MY समीकरण को कैसे काट पाएगा नीतीश कुमार का लव-कुश समीकरण? RJD लगा रहा कोइरी समाज में सेंध
बिहार विधानसभा चुनाव 2025 के ऐलान के बाद लव-कुश समीकरण फिर चर्चा में है. नीतीश कुमार का पारंपरिक वोट बैंक कुर्मी और कोइरी जाति पर आधारित रहा है, जिसे अब RJD चुनौती दे रही है. पूर्व सांसद संतोष कुशवाहा के RJD में शामिल होने के बाद यह रणनीति और स्पष्ट हो गई है. इस चुनावी सत्र में लव-कुश समीकरण 50–60 महत्वपूर्ण सीटों पर असर डाल सकता है, जिसमें पटना, आरा, बक्सर, समस्तीपुर और मुंगेर प्रमुख हैं.

बिहार की सियासत में एक बार फिर जातीय समीकरणों की चर्चा तेज हो गई है. चुनाव की तारीखों के ऐलान के साथ ही ‘लव-कुश’ यानी कुर्मी-कोइरी गठजोड़ फिर सुर्खियों में है. यह वही वोट बैंक है जिसने दशकों तक नीतीश कुमार को सत्ता तक पहुंचाने में अहम भूमिका निभाई. लेकिन इस बार हालात कुछ अलग हैं क्योंकि नीतीश के पुराने साथी अब विरोधी खेमे में जा रहे हैं.
JDU के पूर्व सांसद संतोष कुशवाहा के RJD में शामिल होने के बाद से राजनीतिक समीकरणों में हलचल मच गई है. कोइरी समाज से आने वाले संतोष ने साफ कहा कि “अब JDU लव-कुश वाली पार्टी नहीं रही.” उनके इस बयान ने संकेत दे दिया कि नीतीश का पारंपरिक वोट बैंक धीरे-धीरे खिसक सकता है.
RJD की नई रणनीति- कोइरी समाज में सेंध
RJD इस बार सिर्फ MY (मुस्लिम-यादव) समीकरण पर नहीं टिकना चाहती. पार्टी ने स्पष्ट रणनीति बनाई है कि अति पिछड़े और कोइरी समुदाय को अपने पाले में लाया जाए. इसी मकसद से संतोष कुशवाहा जैसे नेताओं को जोड़ा जा रहा है. RJD को भरोसा है कि अगर कोइरी समाज का 20–25% वोट भी खिसका, तो नीतीश की मजबूती डगमगा सकती है.
नीतीश का मजबूत गढ़ अब खतरे में?
लंबे समय तक कुर्मी और कोइरी समुदाय नीतीश कुमार का सियासी कवच रहे हैं. कुर्मी खुद उनकी जाति है, जबकि कोइरी नेताओं को उन्होंने राजनीति में ऊंचा स्थान दिया. यही वजह रही कि 2005 से लेकर 2020 तक इस गठजोड़ ने उन्हें सत्ता तक पहुंचाया. लेकिन अब हालात बदल रहे हैं. RJD और जन सुराज जैसे नए खिलाड़ी उसी गढ़ में सेंध लगाने की कोशिश कर रहे हैं.
लव-कुश समीकरण का असर 60 सीटों पर
बिहार की राजनीति में लव-कुश समीकरण का असर सीधे 50 से 60 सीटों पर पड़ता है. पटना, आरा, बक्सर, सारण, समस्तीपुर, मुंगेर और खगड़िया जैसे जिले इस समीकरण का केंद्र हैं. पिछली बार इन सीटों पर NDA को भारी बढ़त मिली थी. लेकिन अगर इस बार कोइरी समाज का रुझान बदलता है, तो कई सीटों का गणित उलट सकता है.
महागठबंधन की जातीय जोड़-तोड़ राजनीति
महागठबंधन ने हाल के महीनों में जातीय आधार पर रणनीति तैयार की है. RJD ने लोकसभा चुनाव में 8 कुशवाहा उम्मीदवार उतारकर संकेत दिया था कि वह ‘लव-कुश’ समीकरण पर नजर गड़ाए हुए है. पार्टी अब इस मिशन को विधानसभा चुनाव में भी आगे बढ़ा रही है. तेजस्वी यादव के लिए यह सिर्फ वोट नहीं, बल्कि नीतीश की नींव को हिलाने का प्रयास है.
प्रशांत किशोर और तीसरे मोर्चे की चुनौती
नीतीश और तेजस्वी के बीच लड़ाई में अब एक तीसरा खिलाड़ी भी है. प्रशांत किशोर. जन सुराज अभियान के जरिये वे सीधे अति पिछड़े वर्ग और युवाओं को टारगेट कर रहे हैं. अगर PK इस वर्ग में असर दिखा पाते हैं, तो नीतीश के समीकरण और कमजोर हो सकते हैं.
राघोपुर में नई सियासी जंग की तैयारी
तेजस्वी यादव के राघोपुर सीट से चुनाव लड़ने पर अब सियासी बहस और तेज हो गई है. प्रशांत किशोर ने संकेत दिए हैं कि वे यहीं से मुकाबले में उतर सकते हैं. अगर ऐसा होता है, तो राघोपुर केवल लालू परिवार बनाम प्रशांत किशोर की नहीं, बल्कि MY बनाम नए सामाजिक समीकरणों की प्रयोगशाला बन जाएगा.
NDA में भी सीटों को लेकर तनाव
NDA के भीतर सीट बंटवारे को लेकर हालात गर्म हैं. उपेंद्र कुशवाहा और जीतनराम मांझी जैसी पार्टियां ज्यादा सीटों की मांग पर अड़ी हैं. ये दोनों नेता भी OBC और महादलित समाज से आते हैं. अगर ये असंतुष्ट हुए, तो इसका सीधा असर नीतीश के जातीय समीकरणों पर पड़ेगा.
बिहार की जंग अब सिर्फ MY बनाम NDA नहीं
बिहार का चुनाव इस बार सिर्फ MY बनाम NDA नहीं रहेगा. इसमें लव-कुश, अति पिछड़ा, और दलित समीकरण निर्णायक भूमिका निभाएंगे. RJD जहां नीतीश की जड़ों को कमजोर करने की रणनीति पर काम कर रही है, वहीं नीतीश अपनी पुरानी सामाजिक पूंजी बचाने में जुटे हैं. सवाल अब यही है. क्या नीतीश ‘लव-कुश’ के दम पर फिर सत्ता में लौट पाएंगे या RJD की सेंधबाज़ी इतिहास बदल देगी?