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NOTA का सोंटा: छोटी पार्टियां नहीं, ये है बिहार में सबसे बड़ा वोट कटवा, पिछले चुनाव में 28 सीटों पर कर दिया था खेला

बिहार चुनाव में हर बार गठबंधन, जातीय समीकरण और उम्मीदवारों की साख पर चर्चा होती है, लेकिन NOTA असली गेम चेंजर बन चुका है. यह अब महज ‘निराश मतदाता का विकल्प’ नहीं रहा बल्कि कई सीटों पर तय करने लगा है कि कौन जीतेगा और कौन हारेगा. साल 2020 विधानसभा चुनाव इसका सबसे बड़ा सबूत है, जब 28 सीटों पर NOTA के वोट हार-जीत के अंतर से ज्यादा थे.

NOTA का सोंटा: छोटी पार्टियां नहीं, ये है बिहार में सबसे बड़ा वोट कटवा, पिछले चुनाव में 28 सीटों पर कर दिया था खेला
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( Image Source:  Sora AI )

बिहार की राजनीति में अक्सर छोटी पार्टियों पर वोटकटवा होने का आरोप लगता है, लेकिन हकीकत ये है कि सबसे बड़ा वोटकटवा कोई पार्टी नहीं बल्कि NOTA (None of the Above) रहा है. हालांकि, दर्जनों सीटों पर एलजेपीआर, एआईएमआईएम, आरएलएसपी, वीआईपी व अन्य छोटी पार्टियों का भी असर दिखा. एलजेपीआर की वजह से तो कई सीटों पर अकेले जेडीयू के प्रत्याशियों को हार का मुंह देखना पड़ा था. बिहार विधानसभा चुनाव 2020 में 243 में से 28 सीटों पर NOTA को इतने वोट मिले थे, जो हार-जीत के अंतर से कहीं ज्यादा थे. साफ है कि बिहार विधानसभा चुनाव 2020 सिर्फ सियासी दलों और उम्मीदवारों के बीच नहीं बल्कि मतदाताओं और पूरे राजनीतिक तंत्र के बीच का भी चुनाव था.

ऐसा इसलिए कि मतदाताओं का एक बड़ा तबका खुलकर बोला- ‘इनमें से कोई नही.’ यानी नोटा का बटन दबाकर मतदाताओं ने साफ कर दिया था कि अगर उन्हें सही उम्मदवार नहीं दिखता है, तो वे वोट तो देंगे, लेकिन किसी को नहींनोटा (NOTA)… मतदाता का यह तबका न तो किसी से कुछ बोलता है, न ही शोर मचाता है. बस अपना वोट डालकर उसका राजनीतिक महत्व बताता है.

चौंकाने वाली बात यह है कि इसकी सबसे बड़ी चोट उन्ही सीटों पर लगी, जहां बिहार के दिग्गज उम्मीदवार चुनाव मैदान में थे. इन सीटों में कल्याणपुर, परिहार, त्रिवेणीगंज, रानीगंज, प्राणपुर, महिषी, दरभंगा ग्रामीण, सकरा, कुरहनी, भोरे, बरहरिया, अमरपुर, मुंगेर, बरबीघा, हिलसा, डेहरी और चकाई. इन सीटों पर नोटा ने सीधे-सीधे चुनावी गणित बिगाड़ दिया.

हिलसा में हार-जीत का अंतर मात्र 12 वोट का था, जबकि नोटा को 1,022 वोट मिले थे. इसी तरह बारबीघा में हार जीत का अंतर 113 था जबकि नोटा को 3,639 वोट मिले थे. चकाई में जीत हार का अंतर 581 और नोटा को मिले थे 6,520 वोट, परबत्ता में हार जीत का अंतर 951 और नोटा को मिले थे 1,916 वोट, मुंगेर में हार जीत का अंतर 1,244 और NOTA को मिले थे 3,063 वोट, सकरा में हार जीत का अंतर 1,537 और नोटा को मिले 4,389 वोट, महिषी में हार जीत का अंतर 1,630 वोट और नोटा को मिले थे 3,005 वोट.

