चुनावी चोट के बाद बिहार गठबंधन में दरार: कांग्रेस का RJD पर हमला, राजेश राम बोले - 'कांग्रेस का रिश्ता सिर्फ चुनावी'
बिहार में हार के बाद कांग्रेस और RJD के बीच तकरार बढ़ गई है. कांग्रेस ने हार पर मंथन के बाद RJD पर ‘अहमियत कम करने’ का आरोप लगाया, जिससे महागठबंधन में खटास और बढ़ गई है. कांग्रेस नेताओं का कहना है कि पार्टी को आरजेडी से सहयोग नहीं मिला. जानें, क्या है पूरा राजनीतिक विवाद?
बिहार चुनाव में करारी हार के बाद महागठबंधन के भीतर खींचतान खुलकर सामने आ गई है. कांग्रेस की मंथन बैठक में नेताओं ने RJD पर कम अहमियत देने का आरोप लगाया, जिससे दोनों दलों के रिश्तों में तनाव और बढ़ गया है. कांग्रेस की नाराजगी जगजाहिर है. ठीक चुनाव बाद जब हार के कारणों पर चर्चा होनी थी, तब पार्टी का बयानबाजी का मोड गठबंधन राजनीति को मुश्किल में डालने वाला है. RJD फिलहाल चुप्पी साधे हुए है, लेकिन भीतरखाने पार्टी नेताओं की असहजता साफ है.
मंगनी लाल के बयान ने गहरा किया घाव
इंडियन एक्सप्रेस के मुताबिक क्बिहार विधानसभा चुनाव में करानी हार के बाद से आरजेडी-कांग्रेस के बीच संबंध दूरी कम होने का नाम नहीं ले रहा है. बशर्ते, कम होने के बजाए और गहराते ही जा रहे हैं. इसी का प्रमाण है कि RJD की बिहार यूनिट के प्रेसिडेंट मंगनी लाल मंडल के कांग्रेस को लालू प्रसाद की पार्टी से रिश्ता तोड़ने की चुनौती देने के कुछ दिनों बाद, महागठबंधन या INDIA ब्लॉक के दो मुख्य हिस्सों के बीच तनाव बढ़ता जा रहा है.
पार्टी को मजबूत करना हमारी प्राथमिकता
RJD के साथ अपने रिश्तों को लेकर राज्य कांग्रेस में बढ़ती बेचैनी सोमवार को पटना में हुई मीटिंग में भी देखी गई, जो चुनाव नतीजों का रिव्यू करने के लिए हुई थी. मीटिंग में 38 डिस्ट्रिक्ट कांग्रेस कमेटी (DCC) प्रेसिडेंट में से 27 ने ऑल इंडिया कांग्रेस कमेटी (AICC) के बिहार इंचार्ज कृष्णा अल्लावरु और स्टेट पार्टी चीफ राजेश राम की मौजूदगी में पार्टी की चुनाव में हार के अलग-अलग कारण बताए. कांग्रेस 61 सीटों पर चुनाव लड़कर सिर्फ 6 सीटें जीत सकी. जबकि RJD को 143 सीटों पर चुनाव लड़कर 25 सीटें मिलीं.
हाल के राज्य विधानसभा चुनावों में मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की लीडरशिप वाली मौजूदा NDA ने 243 में से 202 सीटें जीतकर बड़ी जीत हासिल की, जबकि महागठबंधन को 35 सीटें मिलीं. चुनाव के नतीजों के बाद दोनों सहयोगी पार्टियों के बीच आरोप-प्रत्यारोप का दौर शुरू हो गया. मीटिंग के बाद कांग्रेस के राजेश राम ने कहा कि RJD के साथ कांग्रेस का रिश्ता सिर्फ चुनावी था. उनकी पार्टी की अभी की प्राथमिकता राज्य में अपने संगठन को मजबूत करना है. राम चुनाव में औरंगाबाद में अपनी कुटुम्बा सीट हार गए थे.
कांग्रेस जरूरी नहीं तो साथ क्यों?
पिछले हफ़्ते, पिछली असेंबली में कांग्रेस लेजिस्लेचर पार्टी (CLP) के लीडर, शकील अहमद खान ने कहा था कि ज्यादातर कांग्रेस कैंडिडेट मानते थे कि अगर पार्टी ने RJD के साथ गठबंधन नहीं किया होता तो पार्टी बेहतर करती. शकील मुस्लिम-बहुल सीमांचल इलाके में कटिहार में अपनी कदवा सीट भी नहीं बचा पाए. खराब चुनावी प्रदर्शन के लिए कांग्रेस पर निशाना साधने की RJD की कोशिश के बीच, राज्य कांग्रेस के प्रवक्ता असित नाथ तिवारी ने पहले कहा था, “अगर कांग्रेस जरूरी नहीं है, तो RJD चुनावों के लिए हमारे साथ क्यों है?”
