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जुबिन गर्ग की फिल्म 'रोई रोई बिनाले' देखकर फैंस हुए इमोशनल, सिनेमा हॉल में एक सीट रिज़र्व कर सिंगर को दी श्रद्धांजलि; देखें 10 Videos

असम के दिग्गज गायक और अभिनेता ज़ुबिन गर्ग की आखिरी फिल्म ‘रोई रोई बिनाले’ रिलीज़ होते ही इतिहास रच रही है. सुबह 4:25 बजे से शुरू हुए शो में दर्शकों की भीड़ उमड़ पड़ी. राजेश भुयान निर्देशित यह फिल्म एक अंधे संगीतकार की भावनात्मक कहानी है, जिसमें 11 गीत खुद ज़ुबिन ने बनाए. फिल्म से मिलने वाला GST ‘कलागुरु आर्टिस्ट फाउंडेशन’ को दान किया जाएगा.

जुबिन गर्ग की फिल्म रोई रोई बिनाले देखकर फैंस हुए इमोशनल, सिनेमा हॉल में एक सीट रिज़र्व कर सिंगर को दी श्रद्धांजलि; देखें 10 Videos
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( Image Source:  X/NANDANPRATIM )
नवनीत कुमार
Curated By: नवनीत कुमार

Published on: 31 Oct 2025 9:10 AM

गुवाहाटी की सुबह आज किसी त्यौहार से कम नहीं थी, लेकिन यह खुशी आंखों में नमी लेकर आई. सड़कें खाली नहीं थीं, सिनेमाघरों के बाहर लोगों की लंबी कतारें थीं और हर चेहरे पर एक ही नाम, जुबिन गर्ग. असम का यह सपूत जिसने संगीत को नई पहचान दी, आज अपनी आखिरी फिल्म ‘रोई रोई बिनाले’ के ज़रिए एक बार फिर लोगों के दिलों में लौट आया है.

सुबह 4:25 बजे जब बेलटोला के मैट्रिक्स सिनेमा हॉल में पहला शो शुरू हुआ, तो दर्शकों की आंखों में सिर्फ फिल्म नहीं, एक पूरी यादगार ज़िंदगी चल रही थी. कई लोग पोस्टर और स्कार्फ लेकर पहुंचे, तो कुछ आंखों में आंसू लिए खामोश खड़े रहे. यह सिर्फ एक फिल्म का प्रीमियर नहीं, बल्कि एक कलाकार की विदाई का भावनात्मक समारोह था.

जुबिन गर्ग की आखिरी फिल्म

‘रोई रोई बिनाले’ सिर्फ एक फिल्म नहीं, बल्कि जुबिन गर्ग के कला-सफ़र की अंतिम धुन है. इसे उन्होंने खुद लिखा, संगीतबद्ध किया और अभिनय भी किया. फिल्म में वह एक अंधे संगीतकार का किरदार निभा रहे हैं, जो दर्द में भी राग तलाशता है और खामोशी में भी संगीत सुनता है.

11 गीतों में बसा एक कलाकार का जीवन

इस 146 मिनट की फिल्म में 11 गीत हैं, जिन्हें जुबिन ने खुद कंपोज़ किया है. ये गाने उनकी आत्मा के विस्तार जैसे हैं — प्रेम, विरह, संघर्ष और मुक्ति की धुनें, जो दर्शकों को बार-बार उनकी याद दिलाती हैं.

सिनेमा हॉल में भावनाओं का सैलाब

गुवाहाटी से लेकर सिलचर तक, हर सिनेमा हॉल में माहौल कुछ अलग था. तालियों की गूंज और आंसुओं की खामोशी साथ-साथ थी. फिल्म के अंत में जब जुबिन की आवाज़ ‘रोई रोई बिनाले...’ के सुर में गूंजती है, तो पूरा हॉल खड़ा होकर उन्हें आखिरी सलाम करता है.

टिकट्स हाउसफुल

असम के 91 सिनेमाघरों में और देशभर के 90 से अधिक शहरों में फिल्म रिलीज़ हुई है. पटना, लखनऊ और गोवा जैसे शहरों में पहली बार किसी असमिया फिल्म के शो हुए. सभी शो हाउसफुल हैं और कुछ हॉलों ने रात 12 बजे तक विशेष प्रदर्शन जोड़े हैं.

असम सरकार का बड़ा फैसला

असम सरकार ने घोषणा की है कि फिल्म से मिलने वाला पूरा GST राजस्व ‘कलागुरु आर्टिस्ट फाउंडेशन’ को दिया जाएगा. यह वही संस्था है जिसे खुद जुबिन गर्ग ने असम के पिछड़े कलाकारों के उत्थान के लिए स्थापित किया था.

ज़ुबिन की मौत और फिल्म की मार्मिकता

19 सितंबर को सिंगापुर में जुबिन गर्ग की समुद्र में तैरते समय रहस्यमय मौत हो गई थी. फिल्म के ट्रेलर में समुद्र तट पर बेसुध पड़े संगीतकार का दृश्य अब उनकी असली कहानी से जुड़कर और भी दर्दनाक प्रतीत होता है.

‘रोई रोई बिनाले’ एक प्रतीक बन चुकी है

यह फिल्म अब सिर्फ सिनेमा नहीं रही, बल्कि एक भावनात्मक प्रतीक बन चुकी है. यह असम के संगीत, सिनेमा और संस्कृति की उस आत्मा को दर्शाती है जो जुबिन गर्ग ने अपने जीवन में जगाई थी.

दर्शकों की आंखों में नमी, दिल में गर्व

फिल्म देखकर बाहर निकलने वाले दर्शकों ने कहा, “ऐसा लगता है जैसे जुबिन अभी यहीं हैं, पर्दे के पीछे से मुस्कुरा रहे हैं.” हर दर्शक के लिए यह फिल्म विदाई के साथ-साथ एक अमर मुलाकात भी है.

इतिहास बन गया एक दिन

असम के लिए यह दिन हमेशा याद रखा जाएगा. जब एक कलाकार ने अपनी विदाई को एक उत्सव में बदल दिया. गुवाहाटी की सुबह, सिनेमाघरों की भीड़ और लोगों की सिसकियों ने मिलकर इतिहास रच दिया.

संगीत जो कभी नहीं थमेगा

जब पर्दा काला हुआ और जुबिन की आखिरी आवाज़ थिएटर में गूंजी, तो हर व्यक्ति खड़ा हो गया. किसी ने कहा, “वो गया नहीं, उसकी धुन अब हमारे भीतर है.” ‘रोई रोई बिनाले’ सिर्फ जुबिन गर्ग की आखिरी फिल्म नहीं, बल्कि असम की आत्मा का अमर गीत बन चुकी है.

असम न्‍यूजजुबिन गर्ग
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