एक हफ्ते में कैसे जुड़ेंगे लोगों के नाम? 1 सितंबर है आख़िरी तारीख, बिहार SIR को लेकर कन्फ्यूज हो रहे मतदाता-बीएलओ
बिहार में मतदाता सूची से लाखों नाम हटाए जाने के बाद हज़ारों लोग अपने मताधिकार बचाने की जद्दोजहद कर रहे हैं. सुप्रीम कोर्ट ने 1 सितंबर तक का समय दिया है, लेकिन सीमित समय और भ्रम ने हालात जटिल बना दिए हैं. बीएलओ को अभी तक आधिकारिक निर्देश नहीं मिले, वहीं राजनीतिक दलों की निष्क्रियता से मतदाता और परेशान हो रहे हैं.

सुप्रीम कोर्ट के हालिया आदेश ने इन लोगों के लिए एक उम्मीद का दरवाज़ा खोला है. अदालत ने उन मतदाताओं के लिए सीमित समय दिया है जिनके नाम एसआईआर के दौरान सूची से हटा दिए गए थे. अब लोग आधार कार्ड समेत 11 मान्य दस्तावेजों में से कोई एक लगाकर अपना दावा कर सकते हैं. यह प्रक्रिया ऑनलाइन भी उपलब्ध है. आरा, भोजपुर और बेतिया जैसे इलाकों में मतदाताओं की भीड़ और तत्परता से यह साफ़ दिखता है कि लोग अपने मताधिकार को गंवाने के डर से चिंतित हैं.
लेकिन राहत देने वाले इस फैसले ने जमीन पर कई उलझनें भी पैदा कर दी हैं. टाइम्स ऑफ़ इंडिया की रिपोर्ट के अनुसार, पश्चिमी चंपारण के पुजारी शर्मा का कहना है कि बूथ लेवल ऑफिसर (बीएलओ) ने उन्हें सुप्रीम कोर्ट का आदेश बताया तो सही, लेकिन लिखित निर्देश का इंतजार करने को कहा. यही स्थिति कई जगहों पर है. ग्रामीण इलाकों में रहने वाले मतदाताओं के लिए इंटरनेट तक पहुंच आसान नहीं है. वहीं, बीएलओ भी स्पष्ट आदेश न मिलने की वजह से असमंजस में हैं. पूर्वी चंपारण के एक बीएलओ का कहना है कि जब तक चुनाव आयोग आधिकारिक निर्देश जारी नहीं करता, वे आधार को मान्य नहीं मान सकते.
सात दिन में करना पड़ेगा साबित
बिहार के दिवाकर शर्मा को अपने पिछले दोनों चुनाव बेहद अच्छे से याद हैं. उनकी पत्नी दीप्ति ने हर बार बिना किसी परेशानी के मतदान किया था, लेकिन इस बार तस्वीर बदल चुकी है. मतदाता सूची से दीप्ति का नाम गायब हो गया है और अब पति-पत्नी के पास केवल सात दिन का समय है यह साबित करने के लिए कि वे अब भी वैध मतदाता हैं. यह स्थिति केवल उनकी नहीं, बल्कि राज्यभर में हजारों लोगों की है, जो 1 सितंबर की समयसीमा से पहले अपने नाम सूची में वापस जोड़ने की जद्दोजहद कर रहे हैं.
क्या है जमीनी हकीकत?
भोजपुर की बीएलओ सुचित्रा सिन्हा ने चेतावनी दी है कि समय सीमा बेहद कम है. उनके मुताबिक एक सप्ताह में सभी वंचित लोगों से आधार कार्ड लेकर प्रक्रिया पूरी करना असंभव सा लगता है. साथ ही, चुनाव अधिकारियों के लिखित आदेश न मिलने से बीएलओ को डर है कि उनके किसी भी फैसले को बाद में चुनौती दी जा सकती है. इस बीच राजनीतिक दलों की निष्क्रियता ने हालात और मुश्किल बना दिए हैं. नियमों के मुताबिक, पार्टियों को बूथ स्तर पर एजेंट नियुक्त कर लोगों के दावे दर्ज कराने में मदद करनी होती है, लेकिन जमीनी हकीकत बिल्कुल अलग है.
मदद नहीं कर रहे राजनीतिक दल
आरा के बीएलओ एम. सफीर अली का कहना है कि शायद ही कोई बूथ लेवल एजेंट (बीएलए) फॉर्म जमा करने की पहल करता है. कई एजेंट तो यह भी नहीं जानते कि उनकी नियुक्ति हो चुकी है. आरा के बाबू बाजार के एक अन्य बीएलओ ने आरोप लगाया कि राजनीतिक दल केवल शोर मचाते हैं लेकिन वास्तविक मदद के समय पीछे हट जाते हैं. हालांकि, राजनीतिक प्रतिनिधियों ने अपनी ओर से जिम्मेदारी निभाने का दावा किया है. आरा सांसद सुदामा प्रसाद के सहयोगी और भाकपा (माले) के नेता चंदन कुमार का कहना है कि उनकी पार्टी ने भोजपुर जिले में ही 23 अगस्त तक नौ दावा प्रपत्र जमा किए हैं. वहीं, जन सुराज के अशोक मानव ने दावा किया कि उनकी टीम सभी 14 ब्लॉकों में काम कर रही है, लेकिन फिर भी चुनाव अधिकारियों की सबसे बड़ी जिम्मेदारी यह सुनिश्चित करना है कि कोई भी पात्र मतदाता मतदान से वंचित न हो.
चौंकाने वाले हैं आंकड़े
नाम हटाए जाने के आंकड़े चौंकाने वाले हैं. सिर्फ पश्चिमी चंपारण जिले में ही 1,91,376 मतदाताओं के नाम सूची से काट दिए गए. यहां मतदाताओं की संख्या 27,60,990 से घटकर 25,69,614 रह गई. अधिकारियों के अनुसार, इसमें से करीब 70,000 लोग घर बदल चुके थे, जबकि लगभग 20,000 नाम डुप्लीकेट थे. लेकिन उन आम लोगों के लिए, जैसे आरा के दिवाकर शर्मा या वाल्मीकिनगर के व्यापारी धनंजय सोनी, जिनकी पत्नी रंजना भी मतदाता सूची से बाहर हो गईं, यह स्थिति अब भी बेहद उलझी हुई है. सुप्रीम कोर्ट का फैसला उनके लिए उम्मीद की किरण है, लेकिन जब समय केवल एक हफ्ते का हो, तो यह उम्मीद चिंता से ज्यादा राहत नहीं दे पा रही.