कांग्रेस कैंप की इन बातों के बाद, मंगनी लाल मंडल ने कहा, “अगर कांग्रेस अकेले चलना चाहती है, तो उसे हर हाल में ऐसा करना चाहिए। उसे अपनी औकात पता चल जाएगी।” उन्होंने यह भी दावा किया कि बिहार में कांग्रेस एक “खत्म हो चुकी ताकत” है और जो भी वोट उसे मिले, उसका क्रेडिट RJD को मिलना चाहिए। उन्होंने यह भी कहा कि RJD चुनाव दर चुनाव सीट-शेयरिंग में कांग्रेस की “बेबुनियाद मांगों” को झेल रही है.
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जमीन पर काम करने की जरूरत
असित नाथ तिवारी ने राम की बातों को दोहराते हुए कहा, “हमें वापस शुरुआत करनी होगी और कमियों को दूर करने की दिशा में काम करना होगा. हमें बूथ लेवल पर अपनी मौजूदगी की जरूरत है. हमें सभी बूथों के लिए BLAs की जरूरत है.” महागठबंधन में चल रही उठापटक के बारे में पूछे जाने पर, तिवारी ने कहा: “अगर कोई कड़वाहट है तो गठबंधन के सीनियर नेता उसे दूर कर देंगे.”
हमें शांत रहने की जरूरत - सुबोध मेहता
RJD के नेशनल स्पोक्सपर्सन सुबोध कुमार मेहता ने कहा: “INDIA ब्लॉक बड़े मकसद के साथ बना था. ऐसी हार के बाद चिंता की आवाजें सुनना आम बात है. हम इस बात पर नहीं जाएंगे कि कौन क्या कह रहा है? हमें शांत रहने की जरूरत है.” जब कांग्रेस के इस आरोप के बारे में पूछा गया कि RJD कुछ चुनाव क्षेत्रों में गड़बड़ी कर रही है, तो मेहता ने सवाल को टालते हुए कहा, “कुछ लोकल लेवल के मुद्दे हो सकते हैं.”
बिहार में क्यों हारी कांग्रेस - चार प्रमुख वजह
बिहार में कांग्रेस के हार को लेकर सोमवार को चार ग्रुप में 27 DCC चीफ ने 2020 के चुनावों में पार्टी के 19 से घटकर छह सीटों पर आ जाने के कारणों पर मंथन किया. सूत्रों के मुताबिक ज्यादातर DCC प्रेसिडेंट ने इन कारणों को चार पॉइंट तक सीमित रखा.
- अधिकांश पोलिंग बूथ पर कांग्रेस संगठन की मौजूदगी नहीं होना और कई इलाकों में अपने बूथ लेवल एजेंट (BLAs) भी नियुक्त नहीं करना.
- राष्ट्रीस जनता दल से से सहयोग की कमी. चुनाव के दौरान आरजेडी से सहयोग नहीं मिलना कांग्रेस के लिए नुकसानदेह साबित हुआ.
- विकासशील इंसान पार्टी (VIP) के प्रमुख मुकेश सहनी को महागठबंधन के डिप्टी CM चेहरे के तौर पर पेश किए जाने के बावजूद EBC सहनी (मल्लाह) वोट उन्हें ट्रांसफर नहीं करा पाए.
- नीतीश कुमार सरकार की चुनाव से पहले की भलाई की योजनाएं, जिसमें मुख्यमंत्री महिला रोजगार योजना (MMRY) के तहत 1.41 करोड़ होने वाली महिला एंटरप्रेन्योर्स को 10,000 रुपये देना शामिल है.
पार्टी को बूथ स्तर तक मजबूत करने की जरूरत
कांग्रेस के एक नेता ने बताया: “यह एक रिव्यू भी था और आगे का रास्ता निकालने के लिए मीटिंग भी. संगठन को मजबूत करने के लिए पंचायत और ब्लॉक कमेटियां बनाने की मांग की गई. नेताओं से वोट चोरी के खिलाफ पार्टी के नेशनल लेवल के विरोध और 14 दिसंबर को दिल्ली में चुनाव आयोग के स्पेशल इंटेंसिव रिवीजन (SIR) एक्सरसाइज के लिए सपोर्ट जुटाने को भी कहा गया.
हमारा मकसद संगठन को मजबूत करना
राजेश राम ने कहा: “RJD के साथ हमारा गठबंधन चुनावी था. चूंकि जल्द ही कोई चुनाव नहीं होने वाला है, इसलिए गठबंधन का सवाल बेमतलब है. हमारा मकसद संगठन को मजबूत करना है.”
हाल के राज्य विधानसभा चुनावों में मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की लीडरशिप वाली मौजूदा NDA ने 243 में से 202 सीटें जीतकर बड़ी जीत हासिल की, जबकि महागठबंधन को 35 सीटें मिलीं. चुनाव के नतीजों के बाद दोनों सहयोगी पार्टियों के बीच आरोप-प्रत्यारोप का दौर शुरू हो गया.





