Father's Day Special: खेल की दुनिया में पिता-पुत्र की इन भारतीय जोड़ियों ने मचाया तहलका
भारत के खेल इतिहास में कई ऐसी प्रसिद्ध पिता-पुत्र और परिवारिक जोड़ियां रही हैं, जिन्होंने अंतरराष्ट्रीय स्तर पर देश का नाम रोशन किया है. इनमें सुनील और रोहन गावस्कर, मिल्खा और जीव मिल्खा सिंह, ध्यानचंद और अशोक कुमार, लिएंडर और वेस पेस जैसी जोड़ियां शामिल हैं. क्रिकेट, हॉकी, टेनिस, बैडमिंटन और गोल्फ जैसे खेलों में इन परिवारों ने पीढ़ियों तक देश का प्रतिनिधित्व किया. कुछ ने ओलंपिक में पदक जीते तो कुछ ने विश्व कप जिताने में अहम भूमिका निभाई.

क्रिकेट समेत खेल की दुनिया में पिता-पुत्र की कई ऐसी मशहूर जोड़ियां हुई हैं जिन्होंने अंतरराष्ट्रीय स्तर पर अपनी सफलता के छाप छोड़े हैं. क्रिकेट में भारत के दिग्गज़ क्रिकेटर सुनील गावस्कर, लाला अमरनाथ, विजय मांजरेकर, इफ़्तिख़ार अली ख़ान पटौदी, रोजर बिन्नी और योगराज सिंह जैसे उदाहरण हैं. तो अन्य देशों के पिता-पुत्र की जानी मानी जोड़ियों में ऑस्ट्रेलिया का मार्श परिवार (ज्योफ, शॉन और मिशेल), न्यूज़ीलैंड का केर्न्स परिवार, न्यूज़ीलैंड का ही हेडली परिवार, दक्षिण अफ़्रीका का पोलक परिवार, इंग्लैंड का काउड्रे परिवार और वेस्ट इंडीज़ का चंद्रपॉल परिवार जैसे कई नाम शामिल हैं, पर आज हम बात कुछ बहुत जानी-मानी पिता-पुत्र की भारतीय जोड़ियों की करेंगे, जिन्होंने भारत का प्रतिनिधत्व किया और इनमें से कई ने तो शानदार उपलब्धियां भी हासिल कीं. इसकी शुरुआत टेनिस से करते हैं.
रामानाथन कृष्णन और रमेश कृष्णन
रामानाथन कृष्णन और रमेश कृष्णन दोनों ही टेनिस खेलते थे. पिता रामानाथन 60 के दशक के मशहूर खिलाड़ी थे. वो 1960 और 1961 में ग्रैंड स्लैम विम्बल्डन के सेमीफ़ाइनल तक पहुंचे थे. उनके बेटे 1986 में विम्बलडन में तो (1981 और 1987 में) दो बार यूएस ओपन के क्वार्टरफ़ाइनल में पहुंचे. उन्होंने डेविस कप में लगातार भारत का प्रतिनिधत्व किया. 1987 में जब भारत डेविस कप के सेमीफ़ाइनल तक पहुंचा तो रमेश कृष्णन उस टीम के सदस्य थे.
लिएंडर और उनके पिता वेस पेस
भारतीय टेनिस जगत के धुरंधर लिएंडर पेस का नाम कौन नहीं जानता. पेस ने 19 ग्रैंड स्लैम डबल्स टाइटल जीते हैं तो 1996 के ओलंपिक में ब्रॉन्ज मेडल भी भारत के नाम किया, लेकिन यह उनके परिवार में पहला ओलंपिक मेडल नहीं था. उनके पिता वेस पेस ने भी 1972 के म्यूनिख ओलंपिक में हॉकी प्रतिस्पर्धा का ब्रॉन्ज मेडल भारत की झोली में डाला था.
ध्यानचंद और उनके पुत्र अशोक कुमार
राष्ट्रीय खेल हॉकी के दिग्गज़ फॉरवर्ड ध्यानचंद के उपलब्धियों से सारा देश वाकिफ है. हॉकी के मैदान पर उनकी तेज़ी और गोल दागने की क्षमता ने भारत को लगातार तीन साल 1928, 1932 और 1936 में ओलंपिक का गोल्ड मेडल दिलाया था. उनके बेटे अशोक कुमार भी भारतीय टीम के लिए खेले. पिता की तरह ही अशोक कुमार भी हॉकी के मैदान में उतने ही चपल थे. अशोक कुमार न केवल 1972 के म्यूनिख ओलंपिक में ब्रॉन्ज जीतने वाली भारतीय टीम के हीरो थे, बल्कि 1975 में पाकिस्तान को हरा कर भारत को अब तक का एकमात्र हॉकी वर्ल्ड कप जिताने में भी उनका अहम किरदार था. भारत-पाकिस्तान के बीच रोमांचक फ़ाइनल मुक़ाबले में अशोक कुमार ने ही विजयी गोल दागा था.
