निशांत की पॉलिटिक्स में एंट्री! JDU ऑफिस के बाहर लगे पोस्टर; जानें किस सीट से लड़ेंगे चुनाव
नीतीश कुमार के बेटे निशांत कुमार के राजनीति में आने की अटकलें तेज़ हो गई हैं. जेडीयू नेता उनके समर्थन में खुलकर आ रहे हैं. सूत्रों के मुताबिक, निशांत हरनौत सीट से चुनाव लड़ सकते हैं. बीजेपी भी उनकी एंट्री चाहती है ताकि नीतीश सक्रिय राजनीति से दूर हो सकें.

पटना में जेडीयू ऑफिस के गेट पर लगे पोस्टर 'बिहार करे पुकार, आइए निशांत कुमार' ने सियासी हलचल तेज कर दी है. पिछले कुछ दिनों से नीतीश कुमार के बेटे निशांत कुमार के राजनीति में आने की अटकलें जोरों पर हैं. जेडीयू और सहयोगी दलों के नेता भी इस पर खुलकर बोलने लगे हैं. केंद्रीय मंत्री जीतन राम मांझी ने भी उनके समर्थन में पोस्ट किया है.
अब तक जेडीयू के कई सांसद, पूर्व सांसद, विधायक और पदाधिकारी निशांत के पक्ष में बयान दे चुके हैं. इसी बीच, निशांत भी लगातार मीडिया के सामने आकर बयान दे रहे हैं, जिससे अटकलें और तेज हो गई हैं. हालांकि, पार्टी के वरिष्ठ नेता आधिकारिक तौर पर इन खबरों को खारिज कर रहे हैं, लेकिन निशांत राजनीति और संगठन के कामकाज में दिलचस्पी दिखा रहे हैं. वह सरकार के प्रचार-प्रसार और पार्टी के कार्यक्रमों की जानकारी ले रहे हैं. कुछ नेताओं ने बताया कि अब वह मुख्यमंत्री से मिलने आने वाले नेताओं से भी मुलाकात कर रहे हैं, जबकि पहले वह सार्वजनिक जीवन से दूर रहते थे.
हरनौत सीट से लड़ेंगे चुनाव?
जानकारी मिल रही है कि निशांत को नालंदा की हरनौत सीट से चुनाव लड़ाया जा सकता है. 1995 में नीतीश कुमार इसी सीट से आखिरी बार विधायक चुने गए थे. उनकी राजनीतिक यात्रा की शुरुआत भी हरनौत से हुई थी, और यह सीट अब तक जेडीयू का मजबूत गढ़ मानी जाती है.
नीतीश के समय परिवारवाद को मिला बढ़ावा
नीतीश कुमार भले ही सार्वजनिक रूप से परिवारवादी राजनीति के खिलाफ रहे हों, लेकिन उनके कार्यकाल में भी परिवारवाद को बढ़ावा मिला है. अशोक चौधरी, रामनाथ ठाकुर, महेश्वर हजारी, जयंत राज और आनंद मोहन जैसे कई नेता अपने परिवार के राजनीतिक उत्तराधिकार को आगे बढ़ा चुके हैं. दिलचस्प बात यह है कि 2015 में तेजस्वी और तेजप्रताप यादव को राजनीति में प्रवेश दिलाने में भी नीतीश कुमार की बड़ी भूमिका रही थी.
बीजेपी का भी है समर्थन
सूत्रों के अनुसार, बीजेपी चाहती है कि नीतीश कुमार अपने बेटे निशांत को राजनीति में लाएं. इससे उन्हें खुद को सक्रिय राजनीति से अलग करने का मौका मिलेगा. हालांकि, निशांत अभी तक सामाजिक रूप से बहुत सक्रिय नहीं हैं. उन्होंने खुद को अध्यात्म में अधिक व्यस्त रखा है और बाकी नेता-पुत्रों की तरह बड़े राजनीतिक आयोजनों या तामझाम में शामिल नहीं होते. अब देखना होगा कि बिहार की राजनीति में यह नया सियासी समीकरण क्या मोड़ लेता है.