1985 का समझौता दरकिनार, CAA कट-ऑफ विस्तार ने असम की अस्मिता पर उठाया सवाल, सड़कों पर छात्रों ने जमकर किया विरोध
असम में 1985 के समझौते को दरकिनार करते हुए केंद्र सरकार द्वारा नागरिकता संशोधन अधिनियम (CAA) की कट-ऑफ डेट बढ़ाने के फैसले ने राज्य की अस्मिता और सांस्कृतिक पहचान पर गंभीर सवाल खड़े कर दिए हैं. इस फैसले के विरोध में छात्र संगठन सड़कों पर उतर आए और जोरदार प्रदर्शन किया, यह दिखाते हुए कि असम के लोग अपनी पहचान और अधिकारों के लिए किसी भी कीमत पर आवाज उठाने से पीछे नहीं हटेंगे.
असम, जो हमेशा अपने सांस्कृतिक और जातीय पहचान के लिए जाना गया है. इस समय एक नई राजनीतिक और सामाजिक उथल-पुथल की चपेट में है. केंद्रीय सरकार ने हाल ही में सिटिजनशिप अमेंडमेंट एक्ट (CAA) के तहत नागरिकता आवेदन की कट-ऑफ डेट को 31 दिसंबर, 2024 तक बढ़ा दिया है.
यह कदम राज्य में लंबे समय से चली आ रही असंतुष्टि और विरोध को एक बार फिर से उभारने वाला साबित हो रहा है. जहां विपक्षी नेता, छात्र संगठन और स्थानीय समुदाय ने इसे असम के लिए काला दिन करार दिया है.
बढ़ाई गई कट-ऑफ डेट
जून 2025 में प्रकाशित इमिग्रेशन और फॉरेनर्स (एक्सेप्शन) ऑर्डर, 2025 के अनुसार, अफगानिस्तान, बांग्लादेश, नेपाल, पाकिस्तान और भूटान से आने वाले कुछ धार्मिक समुदाय जैसे हिंदू, सिख, बौद्ध, जैन, पारसी और ईसाई को पासपोर्ट या वैध ट्रैवलिंग डॉक्यूमेंट्स के बिना भारत में एंट्री की छूट दी गई है, यदि वे नई कट-ऑफ डेट से पहले आए हों.
क्या है असम समझौता?
इस आदेश का असम पर विशेष प्रभाव इसलिए है क्योंकि राज्य लंबे समय से अवैध बांग्लादेशी प्रवासियों की समस्या से जूझ रहा है. 1985 के असम समझौते ने 24 मार्च, 1971 को अवैध प्रवासियों की पहचान और उनके निष्कासन की कट-ऑफ डेट के रूप में तय किया था. लेकिन अब यह नया विस्तार, असम की पहचान और असमियत के लिए एक गंभीर चुनौती बन गया है.
विपक्ष ने इसे 'काला दिन' करार दिया
असम में विरोध का स्वर सबसे पहले विपक्षी नेताओं और छात्र संगठनों से आया. लीडर ऑफ़ अपोज़िशन देबद्रता साइकिया ने इसे राज्य के लिए 'एक काला दिन' बताया. उनका कहना था कि यह कदम असम समझौते को पूरी तरह से दरकिनार करता है और लोगों को बिना दस्तावेज़ भारत में प्रवेश करने की अनुमति देता है.
केंद्र सरकार की एक साजिश
असम जनता पार्टी (AJP) के अध्यक्ष लुरिंज्योति गोगोई ने इसे केंद्र सरकार की एक साजिश बताया. वहीं, KMSS के महासचिव बिद्युत साइकिया ने कट-ऑफ डेट को बढ़ाने को लोगों से किए गए वादों का उल्लंघन करार दिया. उन्होंने कहा कि इसमें भूटान और नेपाल को भी शामिल किया गया है, जो पहले कभी चर्चा का हिस्सा नहीं थे.
सड़कों पर छात्र संगठन
असम के सबसे बड़े छात्र संगठन ऑल असम स्टूडेंट्स यूनियन (AASU) ने भी विरोध को तेज किया और नए विरोध प्रदर्शन की घोषणा की. AASU महासचिव समीरन फुकन ने कहा कि चार उत्तर-पूर्वी राज्य और असम के आठ जिले तो इस कानून से छूट प्राप्त हैं, लेकिन बाकी राज्य को इसका बोझ उठाना पड़ रहा है. “यदि यह आदेश लागू हुआ, तो यह विनाशकारी होगा। पिछले विरोध प्रदर्शन में पांच लोगों ने अपनी जान गंवाई। क्या उनकी कुर्बानी व्यर्थ थी?”
असम पर असली असर: अवैध बांग्लादेशी प्रवासियों की चिंता
असम में अवैध बांग्लादेशी प्रवासी वर्षों से स्थानीय संसाधनों, रोजगार और जमीन पर दबाव डाल रहे हैं. CAA की कट-ऑफ डेट बढ़ने के बाद, इनकी संख्या और बढ़ सकती है. यह न केवल आर्थिक बोझ बढ़ाएगा बल्कि असम की सांस्कृतिक पहचान को भी चुनौती देगा। कई स्थानीय नेता इसे असमियत और राज्य की भूगोलिक पहचान पर खतरे के रूप में देखते हैं.