पिता-पुत्री: पीवी सिंधु और पीवी रमन्ना की जोड़ी
पीवी सिंधु ने बैडमिंटन में भारत का नाम ऊंचा किया है. ओलंपिक से सिल्वर लाने वाली सिंधु का परिवार भी खेल के प्रति समर्पित रहा है. उनके माता-पिता विजया और पीवी रमन्ना दोनों राष्ट्रीय स्तर के पेशेवर वॉलीबॉल खिलाड़ी रहे हैं. रमन्ना 1986 के एशियन गेम्स में ब्रॉन्ज़ लाने वाली भारतीय टीम में शामिल थे.
मिल्खा सिंह-जीव मिल्खा सिंह
ट्रैक एंड फ़ील्ड के दिग्गज़ फ़्लाइंग सिख मिल्खा सिंह का नाम कौन नहीं जानता. 1960 के रोम ओलंपिक में वर्ल्ड रिकॉर्ड तोड़ने के बावजूद मिल्खा सिंह चौथे स्थान पर रहे और भारत को पदक नहीं जिता पाए थे, लेकिन उसके बाद उन्होंने कॉमनवेल्थ गेम्स 1958 में नंबर-1 पर रहे और इंग्लैंड की महारानी एलिज़ाबेथ ने मिल्खा सिंह के गले में स्वर्ण पदक पहनाया. उनके बेटे जीव मिल्खा सिंह बाद में गोल्फ़ की दुनिया में मशहूर हुए और पहले ऐसे भारतीय बने, जिन्होंने यूरोपीय टूर जॉइन किया. उनके नाम 20 टूर जीत दर्ज है.
लाला अमरनाथ और मोहिंदर अमरनाथ
भारत जब पहली बार अपनी सरज़मीं पर टेस्ट क्रिकेट खेल रहा था तो क्रिकेटर लाला अमरनाथ भी डेब्यू कर रहे थे. उन्होंने अपने डेब्यू मैच में ही शतक जमाने का कारनामा किया. बाद में उनके तीन बेटे भी फ़र्स्ट क्लास क्रिकेट खेले. उनमें से दो ने टीम इंडिया का भी प्रतिनिधत्व किया. बाएं हाथ के बल्लेबाज़ सुरिंदर अमरनाथ भारत के लिए 10 टेस्ट मैच खेले और पिता की तरह ही टेस्ट में डेब्यू शतक भी जमाया. वहीं मोहिंदर अमरनाथ 150 से भी अधिक बार भारत का प्रतिनिधित्व किया. वो कपिल देव के नेतृत्व में 1983 में वनडे वर्ल्ड जीतने वाली टीम के एक प्रमुख सदस्य थे और उस वर्ल्ड कप के सेमीफ़ाइनल और फ़ाइनल में अपने बल्ले के साथ-साथ गेंदबाज़ी में भी कमाल किया था. उन दोनों मुक़ाबले में मोहिंदर अमरनाथ 'मैन ऑफ़ द मैच' थे.
मंसूर अली ख़ान पटौदी और इफ़्तिख़ाल अली ख़ान पटौदी
फ़िल्मी दुनिया के अभिनेता सैफ़ अली को तो आज का युवा ज़रूर जानता होगा. क्या आपको पता है कि उनके पिता नवाब मंसूर अली ख़ान पटौदी केवल 21 वर्ष की आयु में भारतीय क्रिकेट टीम के सबसे युवा कप्तान रह चुके हैं. उनके नेतृत्व में भारतीय टीम ने अभूतपूर्व सफलता हासिल की. उन्होंने छह टेस्ट शतक जमाए और इंग्लैंड के ख़िलाफ़ अपने करियर की सर्वश्रेष्ठ 203 रनों की नाबाद पारी खेली. उसी इंग्लैंड के ख़िलाफ, जिसके लिए कभी सैफ़ के दादाजी खेला करते थे. जी हां, सीनियर पटौदी यानी इफ़्तिख़ार अली ख़ान पटौदी ऐसे एकमात्र क्रिकेटर हैं, जो इंग्लैंड और भारत दोनों देशों के लिए क्रिकेट खेले चुके हैं.