2020 में नोटा का दिखा था असर

बिहार की 243 विधानसभा सीटों में से रामनगर, लौरिया, राजापाकर, राघोपुर, मनहार, कल्याणपुर (31), सरायरंजन, हरसिद्धि, कल्याणपुर (16), पिपरा, मोतिहारी, ढाका, बथनहा, रुन्नी सैदपुर, त्रिवेणीगंज, बहादुरगंज, कोचाधामन, अमौर, मनिहारी, सिंघेशर, दरभंगा ग्रामीण, केवटी, सकरा, बैकंठपुर, मोहनियां, घोसी, इमामगंज, गोविंदपुर, कोचाइकोट, हथुआ, दरौधा, गरखा, परसा, रोसेरा, मटिहानी, बिहपुर, कहलगांव,अमरपुर, धुरैया, कटोरिया, मुंगेर, मोकामा, बांकीपुर, कुम्हरार, दानापुर, संदेश, बरहरा, अगियांव और रामगढ़.

15 विधानसभा क्षेत्र में तीसरे स्थान पर NOTA

बिहार विधानसभा चुनाव 2015 में नोटा पर 9,47,279 वोट पड़ थे. यह कुल वोट का 2.48 फीसदी है. नोटा ने कई जगहों पर स्वतंत्र प्रत्याशियों को अच्छा खासा सबक सिखाया था. उदाहरण के लिए 15 विधानसभा क्षेत्रों में नोटा तीसरे स्थान पर रहा. इनमें बेतिया, मधुबन, सीतामढ़ी, बिस्फी, राजनगर, रानीगंज, बनमंखी, कोरहा, जाले, भोरे, दरौली, बख्तियारपुर, पटना साहिब, गया टाउन और हिसुआ शामिल हैं.

NOTA को मिले थे 7 लाख से ज्यादा वोट

बिहार विधानसभा चुनाव के आंकड़ों के मुताबिक पिछले चुनाव का पूरा आंकड़ा देखे, तो नोटा को सभी 243 सीटों पर 7 लाख से ज्यादा वोट मिले थे. कई जगहों पर यह आंकड़ा इतना बड़ा था कि उम्मीदवारों के चेहरो का रंग उड़ गया. सबसे बड़ा झटका भोरे और मटिहानी मे लगा जहां नोटा को क्रमशः 8,010 और 6,733 वोट मिले. ये आंकड़े बताते हैं कि मतदाता सियासी दलों के प्रत्याशियों से कितने नाराज थे.

बिहार में अब नोटा राजनीतिक दलों के लिए सिर दर्द बन चुका है. नोटा के प्रति मतदाताओं के रुझान को देखते हुए इस बार हर सियासी दलों ने नाराज मतदाता को अपने पाले में लाने पर अभी से प्रयास कर रहे हैं. सियासी दलों के नेता ऐसा इसलिए कर रहे हैं कि इस बार भी कहीं 2025 की तरह नोटा कई प्रत्याशियों को खेल बिगाड़ न दे.

NOTA बना सबसे बड़ा 'वोटकटवा'

  • बिहार विधानसभा चुनाव 2020 में 28 सीटों पर हार-जीत का 12 वोट से 5,000 वोटों के बीच रहा, जबकि इन सीटों पर NOTA को 2,000 से 10,000 तक वोट मिले. यानी अगर ये वोट किसी भी एक प्रत्याशी को मिलते, तो नतीजा बदल सकता था.
  • जहां छोटी पार्टियां 500-1,000 वोट तक ही बटोर पाती हैं, वहीं NOTA हजारों वोट लेकर ‘निर्णायक’ बना. यही वजह है कि इसे अब बिहार की राजनीति का ‘सबसे बड़ा वोटकटवा’ कहा जाने लगा है.
  • NOTA के चलते सबसे ज्यादा नुकसान उन उम्मीदवारों को हुआ जो बेहद करीबी मुकाबले में थे. कई जगह NDA और महागठबंधन दोनों को ही भारी नुकसान उठाना पड़ा. सत्ताधारी गठबंधन की कई सीटें हाथ से फिसल गईं तो कई पर विपक्ष भी जीतते-जीतते हार गया.
  • बिहार के चुनावों में NOTA का बढ़ता ग्राफ साफ दिखाता है कि जनता कई बार ‘सबको नकारने’ का मन बना लेती है. इससे ये भी संकेत मिलता है कि मतदाता पारंपरिक जातीय या पार्टी आधारित राजनीति से हटकर असंतोष दर्ज करा रहा है.
  • अगर 2020 की तरह ही 2025 के विधानसभा चुनाव में भी NOTA को बड़ी संख्या में वोट मिले, तो यह कई उम्मीदवारों के लिए बड़ा सिरदर्द साबित होगा.
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