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नेपाल, बांग्लादेश और म्यांमार से आए नागरिकों के बिहार में कैसे बन गए वोटर आईडी? SIR के दौरान हुआ चौंकाने वाला खुलासा

बिहार में वोटर लिस्ट के विशेष सत्यापन अभियान (SIR) के दौरान चौंकाने वाला खुलासा हुआ है. चुनाव आयोग को बड़ी संख्या में नेपाल, बांग्लादेश और म्यांमार के नागरिकों के नाम पर बने वोटर आईडी, आधार और राशन कार्ड मिले हैं. आयोग ने जांच तेज कर दी है और ऐसे सभी फर्जी नामों को हटाने की प्रक्रिया शुरू कर दी गई है.

नेपाल, बांग्लादेश और म्यांमार से आए नागरिकों के बिहार में कैसे बन गए वोटर आईडी? SIR के दौरान हुआ चौंकाने वाला खुलासा
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नवनीत कुमार
Edited By: नवनीत कुमार

Published on: 13 July 2025 12:48 PM

बिहार में मतदाता सूची के विशेष गहन पुनरीक्षण (SIR) के दौरान चुनाव आयोग ने ऐसा खुलासा किया है जिसने लोकतंत्र की नींव को झकझोर दिया है. आयोग के मुताबिक, घर-घर सर्वे के दौरान बड़ी संख्या में नेपाल, बांग्लादेश और म्यांमार के नागरिकों के पास मतदाता पहचान पत्र, आधार कार्ड और अन्य दस्तावेज पाए गए हैं. ये दस्तावेज उन्हें भारत में रहने और वोट डालने की अवैध शक्ति दे सकते थे.

इस खुलासे के बाद चुनाव आयोग हरकत में आया है. उसने साफ किया है कि 1 अगस्त से 30 अगस्त तक इन मामलों की गहराई से जांच होगी और यदि कोई विदेशी नागरिक गलत तरीके से दस्तावेज बनवाकर वोटर बना है तो उसका नाम तुरंत सूची से हटाया जाएगा. आयोग 30 सितंबर को अंतिम मतदाता सूची प्रकाशित करेगा, जिसमें किसी भी गैर-नागरिक को जगह नहीं दी जाएगी.

दस्तावेज कैसे बनवाए गए?

आश्चर्यजनक यह है कि जिन लोगों की नागरिकता भारत की नहीं है, उनके पास न सिर्फ वोटर आईडी है, बल्कि आधार कार्ड, राशन कार्ड, डोमिसाइल सर्टिफिकेट और अन्य सरकारी दस्तावेज भी पाए गए हैं. सूत्रों का कहना है कि स्थानीय स्तर पर कुछ एजेंसियों और विभागों की मिलीभगत से यह गड़बड़ी संभव हुई है. यह प्रशासनिक विफलता का भी संकेत है.

सीमावर्ती जिलों में सबसे ज्यादा गड़बड़ी

चुनाव आयोग ने स्पष्ट किया है कि सीमावर्ती जिलों जैसे पश्चिम चंपारण, किशनगंज और अररिया में ये मामले ज्यादा सामने आए हैं. यहां विदेशी नागरिकों की आवाजाही और ठहराव की संभावनाएं अधिक हैं, जिसे लेकर अब बायोमेट्रिक वेरिफिकेशन जैसी तकनीकी निगरानी को अनिवार्य बनाया जा सकता है. यह कदम भविष्य की गड़बड़ियों को रोकने के लिए बेहद अहम माना जा रहा है.

सुप्रीम कोर्ट की सख्त निगरानी

यह मामला सुप्रीम कोर्ट भी पहुंच चुका है. कोर्ट ने चुनाव आयोग से जवाब मांगा है और निर्देश दिया है कि किसी भारतीय नागरिक को उचित मौका दिए बिना मतदाता सूची से नहीं हटाया जाए. हालांकि कोर्ट ने यह भी माना कि वोटर लिस्ट की शुद्धता सुनिश्चित करना चुनाव आयोग की जिम्मेदारी है और उसे रोका नहीं जा सकता.

विपक्ष ने उठाए गंभीर सवाल

RJD सांसद मनोज झा ने इस पूरे घटनाक्रम पर सियासी सवाल उठाए हैं. उन्होंने कहा कि इस तरह की “प्रायोजित कहानियां” समाज में डर और नफरत फैलाने के लिए इस्तेमाल की जा रही हैं. उनका कहना है कि अगर विदेशी नागरिक वाकई अवैध रूप से रह रहे हैं तो कानूनी कार्रवाई होनी चाहिए, लेकिन इसे सियासी हथियार नहीं बनाना चाहिए.

विदेशी कैसे बन गए वोटर?

सबसे चौंकाने वाला सवाल यही है कि नेपाल, बांग्लादेश और म्यांमार से आए लोग बिहार में कैसे वोटर बन गए? स्थानीय प्रशासन की अनदेखी, पहचान दस्तावेजों के लिए कमजोर वेरिफिकेशन प्रक्रिया और ‘सुविधाजनक भ्रष्टाचार’ इस सवाल के संभावित जवाब हो सकते हैं. ऐसे मामलों में गहन और निष्पक्ष जांच आवश्यक है ताकि दोबारा ऐसी चूक न हो.

सत्यापन के लिए ये दस्तावेज जरूरी

अब यदि किसी व्यक्ति को यह साबित करना है कि वह भारत का नागरिक है और उसे वोट देने का अधिकार है, तो उसे कुछ प्रमाण प्रस्तुत करने होंगे. इनमें एनआरसी, पासपोर्ट, सरकारी कर्मचारी पहचान पत्र, शैक्षणिक प्रमाण पत्र, बैंक दस्तावेज, भूमि आवंटन प्रमाणपत्र, वन अधिकार प्रमाण पत्र जैसे दस्तावेज शामिल हैं. चुनाव आयोग ने इन्हीं के आधार पर सत्यापन तेज कर दिया है.

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