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Bihar Chunav 2025: आरएलजेपी, भीम आर्मी और बसपा के साथ मिलकर बिहार चुनाव में क्‍या गुल खिलाएंगे Owaisi?

Bihar Chinav 2025: एमआईएमआईएम (AIMIM) प्रमुख असदुद्दीन ओवैसी ने बिहार में आरएलजेपी, बसपा और भीम आर्मी के साथ मिलकर सियासी हलचल मचा दी है. 2020 में भीम आर्मी, बसपा और आरएलजेपी को खास सफलता नहीं मिली थी, लेकिन इस बार दलित-मुस्लिम और पासवान समीकरण पर नई रणनीति बन रही है. क्या ओवैसी का ये गठजोड़ नीतीश-तेजस्वी के समीकरण का कुछ बिगाड़ पाएगा?

Bihar Chunav 2025: आरएलजेपी, भीम आर्मी और बसपा के साथ मिलकर बिहार चुनाव में क्‍या गुल खिलाएंगे Owaisi?
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Bihar Elections 2025: बिहार की सियासत में एक बार फिर नया समीकरण बनता दिख रहा है. एआईएमआईएम (AIMIM) प्रमुख असदुद्दीन ओवैसी अब आरएलजेपी (पशुपति पारस), बहुजन समाज पार्टी (BSP) और भीम आर्मी के साथ मिलकर मैदान में उतरने की तैयारी में हैं. 2020 में भले ही इन दलों को सीमित सफलता मिली हो, लेकिन इस बार जातीय और धार्मिक समीकरणों को जोड़कर नया गठजोड़ ‘थर्ड अल्टरनेटिव’ बनने की कोशिश में है. आइए, जानते हैं ​क्या है पूरा मामला?

1. 2020 में एक सीट जीतने में कामयाब हुई BSP

बिहार विधानसभा चुनाव 2020 में बसपा (BSP) ने 91 सीटों पर उम्मीदवार उतारे, लेकिन केवल 1 सीट जीत पाई थी. पार्टी का वोट शेयर लगभग 0.38% रहा. यह सफलता बसपा प्रत्याशी जमा खान को चैनपुर से मिली थी. हालांकि, जमा खान बाद में जेडीयू में शामिल हो गए थे और नीतीश कुमार ने उन्हें मंत्री बना दिया था.

2. पशुपति पारस की RLJP

आरएलजेपी (Rashtriya Lok Janshakti Party), जो लोजपा (रामविलास पासवान) से टूटकर बनी थी. 2020 के विधानसभा चुनाव में एलजेपी के बैनर तले लड़ी थी. एलजेपी को कुल 1 सीट मिली थी, लेकिन लगभग 5.66% वोट शेयर हासिल हुआ. 2021 में पशुपति पारस ने एलजेपी से अलग होकर आरएलजेपी का गठन किया था. इस पार्टी का जनाधार मुख्य रूप से पासवान (दलित) वर्ग में है. इससे पहले पशुपति पारस महागठबंधन में रहकर चुनाव लड़ना चाहते थे, लेकिन वहां से टिकट नहीं मिलता देख उन्होंने ओवैसी के साथ गठबंधन में चुनाव लड़ने का फैसला लिया है.

3. भीम आर्मी का बिहार में प्रभाव

भीम आर्मी प्रमुख चंद्रशेखर आजाद की पकड़ सीमित लेकिन प्रतीकात्मक मानी जाती है. संगठन की मजबूती दलित युवाओं और अकादमिक वर्गों में दिखती है. बिहार में भीम आर्मी की सक्रियता 20 से अधिक जिलों में बताई जाती है, खासकर आरा, बक्सर, सीवान, समस्तीपुर, दरभंगा और पटना में. हालांकि, अब तक उन्होंने कोई विधानसभा सीट नहीं जीती है.

4. ओवैसी का सियासी समीकरण

2020 में AIMIM ने 5 सीटें जीती थीं, खासतौर पर सीमांचल इलाके में. इस बार ओवैसी दलित और मुस्लिम वोट बैंक को जोड़ने की रणनीति पर काम कर रहे हैं. ओवैसी यादव वोट भी हासिल करने की कोशिश में हैं. आरएलजेपी का पासवान वोट, बसपा का दलित समर्थन और भीम आर्मी का युवा जोश को मिलाकर पांच पहले से ज्यादा सीट जीतने की जद्दोजहद में जुटे हैं.

5. गठजोड़ का संभावित असर

अगर यह गठबंधन एकजुट होकर 50–60 सीटों पर लड़े तो इसका असर सीमांचल, मगध और पटना प्रांत की कई सीटों पर पड़ सकता है. यह गठबंधन RJD और JDU, दोनों के पारंपरिक वोट बैंक को प्रभावित कर सकता है. खासकर दलित-मुस्लिम और अति पिछड़ा वर्ग की सीटों पर.

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