राजनीति में वह 'सुशासन बाबू' के नाम से मशहूर हैं. वह ना सिर्फ JDU के मुखिया हैं बल्कि कुर्मी समाज के सबसे बड़े चेहरा भी हैं. साल 2005 के बाद से उन्होंने कुर्मी वोट को JDU का कोर वोट बना दिया. हालांकि, बार-बार पाला बदलने से इस वोट बैंक में भी दरारें पड़ी हैं.
2. सतीश कुमार
साल 1994 में पटना के ‘गांधी मैदान’ में एक रैली हुई. रैली का नाम था कुर्मी चेतना रैली. कुर्मी चेतना रैली ने लालू की राजनीति को हिलाकर रख दिया था. कुर्मी चेतना रैली का आयोजन करने वाले सतीश कुमार ही थे. पहली बार सभी कुर्मी नेता अपने-अपने मतभेदों को भुलाकर कुर्मी चेतना रैली में शामिल हुए थे. उपेंद्र कुशवाहा आज भी उस रैली को याद करते हुए नीतीश कुमार से अपनी हिस्सेदारी की बात करते रहते हैं. सतीश कुमार का आज भी कुर्मी समाज पर पकड़ है.
3. डॉ. सुनील कुमार
नालंदा जिले के बिहारशरीफ सीट से बीजेपी के विधायक डॉ. सुनील कुमार नीतीश मंत्रिमंडल के सदस्य हैं. डॉक्टर से राजनेता बने सुनील कुमार चार बार के विधायक हैं. सुनील कुमार 2005 में पहली बार बिहारशरीफ सीट से जीतकर विधायक बने थे. हालांकि, इसके पहले दो बार वे निर्दलीय प्रत्याशी के रूप में विधानसभा चुनाव लड़ चुके थे, लेकिन नीतीश कुमार के साथ आने के बाद ही उन्हें सफलता हाथ लगी. नीतीश का साथ मिलने से पहले सुनील कुमार की छवि बिहारशरीफ में नालंदा जिले के कुशवाहा नेता के रूप में बनी. साल 2005 में लालू प्रसाद यादव के करीबी माने जाने वाले नामचीन राजद नेता सैयद नौशादुन्नबी उर्फ पप्पू खान को हराकर उन्होंने जीत दर्ज की थी. नीतीश कुमार से मतभेद के बाद वो बीजेपी में शामिल हो गए.
4. आरसीपी सिंह
कभी नीतीश कुमार के सबसे करीबी नेताओं में शुमार रहने वाले जेडीयू के पूर्व पूर्व राष्ट्रीय अध्यक्ष आरसीपी सिंह जेडीयू छोड़कर बीजेपी में शामिल हो गए थे, लेकिन कुछ समय बाद उन्होंने बीजेपी से भी अपना नाता तोड़ लिया. उन्होंने भारतीय जनता पार्टी छोड़ "आप सबकी आवाज" नामक एक नई पार्टी बनाई है. RCP सिंह बिहार विधानसभा की कुल 243 सीटों में 140 सीटों पर चुनाव लड़ने की अक्टूबर 2024 में मंशा जताई थी.
5. श्रवण कुमार
बिहार के नीतीश कुमार सरकार में ग्रामीण विकास कार्य मंत्री श्रवण कुमार न केवल सीएम के सजातीय कुर्मी हैं बल्कि उनके खासमखास भी हैं. सीएम के गृह जिले से आने वाले और वहां से चुनाव जीतकर आने वाले श्रवण कुमार सातवीं बार विधायक बनने की कतार में हैं. वो 1995 से लगातार नालंदा विधानसभा सीट से जीतते आ रहे हैं. 61 वर्षीय श्रवण कुमार समाज सेवा से जुड़े रहे हैं. जब लालू यादव से अलग होकर नीतीश कुमार और जॉर्ज फर्नांडिस ने साल 1994 में समता पार्टी का गठन किया था, तब से श्रवण कुमार नीतीश के खास सिपाही रहे हैं.
इसके अलावा, उपेंद्र कुशवाहा, बीरेंद्र सिंह सिंह सहित कई अन्य नेता हैं जो कुर्मी समाज के वोट बैंक पर अपनी पकड़ रखते हैं. बता दें कि बिहार में कुर्मी समाज की आबादी में कुछ हिस्सेदारी 2.87 प्रतिशत है, लेकिन इनकी पहचान जाति के नाम पर एकजुट, समृद्ध, शिक्षित और जमीन से जुड़े लोगों की रूप में हैं. यही वजह है कि बिहार की राजनीति में पिछले 20 साल से कुर्मी नेताओं का एकाधिकार है. इन नेताओं को एकाधिकार को भूमिहार नेता भी अभी तक तोड़ नहीं पाए.