सुनील गावस्कर और रोहन गावस्कर
इनके अलावा, सुनील गावस्कर भारत के सबसे सफल टेस्ट क्रिकेटर्स में से एक रहे हैं. टेस्ट क्रिकेट में सबसे पहले 10,000 रन बनाने का उनके नाम ऐसा नायाब रिकॉर्ड है, जिसे कोई नहीं तोड़ सकेगा. उनके बेटे रोहन गावस्कर ने भी भारतीय टीम का वनडे क्रिकेट में प्रतिनिधित्व किया. हालांकि बतौर खिलाड़ी उनका करियर बहुत सफल नहीं रहा. 2003-04 की वीबी सिरीज़, 2004-05 के वीडियोकॉन कप और 2004 की आईसीसी चैंपियंस ट्रॉफ़ी के कुल 10 मैचों में उन्हें मौक़ा मिला. ये सभी मैच विदेशी पिचों पर ऑस्ट्रेलिया, इंग्लैंड और नीदरलैंड में खेले गए. रोहन ने 18.88 की औसत से महज़ 151 रन बनाए. बाएं हाथ के ऑलराउंडर रोहन को उसके बाद न तो घरेलू सरज़मीं पर आजमाया गया और न ही दोबारा मौक़ा दिया गया. अब रोहन वेबसाइट पर कमेंट्री करते और बतौर एक्सपर्ट शामिल होते दिखते हैं.
विजय मांजरेकर और संजय मांजरेकर
आज़ादी के बाद विजय मांजरेकर भारतीय टीम के लिए 50 के दशक में टेस्ट क्रिकेट खेल चुके हैं. उनके बेटे संजय मांजरेकर 90 के दशक में भारतीय टीम के मध्यक्रम की एक मजबूत कड़ी थे. इंग्लैंड के ख़िलाफ़ ईडन गार्डन में टेस्ट डेब्यू करने वाले विजय मांजरेकर 1951 से 1965 के बीच भारत के लिए 55 टेस्ट मैचों में सात शतकों की बदौलत 3208 रन बनाए. जब उन्होंने 1965 में अपना आख़िरी टेस्ट मैच न्यूज़ीलैंड के ख़िलाफ़ खेला तो उसमें उन्होंने शतक जमाने का कारनामा किया. उनके बेटे संजय मांजरेकर भारत के लिए 37 टेस्ट (2043 रन) और 74 वनडे खेले (1994 रन). अब वो एक जाने माने कमेंटेटर हैं.
रोजर और स्टुअर्ट बिन्नी
रोजर बिन्नी भारत के लिए 27 टेस्ट और 72 वनडे खेल चुके हैं. वो वर्ल्ड कप जीतने वाली 1983 की टीम के एक अहम सदस्य थे. उस वर्ल्ड कप के लीग मैच में ऑस्ट्रेलिया को केवल 129 रनों पर समेट कर भारत को 118 रनों से जीत दिलाने में रोजर बिन्नी चार विकेट लेकर मैन ऑफ़ द मैच रहे थे. वो बाद में कोच, चयनकर्ता बने और अभी बीसीसीआई के 36वें और मौजूदा अध्यक्ष हैं. उनके बेटे स्टुअर्ट बिन्नी ने 6 टेस्ट, 14 वनडे और 3 अंतरराष्ट्रीय टी20 में भारत का प्रतिनिधित्व किया. वो आईपीएल में भी राजस्थान रॉयल्स, मुंबई इंडियंस और रॉयल चैलेंजर्स बेंगलुरु के लिए खेल चुके हैं. पर रोहन गावस्कर की तरह ही उनका प्रदर्शन भी औसत ही रहा.
योगराज सिंह और युवराज सिंह
टी20 क्रिकेट में एक ही ओवर की सभी छह गेंदों पर छह छक्के जमाने वाले विस्फ़ोटक बल्लेबाज युवराज सिंह के नाम से भला कौन परिचित नहीं होगा. युवराज सिंह 2000 से 2017 तक भारतीय क्रिकेट के पटल पर छाए रहे. उन्होंने अपनी आक्रामक बल्लेबाज़ी और बाएं हाथ की स्पिन गेंदबाज़ी से टीम को कई मैच जिताए. 2007 के टी20 वर्ल्ड कप में एक ही ओवर में छह छक्के और 12 गेंदों पर अर्धशतक जमाया था जो आज भी एक रिकॉर्ड है... 2011 के वनडे वर्ल्ड कप में युवराज सिंह ने 15 विकेट चटकाए तो 362 रन भी बनाए. उनके दमदार प्रदर्शन की बदौलत उन्हें 2011 वनडे वर्ल्ड कप का 'मैन ऑफ़ द टूर्नामेंट' चुना गया.
युवराज ने 2000 चैंपियंस ट्रॉफी, 2002 नेटवेस्ट सिरीज़ और 2013 आईसीसी चैंपियंस ट्रॉफी जैसे अन्य टूर्नामेंट्स में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई. युवराज ने 40 टेस्ट मैच भी खेले, जिसमें उन्होंने 33.93 की औसत से 1900 रन बनाए. वहीं आईपीएल में भी युवराज ने छह टीमों का प्रतिनिधित्व किया और पंजाब किंग्स के कप्तान भी रहे. युवराज के पिता योगराज सिंह भी एक टेस्ट और छह वनडे मैचों में भारत का प्रतिनिधित्व कर चुके हैं.