बिहार चुनाव से पहले नीतीश कुमार चुपचाप कर रहे बड़ा 'खेला', अब कौन से मास्टरस्ट्रोक की है तैयारी?
बिहार में मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने पेंशन को ₹1100 किया, 125 यूनिट तक बिजली बिल माफ किया और युवाओं के लिए नौकरी-रोजगार के बड़े अवसर खोले हैं. ये तीन योजनाएं आगामी विधानसभा चुनाव से पहले बड़ी सियासी चाल मानी जा रही हैं. विपक्ष इसे चुनावी स्टंट बता रहा है, लेकिन ज़मीन पर इसका असर साफ दिखने लगा है.

मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने आगामी बिहार विधानसभा चुनाव से पहले तीन बड़ी योजनाएं लागू कर, एक व्यापक और बहुपरतीय रणनीति अपनाई है. पेंशन में भारी बढ़ोतरी, 125 यूनिट तक बिजली बिल माफ़ी और नौकरी-रोजगार का वादा, इन तीनों फैसलों के ज़रिए वे हर तबके को साधने की कोशिश कर रहे हैं. यह महज़ लोकलुभावन घोषणा नहीं, बल्कि एक राजनीतिक चक्रव्यूह जैसा है जिसमें जाति, धर्म, उम्र और वर्ग के सभी समीकरण कवर किए गए हैं.
सामाजिक सुरक्षा पेंशन योजना के तहत अब लाभार्थियों को 400 की बजाय 1100 रुपये प्रति माह मिलेंगे. इससे न केवल 1 करोड़ से अधिक बुजुर्गों, विधवा महिलाओं और दिव्यांगजनों को सीधी आर्थिक मदद मिलेगी, बल्कि उनके आश्रित परिजनों की भी स्थिति बेहतर होगी. यह सीधे तौर पर एक ऐसे वोटर वर्ग को साधता है जो हर चुनाव में निर्णायक भूमिका निभाता है और जिनकी संख्या लगातार बढ़ रही है.
आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग को सीधी राहत
125 यूनिट तक मुफ्त बिजली देने का फैसला एक साहसी कदम है जो 1.67 करोड़ से अधिक घरेलू उपभोक्ताओं को फायदा पहुंचाएगा. यह उन गरीब और निम्न-मध्यमवर्गीय परिवारों के लिए बड़ा सहारा है जो हर महीने बिजली बिल चुकाने में मुश्किल झेलते थे. अब वे बचा हुआ पैसा शिक्षा, स्वास्थ्य और अन्य बुनियादी ज़रूरतों पर खर्च कर सकते हैं. यह कदम सीधे तौर पर मध्यमवर्ग, किसान और शहरी-ग्रामीण मतदाताओं को जोड़ने वाला है.
राजनीति का भविष्य बनाने की कोशिश
नीतीश कुमार का सबसे ज्यादा फोकस युवाओं पर है. अब तक 10 लाख से ज्यादा युवाओं को सरकारी नौकरी और करीब 39 लाख को स्वरोजगार दिया जा चुका है. अब उन्होंने 2025 से 2030 तक एक करोड़ युवाओं को रोजगार देने का वादा किया है. युवा आबादी, जो बिहार की सबसे बड़ी जनसंख्या है, को साधना किसी भी दल के लिए निर्णायक साबित हो सकता है.
योजनाएं सबके लिए
इन तीनों योजनाओं में खास बात यह है कि इनमें कोई जातिगत, धार्मिक या क्षेत्रीय पक्षपात नहीं दिखता. यह समावेशी मॉडल नीतीश कुमार की पारंपरिक सामाजिक न्याय की राजनीति को और गहरा करता है. बुजुर्गों, महिलाओं, युवाओं, शहरी और ग्रामीण वर्ग सभी को ध्यान में रखते हुए योजनाएं बनाई गई हैं. यह 2025 चुनाव के लिए एक 'एक्स्टेंडेड सोशल इंजीनियरिंग' है.
जमीन पर दिखने लगा असर
विपक्षी दल इन फैसलों को चुनाव से पहले जनता को बहलाने की रणनीति बता रहे हैं. राजद, कांग्रेस और वाम दलों का कहना है कि ये फैसले देर से और सियासी मजबूरी में लिए गए हैं. हालांकि जमीनी स्तर पर लोगों के बीच सकारात्मक प्रतिक्रिया देखी जा रही है. खासकर ग्रामीण इलाकों में बिजली बिल माफ़ी और पेंशन बढ़ोतरी का असर तेजी से फैल रहा है.
नीति या राजनीति? विशेषज्ञों का नजरिया मिला-जुला
राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि नीतीश कुमार ने योजनाएं सिर्फ योजनाओं के तौर पर नहीं बल्कि रणनीतिक ढांचे के तहत लागू की हैं. उनकी प्रशासनिक दक्षता और गठबंधन की मजबूती को ध्यान में रखते हुए यह स्पष्ट है कि ये पहलें केवल वादे नहीं हैं, बल्कि आगामी चुनाव के लिए मजबूत नींव रखने की प्रक्रिया है. यह देखा जाना बाकी है कि इस सोशल-इकोनॉमिक प्लान का मतदाता पर कितना गहरा प्रभाव पड़ेगा.
चुपचाप हो सकता है ‘बड़ा खेला’
इन तीनों पहलों को मिलाकर देखें तो यह नीतीश कुमार की ओर से बिहार की राजनीति में ‘सॉफ्ट-सर्जिकल स्ट्राइक’ मानी जा सकती है. योजनाओं की टाइमिंग, दायरा और असर सभी कुछ चुनावी रूप से परिपक्व रणनीति की ओर इशारा करते हैं. अब यह देखना दिलचस्प होगा कि जनता इन पहलों को सरकारी जिम्मेदारी मानेगी या सियासी समझदारी का इनाम देगी.